बांगरू-बाण : आंतरिक भय को नष्ट करने और आत्मबल के विस्तार का पर्व है:- रक्षा बंधन..!!
श्रीपाद अवधूत की कलम से
श्रावण मास की पूर्णिमा, जो सनातन हिन्दुओं के बीच रक्षाबंधन के रूप में प्रख्यात है। इसे बलेव और नारियल पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है।
स्कन्द पुराण, पद्म पुराण और श्रीमद् भागवत के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर बलि राजा के अहंकार को नष्ट कर उसे पाताल लोक में भेज दिया था। इसलिए यह पर्व ‘बलेव’ नाम से भी जाना जाता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक परमपूज्य डॉ॰ केशवराव बलिराम हेडगेवार जी ने हिन्दू समाज में समरसता स्थापित करने के उद्देश्य से इस उत्सव को मनाने का निर्णय लिया। उन्होंने इस संकल्प के साथ के समस्त हिंदू समाज मिलकर समस्त हिंदू समाज का रक्षक बने। सामान्यत: रक्षा बंधन पर्व के दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं। किंतु संघ के उत्सव में इसका विस्तृत अर्थ होता है। जो संपूर्ण समाज को अपने में समेटता है। पराधीनता के कालखंड में समाज का विघटन हुआ। समाज में दूरियाँ बढीं समाज का प्रत्येक अंग एक-दूसरे से अलग रहकर सुरक्षित अनुभव करने लगा लेकिन इससे जो नुकसान प्रत्येक वर्ग का हुआ वह अकल्पनीय था। भाषा और क्षेत्र के आधार पर समाज में द्वेष पनपने लगा और विधर्मी और विदेशी शासकों ने इस समस्या को हल करने के स्थान पर आग में घी डालने का कार्य किया तब। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिंदू समाज की इस दुर्दशा को देखा तो न केवल पीड़ा का अनुभव किया बल्कि इसके स्थायी निवारण का संकल्प भी लिया।

रक्षाबंधन के पर्व पर स्वयंसेवक परम पवित्र भगवा ध्वज को रक्षासूत्र बांधकर उस संकल्प का स्मरण करते हैं। जिसमें कहा गया है “धर्मो रक्षति रक्षितः” अर्थात हम सब मिलकर धर्म की रक्षा करें। स्वयंसेवक शाखा पर एकत्रित होकर बौद्धिक सुनते हैं। इसके पश्चात भगवान को रक्षा सूत्र बांधते हैं, राष्ट्र सेविका समिति की बहनें और सेवा भारती की बहनें सीमा पर जाकर सैनिकों को व सेवा बस्तियों में जाकर के बन्धुओं को रक्षा सूत्र बाँधती हैं। उनके सुख-दुख में खड़े रहने, समानता समरसता को सशक्त करने संस्कार युक्त समरस एवं समतामूलक समाज का अभिवचन देती हैं। ये किसी भी आदर्श समाज के लक्षण हैं। जिसके निर्माण में संघ अनवरत रत है। रक्षाबंधन उत्सव इसी दिशा में एक सोपान स्वरूप है जो विश्व गुरू भारत का मार्ग प्रशस्त करेगा।
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जन जागरण के लिये भी इस पर्व का सहारा लिया गया । श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बंग-भंग का विरोध करते समय रक्षाबन्धन त्यौहार को बंगाल निवासियों के पारस्परिक स्नेह, बंधुत्व तथा एकता का प्रतीक बनाकर इस त्यौहार का राजनीतिक उपयोग किया। 1905 में उनकी प्रसिद्ध कविता “मातृभूमि वन्दना” का प्रकाशन हुआ जिसमें वे लिखते हैं-
“हे प्रभु! मेरे बंगदेश की धरती, नदियाँ, वायु, फूल – सब पावन हों;
