राम के नाम पर राजनीति चमकाने वाले ने ईश्वर की बजाय सत्य निष्ठा की शपथ ली

भाजपा से जुड़े सांसद विधायक लेते हैं ईश्वर की शपथ

सोमवार को लोकसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों का शपथ ग्रहण हुआ । सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शपथ ली और उनके बाद प्रोटेम स्पीकर के साथ काम करने वाले सांसदों ने शपथ ली । फिर सरकार में मंत्रियों को शपथ दिलाई गईऔर उसके बाद राज्यवार सांसदों ने शपथ ली। ये शपथ दो प्रकार की होती हैं एक ईश्वर की शपथ ली जाती है और दूसरी सत्य निष्ठा की। राजनीतिक आधार पर शपथ का भी विभाजन है। आम तौर दक्षिणपंथी राजनीतिक विचार वाले दलों के सांसद, जिनमें भाजपा आती है, ईश्वर के नाम से शपथ लेते हैं तो वहीं सत्य निष्ठा से प्रतिज्ञान को समाजवादी या साम्यवादी शपथ माना जाता है। भाजपा के लोग इसे दूसरे दलों से आने का असर बता रहे हैं।

सोमवार के शपथ ग्रहण समारोह में झारखंड के हजारीबाग से निर्वाचित मनीष जायसवाल ने सत्य निष्ठा से प्रतिज्ञान किया ,तो यह मामला चौंकाने वाला लगा क्योंकि वह भाजपा के टिकट पर सांसद बने हैं। इसके पहले वह दो बार भाजपा के टिकट पर विधायक भी रह चुके हैं। सांसद बनने से पहले वह हजारीबाग सदर सीट से विधायक हैं और विधानसभा में अपना कुर्ता फाड़ लेने के कारण चर्चित हुए थे। 21 मार्च 2023 को मनीष जायसवाल ने झारखंड की सोरेन सरकार पर तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए कुर्ता फाड़कर प्रदर्शन किया था। राममय माहौल में उन्होंने आरोप लगाया था कि जिला प्रशासन आदेश जारी करके रामनवमी के आयोजनों को रोक रहा है।

जायसवाल का कहना था कि सोरेन सरकार एक वर्ग को खुश करने में लगी हुई है। हजारीबाग की 104 साल पुरानी परंपरा को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है । इन तेवरों से मनीष जायसवाल को अच्छी खासी लोकप्रियता हासिल हुई और बाद में उन्हें यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा के स्थान पर भाजपा ने हजारीबाग से संसदीय का टिकट भी दिया। वे चुनाव जीत गए हैं और सोमवार को उन्होंने सांसद पद की शपथ भी ले ली है। वे भाजपा से पहले झारखंड विकास मोर्चा में थे और उसी पार्टी के टिकट पर विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं।

मोदी सरकार में भाजपा के इस मंत्री ने भी ली सत्य निष्ठा की शपथ

मोदी सरकार में जल शक्ति राज्य मंत्री के रूप में शामिल किए गए राजभूषण चौधरी ने भी ईश्वर के नाम पर शपथ लेने की बजाय सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा की है। वे बिहार के मुजफ्फपुर से सांसद हैं। उनके बारे में भी काना फूसी शुरू हो गई है कि उन्होंने समाजवादी या कम्युनिस्ट के रूप में शपथ ली है। चौधरी पेशे से डॉक्टर हैं और विकासशील इंसान पार्टी छोड़कर भाजपा में आए और उन्हें टिकट मिल गया। वे पहली बार संसद पहुंचे हैं और मंत्री भी बना दिए गए हैं।

संविधान सभा में भी हुई थी शपक के प्रारूप पर बहस

शपथ के प्रारुप को लेकर संविधान सभा में भी बहुत बहस हुई थी। प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ. बीआर आंबेडकर ने सांसदों के शपथ का एक प्रारूप तैयार किया था। संविधान में शपथ का विषय तीसरी अनुसूची में रखा गया। इसमें केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री, संसद सदस्य, राज्य विधानमंडल के सदस्य, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर आसीन व्यक्तियों द्वारा लिए जाने वाले प्रतिज्ञान और शपथ शामिल हैं।

डॉ. आंबेडकर ने एक संशोधन पेश किया, जिसमें लोगों को ‘ईश्वर’ के नाम पर शपथ लेने का विकल्प दिया गया। इस पर पंजाब के सदस्य सरदार भूपेन्द्र सिंह मान ने इसका नैतिक और धार्मिक आधार पर विरोध किया। सदस्य ने इस बात पर जोर दिया कि चूंकि ईश्वर विधानसभा के सदस्य नहीं हैं और न ही उनकी सहमति ली गई है, इसलिए ‘ईश्वर’ शब्द को शपथ में शामिल नहीं किया जा सकता। उन्होंने इसे गलत बताया।

वहीं एक अन्य सदस्य ने कहा कि इन पदों पर आसीन लोग धर्मनिरपेक्ष कार्य करेंगे, उनसे शपथ लेते समय ईश्वर का नाम लेने के लिए कहना कोई मतलब नहीं रखता। उन्होंने कहा कि राजनीति में व्यक्ति को अधार्मिक कार्य करने पड़ते हैं, इसलिए ‘ईश्वर’ को इसमें शामिल करना छीक नहीं है। सभा के कुछ सदस्य इस बात पर भी अड़े थे कि शपथ ग्रहण से पहले शपथ ग्रहण होना चाहिए, जिसमें ‘ईश्वर’ का जिक्र न हो। उनका मानना था कि ‘ईश्वर’ शब्द को बाद में रखने का मतलब है कि इसका महत्व कम हो गया है।

error: Content is protected !!