“MP मे कुत्तों के एबीसी केन्द्रों की जांच जरूरी”

सुप्रीम कोर्ट के न्याय मित्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा

सुप्रीम कोर्ट में स्ट्रीट डॉग्स के मामले में चल रही सुनवाई के लिए न्याय मित्र यानी Amicus curie बनाए गए वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने देशभर के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दिए गए शपथ पत्र के बाद तैयार की गई रिपोर्ट में कहा है कि मध्य प्रदेश के 17 एबीसी केंद्र की जांच जरूरी है। उनकी रिपोर्ट राज्यों में एबीसी कार्यक्रमों की सच्चाई को सामने लाती है, जिनका उद्देश्य आवारा कुत्तों की आबादी को नसबंदी और टीकाकरण के माध्यम से नियंत्रित करना है।

रिपोर्ट से पता चलता है किप्रदेश सरकारों ने इस मामले में भारी लापरवाही दिखाई है। ऐसे में सवाल यह है कि जब लंबे समय से चल रहे एबीसी कार्यक्रम को राज्य सरकार ठीक तरीके से नहीं चला सकी है ऐसे में शेल्टर बनाकर कुत्ते रखने में यह कितनी कारगर साबित होंगी ? न्याय मित्र की रिपोर्ट को देखकर लगता है कि कुत्तों के काटने की समस्या के लिए कुत्ते कम जिम्मेदार है जबकि सरकारी, स्थानीय निकाय वहां बैठे जवाबदार लोग ज्यादा जिम्मेदार हैं।

उदाहरण के लिए, रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश में, कई शहरों में 2025 तक नसबंदी के आँकड़े “शून्य” या “शून्य” दर्ज किए गए, जिससे न्यायमित्र ने कहा कि “राज्य में 17 एबीसी केंद्रों के कामकाज की पूरी तरह से समीक्षा करने की आवश्यकता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या उनकी पूरी क्षमता का उपयोग हो रहा है। बिहार में, “ऐसा प्रतीत होता है कि कोई एबीसी केंद्र नहीं है”, राज्य में केवल 16 डॉग पाउण्ड हैं – जिनकी नसबंदी की क्षमता निर्दिष्ट नहीं है। न्यायमित्र ने कहा कि “बिहार जैसे विशाल राज्य के लिए, एबीसी केंद्रों की अत्यधिक आवश्यकता होगी।”

ओडिशा में, एबीसी कार्यक्रम उसके 115 शहरी स्थानीय निकायों में से केवल सात में ही संचालित है, जबकि पश्चिम बंगाल में, 128 स्थानीय निकायों में से केवल 24 ने ही इस कार्यक्रम को चलाने के लिए संगठनों की पहचान की है।

जहां से यह मामला शुरू हुआ वहां हाल बेहाल

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में एक डॉग बाइट के केस में एक लड़की की मौत हो जाने के मामले का संज्ञान लेकर यह कार्रवाई शुरू की थी लेकिन दिल्ली में एबीसी सेंटर के हाल कितने बेहाल हैं। इसका खुलासा भी इस रिपोर्ट से होता है। दिल्ली में, जहाँ 20 एबीसी केंद्र हैं, न्यायमित्र ने कहा कि “पिछले 6 महीनों में प्रति केंद्र प्रतिदिन केवल 15 कुत्तों का ही टीकाकरण किया गया”, इसे “दिल्ली जैसे शहर के लिए बेहद कम आँकड़ा” बताया।

रिपोर्ट में राज्यों के हलफनामों में अधूरे आंकड़ों को भी उजागर किया गया है, जिससे कार्यक्रमों का मूल्यांकन मुश्किल हो जाता है। आंध्र प्रदेश, जिसने 87 पशु चिकित्सकों की रिपोर्ट दी थी, यहां के लिए न्यायमित्र ने कहा, “एबीसी केंद्रों में पशु चिकित्सकों की तैनाती के आंकड़ों के अभाव में… आंकड़ों को आपस में जोड़ना मुश्किल है।”

बिहार के आंकड़ों को “बेहद अपर्याप्त” बताया गया, और रिपोर्ट में उसके पशु चिकित्सकों की सटीक भूमिका और कुत्तों को पकड़ने वाले कर्मचारियों की तैनाती के स्थानों पर सवाल उठाए गए।

शेल्टर छोड़िए गाड़ियां तक नहीं

रिपोर्ट में संसाधनों की कमी का मुद्दा भी बार-बार उठाया गया। रिपोर्ट में बताया गया कि आंध्र प्रदेश में कुत्तों को पकड़ने वाली 40 वैन हैं, जिनके बारे में एमिकस ने कहा कि ये “शायद पर्याप्त नहीं हैं”। पश्चिम बंगाल में ज़्यादातर ज़िलों में सिर्फ़ एक या दो गाड़ियों के होने से “प्रतिदिन 5-10 से ज़्यादा कुत्तों को पकड़ना” मुश्किल है, जिससे समग्र टीकाकरण और नसबंदी अभियान प्रभावित होता है। केरल में सिर्फ़ 12 एबीसी वैन होने का ज़िक्र किया गया, जिन्हें एमिकस ने उसकी ज़रूरतों के लिए “पूरी तरह से अपर्याप्त” बताया।

भ्रष्टाचार का ठीकरा कुत्तों के सर

दिल्ली के एनिमल एक्टिविस्ट आशीष ने कहा कि हम पहले से ही कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट को पहले उन चोरों को पकड़ना चाहिए जो कुत्तों के हिस्से का पैसा खा गए हैं लेकिन कोर्ट इसके उलट जो भ्रष्टाचार से पीड़ित है उसे ही जेल भेजने पर उतारू है। क्या यह सही नहीं होता कि सुप्रीम कोर्ट को पहले न्याय मित्र की रिपोर्ट को देखना चाहिए था और उसके बाद स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, रेलवे और बस स्टेशन से कुत्तों को उठाने के लिए निर्देश देना चाहिए थे। शायद ही अपनी तरह का पहला मामला है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने पहल की है लेकिन फिर भी आरोपी को सजा देने की बजाय पीड़ित को ही फांसी पर चढ़ने का काम हो रहा है।

इंदौर की जल्दबाजी अव मानना के दायरे में

जांच के दायरे में इंदौर का एबीसी सेंटर भी है। यहां एनिमल एक्टिविस्ट ने आरोप लगाया कि एबीसी सेंटर को ही शेल्टर होम बनाकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अगले दिन ही कुत्ते उठाने का काम शुरू कर दिया गया जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में कुत्ते हटाने की तैयारी के लिए दो सप्ताह का समय दिया गया है जिसमें जिन स्थानों से कुत्ते हटाए जाने हैं उनकी पहचान वहां पर नोडल अधिकारियों की नियुक्ति शेल्टर का निर्माण जैसे काम शामिल थे लेकिन इंदौर में प्रशासन और नगर निगम कुत्ते उठाने के लिए उधर ही बैठा था। हाल यह है कि महापौर के घर के आसपास से स्टेरलाइज डॉग भी उठा लिए गए हैं । एनिमल एक्टिविस्ट ने बताया कि दिल्ली में इन मामलों को लेकर अब मानना याचिका दायर करने की तैयारी भी हो रही है।

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