बिहार में ईवीएम से चुनाव नहीं होते तो एनडीए मिलती सिर्फ 95 सीट!
बैलेट से चुनाव होता तो आरजेडी कांग्रेस को मिलती 140 सीटें!
हर चुनाव के बाद ईवीएम चर्चा में रहती हैं। इस बार भी हैं और उसके साथ अब विपक्ष वोट चोरी के आरोपों को भी हवा दे रहा है। यहां तक कुछ नया नहीं है लेकिन बिहार के जनादेश ने बिहार से लेकर भाजपा तक को चौंकाया है। जहां अमित शाह चुनाव के पहले टीवी चैनल्स पर एनडीए के लिए 160 सीटों का अनुमान लगाते देखे गए थे वहीं परिणाम इससे कहीं आगे रहे।लेकिन यदि चुनाव में मतपत्रों के जरिए डाले गए वोटों की बात करें तो परिणाम बिलकुल अलग दिखाई देते हैं। इन वोटों में राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के महागठबंधन को 140 से ज्यादा सीटें मिलती दिखाई दे रही हैं तो वहीं एनडीए का आंकड़ा केवल 95 पर सिमटता दिख रहा है। जो कि बिहार चुनाव में दिख रही एनडीए की आंधी के ठीक विपरित है।

ईवीएम से हुए मतदान में भी मतपत्रों को उपयोग किया जाता है। ये डाक मतपत्र हैं जिनमें महागठबंधन एनडीए को मात देकर सरकार बनाता दिख रहा है। हाल यह है कि जिन विधानसभा सीटों पर महागठबंधन के प्रत्याशी पचास हजार वोटों से हारे हैं वहां भी महागनठबंधन का प्रत्याशी डाक मतपत्रों में जीतता दिखाई दे रहा है। जैसे बठनाहा विधानसभा सीट एनडीए ने 58000 वोटों से जीती है लेकिन यहां पर डाक मतपत्रों में महागठबंधन को 310 और एनडीए को 225 वोट मिले हैं। इसी तरह से राजनगर सीट एनडीए ने 42 हजार वोटों से जीती है लेकिन यहां पर भी महागठबंधन ने पोस्टल बैलेट में बाजी मारी है।
रोसेरा की सीट एनडीए करीब 50 हजार वोटों के अंतर से जीती है लेकिन यहां भी डाक मतपत्रों में महागबधन ने बाजी मारी है। यहां महागठबंधन को 302 वोट मिले हैं तो एनडीए के केवल 250 वोट हासिल हुए हैं।
छह सीटे महागठबंधन ने जीती लेकिन यहां मतपत्रों में एनडीए आगे
छह विधानसभा सीट ऐसी हैं जहां पर मतपत्रों में एनडीए ने बाजी मारी लेकिन ईवीएम को वोटों से महागठबंधन को जीत मिली। ये सीटें हैं वारसलीगंज, सुगौली, रघुनाथपुर, मखदूमपुर, फतुहा और ब्रह्मपुर हैं। इसमें से सुगौली में जीत का अंतर बहुत बड़ा है लेकिन डाक मतपत्रों में यह अंतर केवल दो वोटों का है।
दो सीटें डाक मतपत्र से ही तय हुईं
एकतरफा में भी दो विधानसभा सीटें ऐसी हैं जो डाक मतपत्रों के आधार पर ही तय हुई है। इनमें से एक सीट है संदेश तो दूसरी ढ़ाका। संदेश में एनडीए ने 27 वोटों से जीत दर्ज की है। यहां पर महागठबंधन को डाक मतपत्रों में 463 वोट मिले तो एनडीए को 526 वोट मिले। दोनों के बीच यहां फांसला 63 वोटों का है और एनडीए ने यह सीठ 27 वोटो से जीती है।
इसी तरह से ढ़ाका सीट पर फैसला 178 वोटों से हुआ। यहां डाक मतपत्रों के बीच का अंतर 197 वोटों का है। यहां महागठबंधन को 648 और एनडीए को 351 वोट मिले। ईवीएम के वोट में महागठबंधन यह सीट 19 वोटों से हार गया था।
क्या कहता है ये ट्रेंड ?
डाक मतपत्रों का उपयोग आमतौर पर सरकारी कर्मचारी करते हैं या फिर पढ़े लिखे मतदाता इसका उपयोग ज्यादा करते हैं। माना जाता है कि लगभग 95 प्रतिशत डाक मतपत्रों का उपयोग यही मतदाता करते हैं। ऐसे में ये आंकड़े इस बात का संकेत करते हैं कि पढ़े –लिखे लोगों ने एनडीए को कम वोट किया है? इसके पहले हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी ऐसा ही हुआ था जब कांग्रेस पोस्टल बैलेट में 73 सीटों पर आगे थी और भाजपा 17 सीटों पर आगे। लेकिन चुनाव भाजपा ने जीता और लगातार तीसरी बार हरियाणा में सरकार बनाई ।
एक लाख डाक मतपत्र
इन चुनाव में कितने डाक मतपत्रों को उपयोग किया गया इसकी ठीक संख्या चुनाव आयोग ने जारी नहीं की है लेकिन मोटे तौर पर अनुमान लगाया जा सकता है कि लगभग एक लाख मतदाताओं ने इसका उपयोग किया है। कोई भी ओपीनियन या एक्जिट पोल ने शायद ही अपने आंकड़ों के लिए इतनी संख्या में मतदाताओं से बात की होगी? इस आंकड़े को देखते हुए क्या डाक मतपत्रों के ट्रेंड को हल्के में लिया जा सकता है?