कम्युनिस्ट भी भगवान राम की शरण में… कर रहे रामायण पर चर्चा
रामायण पर कर रहे ऑनलाइन संवाद, राम के सिद्धांतों को मार्क्स से जोड़ने की कोशिश
कोझिकोड
अब तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के धुर विरोधी रहे कम्युनिस्ट भी भगवान श्री राम के नाम में अपना राजनीतिक उद्धार खोज रहे हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पाट्री यानी सीपीआई की मल्लपुरम इकाई ने रामायण के ऊपर के ऑनलाइन संवाद का कार्यक्रम रखा। 25 जुलाई से शुरू हुआ ये आयोजन 31 जुलाई तक चला। इस संवाद का नाम था रामायण और भारतीय विरासत।
खास बात ये है कि इसमें भगवान राम को साम्यवाद के जनक कार्ल मार्क्स से जोड़ने की कोशिश भी की गई। इतना ही नहीं यह भी कहा गया कि रामायण हमारी संस्कृति का हिस्सा है।
मुस्लिम बहुल मल्लपुरम जिले की कमिटी ने किया आयोजन
खास बात ये है कि इस आयोजन को केरल के 74 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या वाले मल्लपुरम जिले की कमेटी ने किया था। इसमें पार्टी के राज्य स्तरीय नेता भी रामायण और राम पर अपनी बात रख रहे हैं। रामायण और भारतीय विरासत इस संवाद सीरीज का टाइटल है। 25 जुलाई को शुरू हुई इस चर्चा का एक अगस्त को समापन हो गया है। कहा जा रहा है कि इस जिले में हिन्दू वोट बहुतायत में भाजपा को मिलते हैं और मुस्लिम वोट मुस्लिम लीग को। सीपीआई को यहां जीत दर्ज करने के लिए हिन्दू वोटों की भी आवश्कता है।
‘रामायण हमारी साझी परंपरा-संस्कृति का हिस्सा’
सीपीआई मलप्पुरम के जिला सचिव पीके कृष्णादास ने रामायण के इस संवाद कार्यक्रम पर जानकारी देते हुए बताया, ‘वर्तमान समय में सांप्रदायिक और फासीवादी ताकतें हिंदुत्व से जुड़ी हर चीज पर अपना इकलौता दावा करती हैं। खास तौर से बड़े पैमाने पर समाज और अन्य राजनीतिक दल इससे दूर जा रहे हैं। रामायण जैसे महाकाव्य हमारे देश की साझी परंपरा और संस्कृति का हिस्सा हैं।’ उन्होंने साथ ही कहा कि टॉक सीरीज के जरिए पार्टी ने कोशिश की है कि प्रगतिवादी दौर में रामायण को कैसे पढ़ा और समझा जाना चाहिए।
रामायण को कार्ल मार्क्स से जोड़ने की कवायद
इस ऑनलाइन संवाद में अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा हुई। सीपीआई लीडर मुलक्करा रत्नाकरन ने रामायण काल के लोग और दूसरे देशों से राजनीतिक संबंध, सीपीआई के ही एम केशवन नायर ने रामायण के समकालीन राजनीति (और कवि अलंकोड लीलाकृष्णन ने कई रामायण जैसे विषय पर ऑनलाइन चर्चा में बतौर स्पीकर हिस्सा लिया।
रामयाण के समकालीन राजनीति पर बात करते हुए केशवन नायर ने कहा कि रामायण कालीन राजनीति उससे बिल्कुल अलग थी जैसी संघ परिवार करता चला आ रहा है। उन्होंने कहा, ‘भगवान राम को विरोधाभासी शक्तियों के वाहक के रूप में दिखाया गया है। रामायण का गहन अध्ययन करने पर कार्ल मार्क्स के द्वंद्वात्मक भौतिकवाद सिद्धांत की बात कम्युनिस्टों के दिमाग में सबसे पहले आती है।’
इस चर्चा के दौरान कवि लीलाकृष्णन ने कहा कि कम्युनिस्टों की जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करने की है कि रामायण कहीं सांप्रदायिक ताकतों के हाथ का औजार ना बन जाए। उन्होंने कहा, ‘हम रामायण की फासीवादी व्याख्या का प्रतिरोध उसकी विविधता वाले स्वरूप के जरिए कर सकते हैं।
सभी पार्टियों के एजेंडे में राम और अयोध्या
पिछले साल 5 अगस्त को राम मंदिर के भूमि पूजन कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी यजमान बने। वहीं सीएम योगी आदित्यनाथ अपने कार्यकाल के साढ़े चार साल में 20 से ज्यादा बार अयोध्या जा चुके हैं। राम की नगरी में कई साल से भव्य दीपोत्सव का आयोजन हो रहा है।
पीएम मोदी ने जून में अयोध्या से जुड़े विकास कार्यों की समीक्षा की। वहीं बहुजन समाज पार्टी ने अपने ब्राह्मण सम्मेलन (प्रबुद्ध गोष्ठी) की शुरुआत भी अयोध्या से की। रामलला के दर्शन के बाद बीएसपी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा कि हम तो ब्राह्मण हैं और रोज राम की पूजा करते हैं। इसके अलावा समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव भी संसद सत्र के बाद अयोध्या जा सकते हैं।