चार सौ पार कर के भाजपा क्या कर सकती है?
समझिए विशेष बहुमत से हमारे संविधान में क्या क्या बदला जा सकता है?
इस बार के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी अबकी बार चार सौ पास के नारे के साथ मैदान में उतरी है। यह सवाल अकसर उठता है कि भाजपा ने अपने लिए चार सौ का आंकड़ा क्यों और कैसे तय किया? इस बात का जवाब भाजपा के कर्नाटक के सांसद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े के हाल ही में दिए गए बयान में भी खोजा गया था जब उन्होंने कहा था कि हमें दो तिहाई सीटें संविधान संशोधन करने के लिए चाहिए।
ऐसे में यह जानना जरुरी हो जाता है कि भाजपा दो तिहाई बहुमत से अधिक सीटें लाकर संविधान में कौन कौन से संशोधन कर सकती है क्योंकि चुनाव के समय इन संशोधनों के आधार पर जनमत को प्रभावित कर सकने वाले बहुत से संदेश मतदाताओं तक पहुंचाए जा सकते हैं, ऐसे में यह जरुरी है कि आप यह जान लें कि संविधान संशोधन कैसे होता है, किस संशोधन के लिए कितने बहुमत की आवश्यकता होगी और किस सीमा तक संविधान को संशोधित किया जा सकता है?
सबसे पहले संविधान संशोधन के तरीके जान लेते हैं। तीन तरीके हैं जिनसे संविधान में संशोधन किया जा सकता है –
- संसद के साधारण बहुमत द्वारा संशोधन
- संसद के विशेष बहुमत द्वारा संशोधन
- संसद के विशेष बहुमत और कम से कम आधे राज्य विधानमंडलों के अनुसमर्थन द्वारा संशोधन
अब इनको अलग अलग जान लेते हैं पहला संसद के साधारण बहुमत द्वारा होने वाले संशोधन। संविधान के इन प्रावधानों को अनुच्छेद 368 के दायरे से बाहर संसद के दोनों सदनों के साधारण बहुमत से संशोधित किया जा सकता है। इन प्रावधानों में शामिल हैं:
- नये राज्यों का प्रवेश या स्थापना।
- नए राज्यों का गठन और मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन।
- राज्यों में विधान परिषदों का उन्मूलन या निर्माण।
- दूसरी अनुसूची- परिलब्धियाँ,
- राष्ट्रपति , राज्यपालों, अध्यक्षों, न्यायाधीशों आदि के भत्ते, विशेषाधिकार आदि।
- संसद में कोरम.
- संसद सदस्यों के वेतन एवं भत्ते.
- संसद में प्रक्रिया के नियम.
- संसद, उसके सदस्यों और उसकी समितियों के विशेषाधिकार।
- संसद में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग।
- उच्चतम न्यायालय में उप न्यायाधीशों की संख्या .
- सर्वोच्च न्यायालय को अधिक क्षेत्राधिकार प्रदान करना।
- नागरिकता- अधिग्रहण और समाप्ति.
- संसद और राज्य विधानमंडलों के लिए चुनाव।
- निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन.
- केंद्र शासित प्रदेश
- पांचवीं अनुसूची-अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों का प्रशासन।
- छठी अनुसूची-आदिवासी क्षेत्रों का प्रशासन।
विशेष बहुमत द्वारा, संविधान के अधिकांश प्रावधानों को विशेष बहुमत के द्वारा संशोधन किया सकता है। इसमें प्रत्येक सदन की कुल सदस्यता का बहुमत (अर्थात 50 प्रतिशत से अधिक) और दो-तिहाई का बहुमत। प्रत्येक सदन के सदस्य उपस्थित और मतदान करते हैं। अभिव्यक्ति ‘कुल सदस्यता’ का अर्थ सदन में शामिल सदस्यों की कुल संख्या है, इस तथ्य पर ध्यान दिए बिना कि रिक्तियां हैं या अनुपस्थित हैं। खास बात ये है कि विशेष बहुमत की आवश्यकता केवल विधेयक के तीसरे वाचन चरण में मतदान के लिए होती है, लेकिन अत्यधिक सावधानी के कारण, विधेयक के सभी प्रभावी चरणों के संबंध में सदन के नियमों में विशेष बहुमत की आवश्यकता प्रदान की गई है। इस तरह से केवल इनमें संशोधन किए जा सकते हैं
- मौलिक अधिकार;
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत ; और
- अन्य सभी प्रावधान जो पहली और तीसरी श्रेणी में शामिल नहीं हैं।
तीसरे प्रकार के संविधान संशोधनों के लिए संसद के विशेष बहुमत तथा राज्यों की सहमति की आवश्यकता होती है। संविधान के वे प्रावधान जो राजनीति के संघीय ढांचे से संबंधित हैं, उन्हें संसद के विशेष बहुमत द्वारा और आधे राज्य विधानमंडलों की सहमति से साधारण बहुमत द्वारा संशोधित किया जा सकता है। यदि एक या कुछ या शेष सभी राज्य विधेयक पर कोई कार्रवाई नहीं करते हैं, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता; जैसे ही आधे राज्य अपनी सहमति देते हैं, औपचारिकता पूरी हो जाती है। ऐसी कोई समय सीमा नहीं है जिसके भीतर राज्यों को विधेयक पर अपनी सहमति देनी चाहिए।
इनके अंतर्गत निम्न प्रावधान आते हैं जिनमें संशोधन के लिए इस प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है। इन संशोधनों को लोक सभा और राज्य सभा में अलग-अलग प्रस्ताव पारित करवाना आवश्यक है। दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में प्रस्ताव पारित नहीं किया जा सकता। यानी कि इन संशोधनों के लिए लोक सभा और राज्य सभा दोनों में बहुमत होना आवश्यक है।
- राष्ट्रपति का चुनाव और उसकी रीति।
- संघ एवं राज्यों की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार.
- उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय ।
- संघ और राज्य के बीच विधायी शक्तियों का वितरण।
- सातवीं अनुसूची में से कोई भी सूची।
- संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व।
- संविधान और उसकी प्रक्रिया में संशोधन करने की संसद की शक्ति (स्वयं अनुच्छेद 368)।
संशोधन के प्रकार – संवैधानिक संशोधन प्रक्रिया
अनुच्छेद 368 में निर्धारित संविधान में संशोधन की प्रक्रिया इस प्रकार है:
- संविधान में संशोधन केवल संसद के किसी भी सदन (लोकसभा और राज्यसभा ) में एक विधेयक पेश करके शुरू किया जा सकता है, न कि राज्य विधानसभाओं में।
- विधेयक को किसी मंत्री या किसी निजी सदस्य द्वारा पेश किया जा सकता है और इसके लिए राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।
- विधेयक को प्रत्येक सदन में विशेष बहुमत से पारित किया जाना चाहिए, अर्थात सदन की कुल सदस्यता का बहुमत (अर्थात 50 प्रतिशत से अधिक) और सदन में उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाना चाहिए। मतदान।
- प्रत्येक सदन को अलग से विधेयक पारित करना होगा।
- दोनों सदनों के बीच असहमति की स्थिति में, विधेयक पर विचार-विमर्श और पारित करने के उद्देश्य से दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाने का कोई प्रावधान नहीं है।
- यदि विधेयक संविधान के संघीय प्रावधानों में संशोधन करना चाहता है, तो इसे आधे राज्यों की विधानसभाओं द्वारा साधारण बहुमत से, यानी सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले अधिकांश सदस्यों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।
- संसद के दोनों सदनों द्वारा विधिवत पारित होने और राज्य विधानमंडलों द्वारा अनुसमर्थित होने के बाद, जहां आवश्यक हो, विधेयक को सहमति के लिए राष्ट्रपति के पास प्रस्तुत किया जाता है।
- राष्ट्रपति को विधेयक पर अपनी सहमति देनी होगी। वह न तो विधेयक पर अपनी सहमति रोक सकता है और न ही विधेयक को संसद को पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है।
- राष्ट्रपति की सहमति के बाद, विधेयक एक अधिनियम (यानी, एक संवैधानिक संशोधन अधिनियम) बन जाता है और संविधान अधिनियम की शर्तों के अनुसार संशोधित हो जाता है।
भारतीय संविधान में कहां तक संशोधन किया जा सकता है?
अनुच्छेद 368 के तहत संसद मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है , लेकिन संविधान की ‘बुनियादी संरचना’ को प्रभावित किए बिना। अब तक सुप्रीम कोर्ट को यह परिभाषित या स्पष्ट करना बाकी है कि संविधान की ‘बुनियादी संरचना’ क्या है?
लेकिन न्यायालयों के अलग-अलग निर्णयों से, निम्नलिखित संविधान की ‘बुनियादी विशेषताओं’ के रूप में उभरे हैं,
- संविधान की सर्वोच्चता।
- कल्याणकारी राज्य (सामाजिक-आर्थिक न्याय)।
- समानता का सिद्धांत।
- भारतीय राजनीति की संप्रभु, लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक प्रकृति।
- न्यायिक समीक्षा।
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव।
- संविधान का धर्मनिरपेक्ष चरित्र।
- व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता।
- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का पृथक्करण।
- संसदीय प्रणाली।
- संविधान में संशोधन करने की संसद की सीमित शक्ति।
- संविधान का संघीय चरित्र।
- कानून का शासन।
- न्याय तक प्रभावी पहुंच।
- राष्ट्र की एकता और अखंडता।
- मौलिक अधिकारों और निदेशक सिद्धांतों के बीच सामंजस्य और संतुलन।
- तर्कसंगतता।
इस आधार पर कह सकते हैं कि विशेष बहुमत से होने वाले संविधान संशोधनों के लिए सरकार के पास लोक सभा और राज्य सभा दोनों में विशेष बहुमत होना चाहिए। केवल लोकसभा में चार सौ पार से काम नहीं बनने वाला। जहां भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित किए जाने की बात है तो फिलहाल ये मुद्दा संविधान की बुनियादी संरचना में आता है। इसके बारे में अभी यह तय किया जाना बाकी है कि इसे किस सीमा तक संशोधित किया जा सकता है।