21st November 2024

सरकार की नजर में एक पंखे के बराबर भी नहीं है पेड़ की वैल्यू!

पांच सौ रूपए देकर पा सकते हैं पेड़ से छुटकारा जबकि पेड़ से मिलते हैं लाखों के फायदे हर साल

कुल्हाड़ी भूल जाती है लेकिन पेड़ याद रखता है। इस अफ्रीकी कहावत को दोहराने से पहले पेड़ को यह याद रखना जरुरी है कि मप्र शासन के नगरीय निकाय ने उसकी कीमत केवल सौ रूपए तय की है। और हां यदि आप काटे जाने वाले पेड़ के बदले में पेड़ न लगाना चाहें तो आपको पांच सौ रुपए और चुकाने होंगे। शायद इतने में तो अब नया पंखा भी नहीं आता लेकिन आप पेड़ से छुटकारा पा सकते हैं। यह सरकारी नियम कितना पेड़ और पर्यावरण के हित में है ये आप खुद समझ लीजिए।

खास बात ये है कि आपको छाया देने वाले पेड़ को काटने की अनुमति के लिए धूप में जाने की भी जरुरत नहीं है। प्रदेश सरकार के नगरीय निकाय के पोर्टल पर आप पेड़ काटने की एप्लीकेशन ऑनलाइन ट्रेस कर सकते हैं। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हर दिन एक पौधा लगाते रहे लेकिन लगे हुए पेड़ को लेकर इस नियम की चिंता उनकी सरकार ने भी नहीं की।

तापमान 44 डिग्री तक पहुंच रहा है और आदत के मुताबिक लोगों के कटे हुए पेड़ों की याद आ रही है। ये बात और है कि इन्हें लेकर उन्होंने या फिर किसी राजनीतिक दल ने कभी कोई आवाज नहीं उठाई। यहां तक कि सरकार ने पेड़ काटने की अनुमति के लिए जो नियम बनाए हैं उसके हिसाब से पेड़ कटवाने के लिए सौ रूपए के शुल्क के साथ आपको एक आवेदन देना होगा। इसके बाद पेड़ का निरीक्षण होगा।

इसके आद आपको नया पेड़ लगाने की घोषणा के बाद आपको पेड़ काटने की अनुमति दे दी जाएगी। यदि आप नया पेड़ लगाने में असमर्थ हैं तो आपके पांच सौ रूपए का भुगतान और करना पड़ेगा। यानी कि छह सौ रूपए में आप हर साल मुफ्त में चालीस हजार रूपए की ऑक्सीजन देने वाले पेड़ को काट सकते हैं। बिना अनुमति पेड़ काटे जाने पर पांच हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान है या फिर अधिकारी मामले को न्यायालय भेज सकते हैं। इस  तरह के कितने मामले न्यायालय भेजे गए हैं। इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

356 पेड की कीमत 226 करोड़ रुपए

सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में पांच रेलवे ओवरब्रिज बनाए जाने के लिए काटे जाने वाले 356 पेड़ों की याचिका की सुनवाई करते हुए एक पांच सदस्यीय कमेटी बनाई थी जिसे पेड़ों के मूल्यांकन का काम सौंपा गया था। इस कमेटी ने पेड़ों से मिलने वाली ऑक्सीजन और इससे मिलने वाले अन्य लाभों के आधार पर पेड़ों की उम्र के प्रत्येक वर्ष के लिए इसकी कीमत 74500 रुपए तय की थी।

यानी कि यदि कोई पेड़ दस वर्ष पुराना है तो उसकी वैल्यू सात लाख पैंतालिस हजार रुपए मानी जाएगी। इस तरह से इस कमेटी ने इन पेड़ों का कुल मूल्य 226 करोड़ रुपए आंका था। इस कमेटी ने यह भी कहा था कि यदि एक व्यस्क पेड़ के बदले आप 25 पौधे भी लगा देंगे तो इसकी कमी पूरी नहीं होगी। कमेटी ने सरकार को पुल बनाने के लिए वैकल्पिक रास्ते का सुझाव दिया था।

पर्यावरण को 15 लाख करोड़ का नुकसान?

बताया जा रहा है कि पिछले पांच साल में इंदौर में विकास के नाम पर डेढ़ लाख छायादार पेड़ काटे गए हैं । यदि सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से कमेटी बनाकर पेड़ों  के मूल्य का विश्लेषण कराया यदि इन पेड़ों की वैल्यू की उसी तरह से गणना की जाए तो जितने पैसे विकास के नाम पर इंदौर में पिछले बीस वर्ष में खर्च नहीं हुए हैं, ये राशि उससे भी ज्यादा होगी। यदि एक पेड़ की कीमत दस लाख रुपए मानी जाए तो यह आंकड़ा पद्रह लाख करोड़ के आसपास का होगा। मध्य प्रदेश सरकार का पिछला बजट 3.14 लाख करोड़ का था और प्रदेश की 2023-24 की अनुमानिक जीडीपी 13 लाख करोड़ रुपए की थी। यानी विकास की सच्चाई ये है?

जनहित के पांच हजार पेड़

हाल में चुनाव मैदान में उतरी जनहित पार्टी ने शहरवासियों से पूछा है कि हुकुमचंद मिल के पांच हजार और एमओजी लाइन के पांच सौ पेड़ कट रहे हैं, बताओ क्या करें? इसके अलावा बंगाली चौराहे से पत्रकार चौराहे के बीच डिवाडर पर कुछ साल पहले लगाए गए पेड़ भी मेट्रो के लिए हटाए जाने हैं। इतना ही नहीं स्वामी विवेकानंद स्कूल में आईडीए नया बगीचा बना रहा है कि और इसके चलते वहां के पुराने पेड काटने की तैयारी है। बगीचे के लिए पेड़ काटने का संभवत: ये दुनिया के पहला मामला होगा। 15 हजार पेड़ काटने का विकास इंदौर भोपाल एक्सप्रेस वे पर भी आने वाला है। पहले ही खंड़वा रोड़ हजारों पेड़ों की बलि ले चुका है!

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