हे प्रभु! मेरे बंगदेश के, प्रत्येक भाई बहन के उर अन्तःस्थल, अविछन्न, अविभक्त एवं एक हों।”
(बांग्ला से हिन्दी अनुवाद)
सन् 1905 में लॉर्ड कर्ज़न ने बंग भंग करके वन्दे मातरम् के आन्दोलन से भड़की एक छोटी सी चिंगारी को शोलों में बदल दिया। 16 अक्टूबर 1905 को बंग भंग की नियत घोषणा के दिन रक्षा बन्धन की योजना साकार हुई और लोग बाग गंगा स्नान करके सड़कों पर यह कहते हुए उतर आये-
“सप्त कोटि लोकेर करुण क्रन्दन, सुनेना सुनिल कर्ज़न दुर्जन;
ताइ निते प्रतिशोध मनेर मतन करिल, आमि स्वजने राखी बन्धन।”
महाराष्ट्र में यह दिन श्रावणी या नारियल पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, जहां पुरुष बहते हुए जल में नारियल अर्पित कर जल तट पर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र देव की आराधना करते हैं।
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इसे आमतौर पर भाई-बहनों का पर्व मानते हैं लेकिन, अलग-अलग स्थानों एवं लोक परम्परा के अनुसार अलग-अलग रूप में रक्षाबंधन का पर्व मानते हैं।
वैसे इस पर्व का संबंध रक्षा से है। जो भी आपकी रक्षा करने वाला है उसके प्रति आभार दर्शाने के लिए रक्षासूत्र बांधते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने रक्षा सूत्र के विषय में युधिष्ठिर से कहा था कि रक्षाबंधन का त्योहार अपनी सेना के साथ मनाओ इससे पाण्डवों एवं उनकी सेना की रक्षा होगी। श्रीकृष्ण ने यह भी कहा था कि रक्षा सूत्र में अद्भुत शक्ति होती है।
रक्षा बंधन पर्व मनाने की विधि :
रक्षा बंधन के दिन सुबह भाई-बहन स्नान करके भगवान की पूजा करते हैं। इसके बाद रोली, अक्षत, कुंमकुंम एवं दीप जलकर थाल सजाते हैं। इस थाल में रंग-बिरंगी राखियों को रखकर उसकी पूजा करते हैं फिर बहनें भाइयों के माथे पर कुंमकुंम, रोली एवं अक्षत से तिलक करती हैं।इसके बाद भाई की दाईं कलाई पर रेशम की डोरी से बनी राखी बांधती हैं और मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराती हैं। राखी बंधवाने के बाद भाई बहन को रक्षा का आशीर्वाद एवं उपहार व धन देता है। बहनें राखी बांधते समय भाई की लम्बी उम्र एवं सुख तथा उन्नति की कामना करती है।

रक्षाबंधन का मंत्र :
“येन बद्धो बलिः राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥
रक्षाबंधन का धार्मिक महत्व :
भाई बहनों के अलावा पुरोहित भी अपने यजमान को राखी बांधते हैं और यजमान अपने पुरोहित को। इस प्रकार राखी बंधकर दोनों एक दूसरे के कल्याण एवं उन्नति की कामना करते हैं। प्रकृति भी जीवन के रक्षक हैं इसलिए रक्षाबंधन के दिन कई स्थानों पर वृक्षों को भी राखी बांधा जाता है। ईश्वर संसार के रचयिता एवं पालन करने वाले हैं अतः इन्हें रक्षा सूत्र अवश्य बांधना चाहिए।
रक्षा बन्धन का वैज्ञानिक महत्व:
रक्षा सूत्र की अवधारणा नितांत वैज्ञानिक है। प्राचीन काल में रक्षाबंधन के लिए प्रयुक्त रक्षासूत्र बनाने के लिए केसर, अक्षत, सरसों के दाने, दूर्वा और चंदन को रेशम के लाल कपड़े में रेशम के धागे से बांध लिया जाता था। इन सब सामग्रियों के चयन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण समाहित है। इन सामग्रियों में आध्यात्मिक चिकित्सकीय गुण छुपा है। रक्षासूत्र में रेशम मुख्य अवयव है। रेशम को प्रतिजैविक यानी कीटाणुओं को नष्ट करने वाला माना जाता है, जिसे antibiotic कहते हैं।
