किसान आंदोलन के बीच खुदरा व्यापारियों की रिटेल डेमोक्रेसी डे की हुंकार 

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ऑनलाइन ई – कॉमर्स कंपनियों और विदेशी कंपनियों के विरोध में आए खुदरा व्यापारी

सात करोड़ खुदरा व्यापारियों के संगठन ने निकाला विरोध मार्च

नई दिल्ली

दिल्ली में चल रहा है किसान आंदोलन के बीच दिल्ली के ही कनफेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स के आह्वान पर मंगलवार को रिटेल डेमोक्रेसी डे मनाया गया। नरेन्द्र मोदी के लोकल फॉर वोकल और आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को सामने रखते हुए कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने 15 दिसंबर को “रिटेल डेमोक्रेसी डे” के रूप में मनाये जाने की घोषणा की है। देश में कुछ बड़ी एवं प्रमुख ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा भारत के ई-कॉमर्स एवं रिटेल व्यापार में आर्थिक आतंकवाद जैसी गतिविधियों को लगातार जारी रखने के खिलाफ यह दिवस घोषित किया गया है।

इसके चलते मंगलवार को सभी राज्यों के अंतर्गत जिलों के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टरों को स्थानीय व्यापारी संगठन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सम्बोधित एक ज्ञापन सौंपा गया। ज्ञापन सौंपने से पहले प्रत्येक जिले में व्यापारियों द्वारा “रिटेल प्रजातंत्र मार्च” निकाला गया।

हालांकि इसकी ठीक-ठीक जानकारी नहीं मिली है कि कितने स्थानों पर यह मार्च निकाला गया और कहां ज्ञापन दिया गया है। लेकिन कैट का दावा है कि पूरे देश में मार्च निकाला गया है। लंबे समय से कैट ई-कॉमर्स के खतरों से व्यापारियों को आगाह करता आया है और सरकार ने इन्हें नियंत्रित करने की मांग करता आया है।

ई-कॉमर्स पॉलिसी की मांग

कैट ने पीएम मोदी से आग्रह किया है कि वह जल्द से जल्द एक ई-कॉमर्स पॉलिसी घोषित करें। इसमें सुदृढ़ एवं अधिकार संपन्न एक ई-कॉमर्स रेगुलेटरी अथॉरिटी के गठन, लोकल पर वोकल और आत्मनिर्भर भारत को अमलीजामा पहनाने के लिए देश भर में व्यापारियों एवं अधिकारियों की एक संयुक्त समिति केंद्रीय स्तर पर, राज्य स्तर पर एवं जिला स्तर पर गठित की जाए। इन समितियों में सरकारी अधिकारी एवं व्यापारियों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए।

मनमानी पर उतारू ई-कॉमर्स कंपनियां

कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी सी भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि कुछ बड़ी विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां मनमानी कर रहीं हैं और सरकार की ई-कॉमर्स पालिसी के प्रावधानों का लगातार घोर उल्लंघन कर रहीं हैं। इनमें विशेष रूप से लागत से भी कम मूल्य पर माल बेचना, भारी डिस्काउंट देना, पोर्टल पर बिकने वाले सामान की इन्वेंटरी पर नियंत्रण रखना, माल बेचने पर हुए नुकसान की भरपाई करना, विभिन्न ब्रांड कंपनियों से समझौता कर उनके उत्पाद एकल रूप से अपने पोर्टल पर बेचना आदि शामिल हैं।

ये सभी स्पष्ट रूप से सरकार की एफडीआई पॉलिसी के प्रेस नोट 2 में बिल्कुल प्रतिबंधित है। लेकिन उसके बावजूद भी ये कंपनियां खुले रूप से ये माल बेच रही हैं। जिससे भारत के ई-कॉमर्स व्यापार में ही नहीं बल्कि रिटेल बाजार में असमान प्रतिस्पर्धा का वातावरण बना हुआ है। इसके चलते देश के छोटे व्यापारी जिनके साधन सीमित हैं। उनका व्यापार चलाना बेहद मुश्किल हो गया है।

950 अरब डॉलर के बाजार पर कब्जे की तैयारी

कैट का कहना है कि भारत का रिटेल व्यापार वर्तमान में लगभग 950 अरब डॉलर वार्षिक का है। इससे लगभग 45 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है और देश में कुल खपत में रिटेल बाजार का हिस्सा 40 प्रतिशत है। इतने बड़े और विशाल भारतीय रिटेल बाजार पर कब्जा जमाने के लिए विश्व भर की कंपनियों की नजर है और इसी छिपे उद्देश्य को लेकर ई-कॉमर्स कंपनियां भारत में हर तरह का अनैतिक व्यापार करते हुए रिटेल बाजार पर अपना एकाधिकार स्थापित करना चाहती हैं।

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