फिलीस्तीनी समर्थन वाले पोस्टर फाड़ने पर आस्ट्रेलिया की यहूदी महिला के खिलाफ दर्ज एफआईआर केरल हाई कोर्ट ने खारिज की
केरल उच्च न्यायालय ने एक यहूदी मूल की ऑस्ट्रेलियाई महिला के खिलाफ दर्ज की गई दंगा भड़काने की एफआईआर को खारिज करने के आदेश दिए हैं। इस महिला को आईपीसी की धारा 153 के तहत गिरफ्तार किया गया था। महिला पर पोस्टर फाड़ने का आरोप था। ये पोस्टर इजराईल फिलीस्तीन युद्ध से संबंधित थे हालांकि इन पर इन्हें लगाने वाले संगठनों का नाम नहीं था। इस मामले में दो मुस्लिम संगंठनों ने महिला के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। इस महिला को देश छोड़कर जाने की कोशिश में एयरपोर्ट पर लुक आऊट नोटिस के जरिए पकड़ा गया था।
मामले में टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि याचिकाकर्ता को ‘ईश्वर के अपने देश’ में गिरफ़्तार किए जाने की दर्दनाक घटना का सामना करना पड़ा। जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस की एकल पीठ ने कहा, “चूँकि पोस्टर बिना किसी कानूनी अधिकार के लगाए गए थे और चूँकि इसमें किसी ऐसे संगठन का नाम नहीं था जिसने इसे लगाया था, इसलिए पोस्टर हटाने या पोस्टर फाड़ने के कार्य को अवैध कार्य या दंगा भड़काने वाला कार्य नहीं कहा जा सकता। धारा 153 आईपीसी के तहत अपराध के लिए याचिकाकर्ता पर मुकदमा चलाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और कार्यवाही रद्द किए जाने योग्य है।”,
कोर्ट ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप यह है कि उसने और उसकी सहेली ने फोर्ट कोच्चि में दो पोस्टर फाड़ दिए, जिन पर नारा था कि ” चुप्पी हिंसा है, मानवता के लिए खड़े हो जाओ”। इन्हें अज्ञात संगठन ने लगाया था। दो पोस्टरों से परेशान होकर, याचिकाकर्ता, जो यहूदी मूल की ऑस्ट्रेलियाई नागरिक है और उसकी सहेली ने पर्यटन कार्यालय के माध्यम से इसे हटाने की कोशिश की लेकिन इसमें असफल होने के बाद, कथित तौर उन्होंने इसे स्वयं हटाना जरूरी समझा। आदेश में कहा गया है, ” उन्होंने इन पोस्ट को इजराइल फिलिस्तीन के बीच जुड़े संघर्ष से जोड़कर देखा और इसके बाद याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर दो बैनर/पोस्टर फाड़ दिए।
जमात-ए-इस्लामी की छात्र शाखा स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन (एसआईओ) के क्षेत्रीय सचिव द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर याचिकाकर्ता के खिलाफ धारा 153 आईपीसी के तहत अपराध दर्ज किया गया था। याचिकाकर्ता को पुलिस ने गिरफ़्तार किया और बाद में उसे ज़मानत मिल गई। जब उसने देश छोड़ने की कोशिश की, तो उसे कोच्चि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पुलिस के आदेश पर जारी किए गए लुकआउट नोटिस के आधार पर जमानती अपराध के लिए हिरासत में ले लिया गया था। मजिस्ट्रेट की अदालत ने मामले का संज्ञान लिया, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने इसे रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
महिला के वकील ने कहा कि उसके द्वारा कथित तौर पर हटाए गए पोस्टर वैसे भी कानूनी रूप से स्वीकार्य पोस्टर नहीं थे और इसलिए इसे हटाना दुर्भावनापूर्ण या मनमाना कृत्य नहीं कहा जा सकता। कोर्ट को यह भी बताया गया कि याचिकाकर्ता को पर्यटक होने के नाते, मामला दर्ज कराने में बहुत परेशानी से गुजरना पड़ा है। वहीं इस मामले में सरकार के वकील का कहना था कि आरोपों का परीक्षण मुकदमे में किया जाना आवश्यक है। एफआईआर में शिकायतकर्ता को नोटिस दिया गया था, लेकिन उसकी ओर से कोई भी पेश नहीं हुआ।
कोर्ट का आदेश
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा कथित रूप से फाड़े गए पोस्टर बिना अनुमति के लगाए गए थे। उच्च न्यायालय ने कहा कि अवैध पोस्टर को फाड़ना दंगा भड़काने के इरादे से किया गया अवैध कार्य नहीं कहा जा सकता, इसलिए धारा 153 के तहत अपराध नहीं बनता।”अवैध पोस्टर को हटाना दुर्भावनापूर्ण या मनमाने ढंग से किया गया अवैध कार्य नहीं कहा जा सकता, भले ही यह किसी निजी व्यक्ति द्वारा किया गया हो, हालांकि आदर्श रूप से, याचिकाकर्ता को इसे स्वयं फाड़ने के बजाय कानून प्रवर्तन एजेंसियों से संपर्क करना चाहिए था। चूंकि बिना किसी कानूनी अधिकार के रखे गए पोस्टर को फाड़ना पूरी तरह से अवैध कार्य की श्रेणी में नहीं आता है, इसलिए धारा 153 का मुख्य तत्व अंतिम रिपोर्ट में गायब है।”
न्यायालय ने आगे कहा कि अंतिम रिपोर्ट इस बात पर “पूरी तरह से मौन” है कि क्या याचिकाकर्ता को इस बात की जानकारी थी कि पोस्टर फाड़ने से दंगा भड़केगा या लोग दंगा करने के लिए उकसाये जायेंगे। इसमें कहा गया है, “इस तरह के आरोप का न होना, वास्तविक शिकायतकर्ता के स्वयं के बयान के मद्देनजर महत्वपूर्ण हो जाता है कि पोस्टरों पर कभी किसी संगठन का नाम नहीं था।” इसमें यह भी कहा गया है कि संगठन के नाम के अभाव में याचिकाकर्ता यह नहीं सोच सकता था कि पोस्टर हटाने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153 के तहत अपराध हो सकता है। इसके बाद उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के खिलाफ प्राथमिकी और कार्यवाही रद्द कर दी।
क्या है धारा 153
धारा 153 दंगा कराने के इरादे से जानबूझकर उकसावे से संबंधित है और कहती है कि जो कोई द्वेषपूर्ण ढंग से या जानबूझकर कोई ऐसा काम करके जो अवैध है, किसी व्यक्ति को उकसावे की स्थिति में डालता है, या यह जानते हुए उकसावे की स्थिति में दंगा कराने का अपराध करने का इरादा रखता है, तो यदि ऐसे उकसावे के परिणामस्वरूप दंगा कराया जाता है तो उसे दंडित किया जाएगा।