केसर को ओजकारक, उष्णवीर्य, उत्तेजक, पाचक, वात-कफ-नाशक और दर्द को नष्ट करने वाला माना गया है। सरसों चर्म रोगों से रक्षा करता है। यह कफ तथा वातनाशक, खुजली, कोढ़, पेट के कृमि नाशक गुणों से युक्त होता है। दूर्वा यानी दूब कांतिवर्धक, रक्तदोष, मूर्छा, अतिसार, अर्श, रक्त पित्त, यौन रोगों, पीलिया, उदर रोग, वमन, मूत्रकृच्छ इत्यादि में विशेष लाभकारी है।
चंदन शीतल माना जाता है, जो मस्तिष्क में सेराटोनिन व बीटाएंडोरफिन नामक रसायनों को संतुलित करता है। रक्षाबंधन की राखी में केसर भाई के ओज और तेज में वृद्धि का, अक्षत-भाई के अक्षत, स्वस्थ और विजयी रहने की कामना का, सरसों के दाने-भाई के बल में वृद्धि का, दूर्वा-भ्राता के सदगुणों में बढ़ोत्तरी का, और चंदन- भाई के जीवन में आनन्द, सुगंध और शीतलता में वृद्धि का प्रतीक है।
रक्षा सूत्र दाहिने हाथ पर बाँधने का कारण यह है कि दाहिना हाथ मस्तिष्क के बाएँ हिस्से से जुड़ा होता है। यह बायां हिस्सा तार्किक सोच, विश्लेषणात्मक क्षमताओं को नियंत्रित करता है। जब इस हाथ पर सूत्र बांधा जाता है तो हमारी संज्ञानात्मक क्षमताओं में वृद्धि होती है। विवेक जाग्रत होता है निर्णय लेने की क्षमता पुष्ट होती है। इसी प्रकार दाहिना हाथ शरीर के उर्जा प्रवाह से भी जुड़ा होता है। जब हम इस हाथ पर रक्षा सूत्र बाँधते हैं, तो हमारे अन्दर सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है जिससे एक-दूसरे के प्रति अटूट प्रेम, सम्मान, कृतज्ञता, सहयोग करने की भावना, ओज, प्रतिबद्धता स्थापित होती है और यही हमारे जीवन में समृद्धि और सफलता का मूल कारण बनती है।
रक्षाबंधन का इतिहास :
रक्षाबंधन कब प्रारम्भ हुआ इसके विषय में कोई निश्चित जानकारी। नहीं है लेकिन जैसा कि भविष्य पुराण में लिखा है, उसके अनुसार सबसे पहले इन्द्र की पत्नी ने देवराज इन्द्र को देवासुर संग्राम में असुरों पर विजय पाने के लिए मंत्र से सिद्ध करके रक्षा सूत्र बंधा था। इस सूत्र की शक्ति से देवराज इन्द्र युद्ध में विजयी हुए। शिशुपाल के वध के समय भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का आंचल फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। इस दिन सावन पूर्णिमा की तिथि थी। भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि समय आने पर वह आंचल के एक-एक सूत का कर्ज उतारेंगे। द्रौपदी के चिरहरण के समय श्रीकृष्ण ने इसी वचन को निभाया।
दूसरा उदाहरण अलेक्जेंडर व पुरू के बीच का माना जाता है। कहा जाता है कि हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरू की प्रखरता से काफी विचलित हुआ। इससे अलेक्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गईं थीं।
