जहां प्लांटेशन नहीं हुआ वहीं बढ़ी हरियाली

एमपी के बारे में ग्लोबल फॉरेस्ट वाच की रिपोर्ट, पौधारोपण के विश्व रिकॉर्ड बनाए फिर भी जंगल हुए कम

इंदौर में 51 लाख पौधे रोपने की तैयारी है हालांकि मूल सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है कि जो पेड़ 12 फीट के तने वाले हैं उन्हें बचाने के लिए सरकार क्या कर रही है? इस बात का जवाब भी किसी के पास नहीं है कि क्या पौधे लगाने से पेड़ काटने का अधिकार मिल जाता है? इस बीच ग्लोबल फॉरेस्ट वाच ने प्रदेश को लेकर चौकाने वाला आंकड़ा जारी किया है कि प्रदेश में जहां पौधारोपण हुआ उसकी तुलना 22 गुना हरियाली वहां बढ़ी जहां पौधारोपण नहीं हुआ था। यानी कि आप समझ सकते हैं कि हमारे हस्तक्षेप के बिना भी जंगल लगते हैं और हमसे अच्छे लगते हैं।

मध्य प्रदेश में 2 जुलाई 2017 को 12 घंटे में छह करोड़ पौधे लगाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया गया था। सरकार ने अपने अधिकृत पोर्टल से यह जनकारी दी थी। इसका नेतृत्व भी तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिहं चौहान ने किया था। ये पौधे नर्मदा के दोनों किनारों पर रौपे गए थे। हालांकि इसमें से कितने पेड़ बने सरकार ने कभी भी इसकी कोई अधिकृत जानकारा नहीं दी लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले इस पौधारोपण से दो दर्जा प्राप्त मंत्री जरुर निकले थे।

95 प्रतिशत जंगल वहां बढ़े जहां प्लांटेशन नहीं हुआ

अब ग्लोबल फॉरेस्ट वाच की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2000 से 2020 तक मध्य प्रदेश में जो जंगल बढ़े उनमें 95 प्रतिशत जंगल वहां बढ़े जहां पौधारोपण नहीं किया गया था जबकि पौधारोपण वाले क्षेत्रों में केवल पांच प्रतिशत हरियाली बढ़ी। आंकड़ों के आधार पर 44400 हेक्टेयर हरियाली उन क्षेत्रों में बढ़ी है जहां प्लांटेशन नहीं किया गया था, इसके उलट प्लांटेशन किए जाने वाले क्षेत्रों में यह आंकड़ा केवल 2170 हेक्टेयर जंगल बढ़े हैं। ये आंकड़े प्लाटेंशन और उस पर हुए खर्च पर सवाल खड़ा करते हैं। यह भी बताते हैं कि पौधारोपण हमारे यहां केवल एक इवेंट है इसकी उपलब्धि कुछ नहीं है? खास बात ये है कि हरियाली बढ़ने वाले सभी क्षेत्र महाकोशल के हैं।

74 प्रतिशत हरियाली पौधारोपण वाले इलाकों में घटी

इतना ही नहीं ग्लोबल फॉरेस्ट वाच के हिसाब से 2013 से 2023 के बीच मध्य प्रदेश में जो हरियाली घटी है उनमें 74 प्रतिशत पौधारोपण वाले क्षेत्रों में घटी है। ये आंकड़े एक बार फिर पौधारोपण को कटघरे में खड़ा करते हैं। इसका पर्यावरण पर असर 326 किलो टन कार्बन डॉय ऑक्साईड के उत्सर्जन के बराबर माना गया है। वहीं ग्लोबन फॉरेस्ट वाच की निगरानी इतनी तेज है कि इसने पिछले चार सप्ताह में मध्य प्रदेश में जंगल को नष्ट करने के छह मामले संज्ञान में लिए हैं। ये सभी सीधी जिले के हैं। इसमें 0.68 हेक्टेयर जंगल को नुकसान पहुंचाने की बात कही गई है।

रिकार्ड के बीच एक प्रतिशत जंगल लुप्त हो गए

इधर प्रदेश में पौधारोपण के नए रिकॉर्ड बनते रहे लेकिन इन्हीं आंकड़ों ही बाजीगरी के बीच प्रदेश में 2001 से 2023 के 0.84 प्रतिशत वन क्षेत्र घट गया। यदि हेक्टेयर में देखें तो इसे 9.11 केएचए ( एक केएच यानी 1000 हेक्टेयर) बताया जाता है। इसको यदि केवल लॉक डाउन के समय ही इसमें गिरावट हुई थी। पिछले पांच सालों में ही एक हजार हेक्टेयर के जंगल लुप्त हो चुके हैं। पिछले बीस वर्ष में देश में जितना जंगल बढ़ा है उसमें प्रदेश की हिस्सोदारी केवल ढ़ाई प्रतिशत की है। इसमें मामले दक्षिण और पूर्वी भारत के राज्य हमसे बहुत आगे हैं। ये आंकड़ें बताते हैं कि पेड़ बचाना पेड़ लगाने की तुलना में ज्यादा जरुरी क्यों हैं।

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