भाजपा शरणार्थी सेल ने मोदी सरकार पर सीएए लागू न करने का आरोप लगाया
सरकार ने अब तक नहीं बनाए नियम इसके चलते सीएए अब तक नहीं हुआ लागू
कोलकाता
आम तौर पर भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार की उपलब्धियों के तौर पर पेश किए जाने वाले सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (Citizenship Amendment Act) यानी CAA को लेकर पार्टी के ही एक प्रकोष्ठ ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाए हैं। पश्चिम बंगाल की भाजपा शरणार्थी सेल ने सीएए को लागू किए जाने में हो रही देरी को लेकर मोदी सरकार को दोष दिया है।
2019 में केंद्र सरकार ने सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट यानी की नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू किया था जिसमें की पड़ोसी देशों से आए लोगों (मुस्लिम शरणार्थियों को छोड़कर) को भारत की नागरिकता दी जानी थी, लेकिन इस कानून को चलाने वाले नियम अब तक अधिसूचित नहीं किए गए हैं इसके चलते यह अधिनियम अब तक लागू नहीं हुआ है और अब तक इस अधिनियम के अंतर्गत पड़ोसी देशों से आने वाले किसी भी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन या इसाई शरणार्थी को भारत की नागरिकता नहीं मिली है।
तीन बार बढ़ी डेडलाइन
केंद्र सरकार ने अब तक सीएए के नियमों को अधिसूचित करने के लिए तीन बार डेडलाइन दी है लेकिन अब तक नियम अधिसूचित नहीं किए गए हैं। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने इसे शीघ्र अधिसूचित किए जाने की बात कही थी
इसके लिए 10 जनवरी की डेडलाइन तय की गयी थी। लेकिन इस बार भी सरकार नियम अधिसूचित नहीं कर पाई है। शाह ने उस समय कोरोना की स्थिति सुधरने पर नियम बनाए जाने की बात कही थी।
कुछ दिन में बन जाते हैं नियम
भारतीय जनता पार्टी शरणार्थी सेल (BJP Refugee Cell) के पश्चिम बंगाल के संयोजक मोहित राय ने इस मामले में केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि हमारे लिए शरणार्थियों की समस्या बहुत महत्वपूर्ण है और मैं भारतीय जनता पार्टी का सदस्य होते हुए भी इसके लिए केंद्र सरकार को दोष दूंगा। रॉय ने प्रश्न किया कि नियम बनाने में आखिर कितने दिन लगते हैं, यह कुछ दिनों में ही हो सकता है। राय ने कहा कि नागरिकता ना मिलने के चलते 1972 के बाद बंगाल में आए एक करोड़ शरणार्थियों को नागरिकता नहीं मिल सकी है। इसके चलते ये लोग कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इन्हें ना केवल नौकरी, विदेश यात्रा और शिक्षा आदि में परेशानी आती है बल्कि पुलिस प्रताड़ना भी झेलनी पड़ रही है।
मतुआ लोगों से बढ़ रहे मतभेद
बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने मतुआ समुदाय को अपने साथ जोड़ने की पहल की थी। 1971 के बाद भारी संख्या में मतुआ समुदाय के लोग शरणार्थी के रूप में भारत पहुंचे थे। सीएए के लागू होने के बाद इन लोगों को उम्मीद बंधी थी कि इन्हें भारतीय नागरिकता मिल जाएगी लेकिन अब तक ऐसा ना हो पाने के चलते मतुआ समुदाय के नेता और भाजपा के बीच मतभेद बढ़ते जा रहे हैं। नागरिकता ना मिल पाने के चलते मतुआ नेताओं को पार्टी में भी प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है इसके चलते उनमें नाराजगी बढ़ रही है।