सेना ने दिल्ली पुलिस को भी नहीं पहनने दी थी अपनी वर्दी
निगम कर्मियों के सेना जैसी वर्दी पहनने पर विवाद
इंदौर नगर निगम के कर्मचारियों के सेना के जैसी वर्दी पहनने की खबरों के व्यापक प्रतिक्रिया हुई है। इसके संबंध में निगम में नेता प्रतिपक्ष ने भारतीय दंड संहिता का भी हवाला दिया है। इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी यह मामला गर्माया हुआ है। खास बात ये है कि सेना ने दिल्ली पुलिस के सेना की तरह वर्दी पहनने की शिकायत की थी और ये मामला नरेन्द्र मोदी के शासन काल का ही है। दिल्ली पुलिस सीएए और एनआरसी के विरोध प्रदर्शन के दौरान सेना जैसी वर्दी पहने दिखी थी। दिल्ली पुलिस केन्द्रीय गृहमंत्री के अधीन आती है लेकिन इसके बाद भी सेना ने दिल्ली पुलिस को अपने जैसी वर्दी नहीं पहनने दी थी।
2020 में दिल्ली के जाफराबाद मेट्रो स्टेशन एरिया का एक वीडियो न्यूज एजेंसी एएनआई ने ट्वीटर यानी एक्स पर पोस्ट किया था। इसमें दिल्ली पुलिस के जवान सेना जैसी वर्दी पहने दिख रही थी। इसी वीडियो को कोट करते हुए सेना के प्रवक्ता ने इस पर आपत्ति ली थी। बताया जाता है कि उन्होंने इसकी विधिवत शिकायत भी गृह मंत्रालय से की थी। इसके बाद दिल्ली पुलिस कभी भी इस तरह की वर्दी में नहीं देखी गई।
सेना ने अपनी आपत्ति में गृह मंत्रालय से कहा था कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सीएपीएफ और पुलिस बलों के जवान कानून-व्यवस्था लागू करने और दंगा विरोधी ऐक्शन के दौरान ‘डिसरप्टिव पैटर्न’ वाली यूनिफॉर्म ना पहनें, जिन्हें आमतौर पर ‘कॉम्बैट यूनिफॉर्म’ कहा जाता है। बताया जाता है कि आर्मी यूनिफॉर्म को लेकर सेना की गाइडलाइन है जो कि राज्य की पुलिस तो छोड़िए पैरामिलीटरी फोर्स को भी सेना की वर्दी पहनने से रोकती है। फिर नगर निगम तो कहीं नहीं है।
फरवरी 2023 में सेना ने अपने एक सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल को भी एक टीवी प्रोग्राम में सेना की वर्दी पहनने के लेकर केस दर्ज कराया था। इसके बाद सेना की ओर से एक बार फिर पूर्व सैन्य कर्मियों को निर्देशित किया गया था कि वे सेवानिवृ्त्ति के पश्चात वर्दी न पहने। ऐसा करने पर सेना के पास सेवानिवृत्त सैनिकों और अधिकारियों की पेंशन रोकने का भी अधिकार है। ना जब सेना अपने सेवानिवृत्त अधिकारियों को भी वर्दी पहनने की अनुमति नहीं देती तो फिऱ इंदौर नगर निगम के कर्मचारियों को यह अनुमति कैसे मिल सकती है?
बेचने वाले पर भी कार्रवाई
इतना नहीं दिल्ली पुलिस के वर्दी पहनने की घटना के बाद सेना ने गृह मंत्रालय से सेना की वर्दी बेचने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई करने को कहा था। इस तरह से इंदौर नगर निगम ने जहां से यह वर्दी खरीदी ये वो विक्रेता भी सेना के वर्दी के नियमों के दायरे में आता है। उसके खिलाफ भी सेना कार्रवाई की मांग कर सकती है। माना जा रहा है कि जैसे ही सेना को इस बात की जानकारी मिलेगी वो नगर निगम के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर सकती है।
इसलिए है मनाही
सेना की यूनिफॉर्म को लेकर नियम इतने कठोर इसलिए है क्योंकि सेना ने अपने शौर्य और सेवा से जो सम्मान कमाया है वो देश के किसी भी सरकारी विभाग ने नहीं कमाया। कईं बार आतंकियों द्वारा सेना की वर्दी में हमला किए जाने के मामले भी सामने आए हैं। ऐसे में कोई भी आंतकी सेना की वर्दी में कहीं भी घुस सकता है। यदि वर्दी सड़क पर बिकने लगे तो आसामजिक तत्वों के लिए वर्दी का उपयोग करना बहुत आसान हो जाएगा।
दूसरा यदि किसी भी विभाग को सेना की वर्दी पहनने की छूट दे दी जाए तो जब वो विभाग सड़कों पर उतरेगा तो लोगों में यह संदेश जाता है कि हालात इतने खराब हो चुके हैं कि सेना को सड़क पर उतरना पड़ा है। इसके अलावा सेना की डिसरप्टिव पैटर्न वाली यूनिफॉर्म जिसे कांबेट यूनिफॉर्म कहा जाता है विशेषकर जंगलों में लड़ाई के दौरान बहुत काम आती है। इसके चलते केवल उन्हीं पुलिसकर्मियो और पैरामिलीटरी को यह यूनिफॉर्म पहनने दी जाती है जो जंगल में किसी ऑपरेशन के लिए जाते हैं या जिनकी तैनाती नक्सल बेल्ट में हो। इस यूनिफॉर्म को लेकर नियम इसलिए भी सख्त हैं क्योंकि आम जनता के बीच सेना और दूसरे विभागों के बीच कोई अंतर दिखना चाहिए।
कईं आरोप लगे हैं इस दल पर
निगम के अतिक्रमण विरोधी दस्ते पर अंडे बेचने वाले बच्चे का ठेला पलटाने से लेकर अवैध वसूली तक के कईं आरोप लगे हैं। इन पर बंधे हुए पशु खोल ले जाने जैसे आरोप भी लगे हैं। ऐसे में सोशल मीडिया पर सवाल उठाया जा रहा है कि जिस नगर निगम में करोडों के भुगतान बिना काम के हो गए हों और अधिकारी और जन प्रतिनिधि सोते रहे हों वो किस तरह सेना की तरह की वर्दी पहनने के अधिकारी हैं? सवाल ये है कि आपको आखिर इस वर्दी की जरुरत क्यों हैं? क्या आपको जिस जनता ने अपनी सेवा के लिए चुना है क्या आपको उसे डराना है?
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