3rd December 2024

एक मोहल्ले में दो कालू नहीं रह सकते!

Sunday Special

कालू 10 साल से मोहल्ले में शांतिपूर्वक रह रहा है। वह एक भारतीय श्वान है और ईश्वर ने उसे बोलने की शक्ति नहीं दी। इसके चलते वो अपने ऊपर लगाए जाने वाले आरोपों का खंडन नहीं कर सकता। इस कारण कोई भी उस पर कटखना होने का आरोप लगा सकता है, सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्ट्रीट डॉग्स को हटाए जाने को गलत ठहराए जाने के बाद भी उसे उसके मोहल्ले से निकाल सकता है क्योंकि कालू अपने लिए सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका भी दायर नहीं कर सकता।

इस बीच सत्ता के घमंड में चूर एक नेत्री की नजर उस पर पड़ गई और वह उस नेत्री की नजर में चढ़ गया। नेत्री ने कालू पर कटखना होने का आरोप लगाया और अब तक नगर निगम पर नेतागिरी का दबाव बनाकर वो तीन बार उसे उठवा चुकी है। हर बार कोई श्वान प्रेमी कालू को छुड़ा लाता है। जब इस नेत्री से बात करो तो सत्ता की हनक में वह बताती है कि कालू 8-10 लोगों को काट चुका है। ऐसा नहीं है कि कालू ने किसी को काटा नहीं है। उसने मोहल्ले के एक नशेड़ी को काटा है। नशेड़ी ने उसकी पूंछ पर पैर रख दिया था, इसके चलते कालू के पास कोई और विकल्प नहीं था और उसने नशेड़ी को दांत लगा दिए।

इस एक घटना के अलावा उसके काटने का और कोई रिकार्ड मौजूद नहीं है। यदि किसी ने इस नेत्री की पूंछ (वैसे वह खुद एक नेताजी की पूंछ है) पर यदि पैर रख दिया होता तो वह उसे कच्चा ही चबा जाती, कालू ने तो फिर भी दो दांत ही गड़ाए थे। इसके पहले कालू के खिलाफ प्रोपेगेंडा किया गया कि उसे रेबीज हो गया है। जब डॉक्टरी जांच से साफ हुआ कि उसे रेबीज नहीं है, तो उसे गुस्सैल साबित करने की कोशिश की जा रही है। जब कालू के 10 साल का रिकॉर्ड अपने आप उसके शांत होने की गवाही दे रहा है तो अब दादागिरी के जरिए उससे उसका इलाका छुड़ाने की कोशिश हो रही है।

मोहल्ले की वो गली जहां पर कालू 10 साल पहले पैदा हुआ था और जहां उसने लगभग अपना पूरा जीवन काट लिया है। कुत्ते की सामान्य आयु वैसे भी 13 वर्ष की होती है। इस नाते से वह सीनियर सिटीजन भी है।

ये फाइल फोटो है ये कालू का फोटो नहीं हैं।

बाद में पता चला इस मोटी ताजी नेत्री को कालू से जो समस्या है, वो अलग ही प्रकार की है। बताया जा रहा है कि इस नेत्री के पति का बचपन का नाम कालू है। मोहल्ले के बच्चे दिन भर कालू (श्वान वाला कालू) के पीछे कालू-कालू की आवाज लगाते घूमते हैं, जिससे यह नेत्री असहज हो जाती हैं। उसे ऐसा लगता है कि बच्चे उसके पति को कालू-कालू कहकर चिड़ा रहे हैं। तब से नेत्री ने तय कर लिया कि इस मोहल्ले में दो कालुओं के लिए गुंजाइश नहीं है। अब वो अपने पति को तो मोहल्ले से निकाल नहीं सकती तो, उसने अपनी सारी राजनीतिक और सामाजिक ऊर्जा कालू को मोहल्ले से बेदखल करने में लगा रखी है। अब कालू को आपकी दुआओं की जरूरत है, वह मतदाता नहीं है फिर भी नेता उसके पीछे पड़े हुए हैं। यह घटना यह भी बताती है कि देश के नेताओं के पास करने के लिए और कुछ भी नहीं है।

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