उसने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना था। सो, उन्होंने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी। तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी। क्योंकि भारतीय राजा पुरू ने अलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था।
सनातन हिन्दू संस्कृति में घालमेल एवं उसे सेक्युलरिज्म की चाशनी में डुबोने का कार्य कथित कम्युनिस्ट एवं इस्लाम ईसाई मिशनरी प्रणीत इतिहासकारों के द्वारा किया गया है और एक झूठी कहानी जिसके कोई ऐतिहासिक साक्ष्य या तथ्य उपलब्ध नही है फिर भी इसे जोड़ दिया है।
राजपूत रानी कर्मावती ने अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगल शासक हुमायूं को राखी भेजी। हुमायूं ने राजपूत रानी को बहन मानकर राखी की लाज रखी और उनके राज्य को शत्रु से बचाया।
मुगल काल के उस समय के इतिहास ग्रन्थों में यहां तक कि हुमायूँ ने अपने जीवन वृत्तांत में भी इस घटना का कोई उल्लेख नहीं किया है।
चंद्रशेखर आजाद का प्रसंग
बात उन दिनों की है जब क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थे और फिरंगी उनके पीछे लगे थे। फिरंगियों से बचने के लिए शरण लेने हेतु आजाद एक तूफानी रात को एक घर में जा पहुंचे जहां एक विधवा अपनी बेटी के साथ रहती थी। हट्टे-कट्टे आजाद को डाकू समझ कर पहले तो वृद्धा ने शरण देने से इनकार कर दिया लेकिन जब आजाद ने अपना परिचय दिया तो उसने उन्हें ससम्मान अपने घर में शरण दे दी। बातचीत से आजाद को आभास हुआ कि गरीबी के कारण विधवा की बेटी की शादी में कठिनाई आ रही है। आजाद महिला को कहा, ‘मेरे सिर पर पांच हजार रुपए का इनाम है, आप फिरंगियों को मेरी सूचना देकर मेरी गिरफ़्तारी पर पांच हजार रुपए का इनाम पा सकती हैं जिससे आप अपनी बेटी का विवाह सम्पन्न करवा सकती हैं।
यह सुन विधवा रो पड़ी व कहा- “भैया! तुम देश की आजादी हेतु अपनी जान हथेली पर रखे घूमते हो और न जाने कितनी बहू-बेटियों की इज्जत तुम्हारे भरोसे है। मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकती।” यह कहते हुए उसने एक रक्षा-सूत्र आजाद के हाथों में बाँध कर देश-सेवा का वचन लिया। सुबह जब विधवा की आँखें खुली तो आजाद जा चुके थे और तकिए के नीचे 5000 रूपये पड़े थे। उसके साथ एक पर्ची पर लिखा था- “अपनी प्यारी बहन हेतु एक छोटी सी भेंट- आजाद।”
रक्षाबंधन के इस पावन अवसर पर हम सब न केवल भाई-बहन के प्रेम का ही नहीं बल्कि राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य का भी स्मरण करें। संघ के पंच संकल्प 1. कुटुंब प्रबोधन, 2. समरसता, 3. पर्यावरण, 4. स्वदेशी, एवं 5. नागरिक कर्तव्य के माध्यम से होने वाले इन पंच परिवर्तन व्यक्ति परिवर्तन, परिवार परिवर्तन, समाज परिवर्तन, ग्राम परिवर्तन और राष्ट्र परिवर्तन के साक्षी बने, सहभागी बने। जैसे राखी हमें सुरक्षा और प्रेम का संकल्प दिलाती है, वैसे ही ये पंच परिवर्तन हमें स्वयं से राष्ट्र तक परिवर्तन लाने की प्रेरणा देते हैं।
“आओ, इस रक्षाबंधन पर रिश्तों की डोर के साथ-साथ भारत निर्माण की डोर को भी और मजबूत करें.”
“रक्षाबंधन की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं।।”

अवधूत चिंतन श्री गुरुदेव दत्त