भाजपा समर्थक भी नए कृषि कानूनों से आशंकित
सर्वे में आया सामने कि मिडिल क्लास को लगता है उनकी परेशानी बढ़ेगी
नई दिल्ली .
नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कृषि कानूनों को लेकर उनके समर्थक भी आशंकित हैं। उन्हें लगता है कि ये कानून भविष्य में मध्य वर्ग के सामने बड़ी परेशानी खड़ी कर देंगे और ये परेशानी किसानों की परेशानी से भी बड़ी होगी। इस वर्ग का मानना है कि कृषि कानूनों में किसानों के सामने भले ही खाद्य संकट न पैदा हो लेकिन मध्य वर्ग जो कि नौकरी करके जिंदा है और उसे सारी खाद्य सामग्री खरीदना पड़ती है, उसके लिए महंगाई बढ़ सकती है।
इस मामले में एक सर्वेक्षण किया गया है सर्वेक्षण किया गया है। इसमें पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में मतदान करने वाले मतदाताओं से किसान कानूनों के बारे में विभिन्न मुद्दों पर राय ली गई तो चौकाने वाली जानकारी सामने आई। 57 प्रतिशत लोगों का मानना है कि कृषि कानून का उन पर विपरित असर होगा। उनकी चिंता इस बात की है कि जब कुछ बड़ी कंपनियों का कृषि उत्पादों पर एकाधिकार हो जाएगा तो ऐसी स्थितिगे में वे बाजार में मनमाने दामों पर इसे बेचेंगे। इससे सीधा नुकसान उपभोक्ता को होगा।
मल्टीप्लैक्स की पॉप कॉर्न को याद करें
सौरभ भाजपा के प्रतिबद्ध मतदाता हैं। वे एक निजी कंपनी में नौकरी करते हैं। वे कृषि कानूनों के नाम पर कहते हैं कि जब सिंगल थिएटर की जगह मल्टी प्लेक्स ने ली तो टिकटों की कीमत कहां पहुंच गई। इसके साथ ही वे मल्टीप्लैक्स में बिकने वाली पॉपकॉर्न का हवाला देते हुए बताते हैं कि क्या आपने इतनी महंगी पॉपकॉर्न कहीं और देखी है क्या? इस महंगी पॉपकॉर्न का कितना फायदा किसानों की जेब में जाता है?
इसी समझ लीजिए की बड़े औद्योगिक घराने कृषि क्षेत्र में क्यों आएंगे? वे गेहूं को भी मल्टीप्लैक्स की पॉप कॉर्न बना देंगे उस समय उन्हें रोकने वाला कोन होगा? इसकी चिंता नौकरी पेशा लोगों को करना चाहिए।
किसान सही या गलत ?
किसानों के धरने के मामले में पूछे जाने पर रोचक जवाब सामने आता है। साठ प्रतिशत लोग इस धरने का समर्थन नहीं करते। उनका कहना है कि किसानों को धरना करने का अधिकार है लेकिन वे इसके विरोध के लिए दूसरा रास्ता भी अपना सकते थे। इस मामले में विधि के छात्र हरीश का कहना है कि धरना किसानों का अधिकार है लेकिन इस मुद्दे पर धरने को नौकरी पेशा वर्ग ने समर्थन देना चाहिए। इस देश में मॉल और मल्टीप्लेक्स संस्कृति इसी वर्ग के दोहन पर टिकी है। इसके चलते इस वर्ग ने भी धरने में भाग लेना चाहिए या अलग से विरोध करना चाहिए। कुछ नहीं तो कम से कम धरने देने वालों के खिलाफ किसी मुहिम का हिस्सा नहीं बनना चाहिए।
मोदी पर भरौसा…!
इस मामले में अब भी प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी पर भरौसा करने वालों की कमी नहीं है। 52 प्रतिशत लोगों का मानना है कि कृषि कानून नरेन्द्र मोदी लाए हैं तो ठीक ही होंगे। हालांकि वे इस बात को स्वीकार करते हैं कि मोदी के प्रधानमंत्री रहते तक भले ही न हो लेकिन उसके बाद इन कानूनों का कॉर्पोरेट्स दुरुपयोग कर सकते हैं।
59 प्रतिशत लोग यह मानते हैं कि इन कानूनों में कॉर्पोरेट्स पर नकेल कसने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। यह इसकी कमजोरी है।
यह सर्वे छात्रों के एक समूह ने मिडिल क्लास मोदी समर्थकों से व्यक्तिगत वार्तालाप के आधार पर किया है। इसमें एक हजार से अधिक मोदी समर्थकों से बात की गई है।