कोर्ट ने पंजाब सरकार से मंत्रियों और विज्ञापनों पर हुए खर्च का ब्यौरा मांगा
मामला आयुष्मान भारत योजना में अस्पतालों का 500 करोड़ का बिल न चुकाने का
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने पंजाब के वित्त विभाग के प्रधान सचिव को निर्देश दिया है कि वह हलफनामा दायर कर राज्य द्वारा प्रिंट और ऑडियो-वीडियो मीडिया में विज्ञापन प्रकाशित करने पर हुए खर्च, मंत्रियों, विधायकों के घरों के नवीनीकरण पर हुए खर्च, दिसंबर 2021 से सितंबर 2024 तक की अवधि के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमेबाजी पर खर्च की गई राशि का ब्यौरा दें। यह आदेश कोर्ट आयुष्मान भारत योजना के तहत अस्पतालों की बाकाया लगभग 500 करोड़ की राशि का भुगतान न किए जाने की याचिका की सुनावई करते हुए दिया। कोर्ट ने सवाल किया है कि जब भारत सरकार ने यह राशि पंजाब सरकार को दे दी है तो फिर अस्पतालों के बकाए का भुगतान क्यों नहीं किया गया।
लाईव लॉ कि रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस विनोद भारद्वाज ने पंजाब सरकार से अलग शीर्षकों के तहत हलफनामा मांगा है जिनमें (i) प्रिंट और ऑडियो-वीडियो मीडिया में विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए किए गए व्यय, इसमें उन राज्यों और भाषाओं का विवरण शामिल है जिनमें ऐसे विज्ञापन प्रकाशित/प्रसारित किए गए हैं,
(ii) पंजाब में श्रेणी-। अधिकारियों तथा मंत्रियों/ विधायकों के घरों/कार्यालयों के नवीनीकरण पर होने वाला खर्च,
(iii) पंजाब राज्य में मंत्रियों/विधायकों और प्रथम श्रेणी के अधिकारियों के लिए नये वाहनों की खरीद पर होने वाला व्यय,
(iv) पंजाब राज्य या पंजाब राज्य या बाहर के किसी अन्य व्यक्ति या एजेंसी या साधन के लिए भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय या दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष मामलों की पैरवी/अनुपालन के लिए भुगतान किया गया मुकदमा खर्च,
(v) इसी अवधि के लिए बजटीय आबंटन की तुलना में मुफ्त बिजली, आटा दाल योजना आदि जैसी विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं में किया गया व्यय,
(iii) पंजाब राज्य में मंत्रियों/विधायकों और क्लास-। अधिकारियों के लिए नए वाहनों की खरीद पर किया गया व्यय और वाहन की जानकारी.
न्यायाधीश ने कहा कि जानकारी यह जांचने के लिए मांगी जा रही है कि किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए प्राप्त धनराशि/अनुदान का दुरुपयोग तो नहीं किया गया है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि किसी निर्दिष्ट उद्देश्य के लिए धन प्राप्त करने पर राज्य उस धन का संरक्षक होता है, तथा उसे केवल वास्तविक लाभार्थियों को जारी करना होता है, तथा उसे निश्चित रूप से राशि को अपने पास रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिससे नागरिक अपने बकाये के लिए मुकदमेबाजी करते रहें तथा वास्तविक प्राप्तकर्ता की लागत पर उक्त अनुदान का दुरुपयोग करते रहें।