भाजपा भी करवा चुकी है नोटा पर वोट

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी का फॉर्म हुआ था रद्द

इंदौर में कांग्रेस प्रत्याशी के नाम वापसी के बाद कांग्रेस ने अधिकारिक रूप से अब नोटा का बटन दबाने की मुहिम शुरू की है। भाजपा भी दस साल पहले तमिलनाडू में अपने प्रत्याशी का नामांकन रद्द होने के बाद इस तरह की मुहिम चला चुकी है। इस सीट पर नोटा तीसरे स्थान पर रहा था और 45 हजार से अधिक मतदाताओं ने इसका उपयोग किया था। इस सीट पर तत्कालीन यूपीए सरकार के एक मंत्री चुनाव लड़ रहे थे। पूरे तमिलनाडू के कुल नोटा का दस प्रतिशत इसी सीट पर दबाया गया था। खास बात ये है कि नोटा इन चुनाव के एक साल पहले ही अस्तित्व में आया था।

मामला तमिलानाडू की नीलगिरी सीट का है। 2014 में यहां पर डीएमके के वरिष्ठ नेता और केंद्र सरकार में संचार मंत्री रहे ए राजा चुनाव लड़ रहे थे। वे उस समय उन पर 2जी घोटाले के आरोप भी थे। नीलगिरी सीट पर भाजपा का वोट लगातार बढ़ रहा था और तमिलनाडू में भाजपा ने आधा दर्जन से ज्यादा छोटी पार्टिया का एक गठबंधन बनाया था। भाजपा के हिस्से में नीलगिरी सीट आई थी। यहां पार्टी के अधिकारिक प्रत्याशी का नामांकन रद्द हो गया था हालांकि इंदौर की तरह प्रत्याशी दूसरे दल में शामिल नहीं हुआ था। इससे नाराज होकर भाजपा ने अपने समर्थकों से नोटा दबाने को कहा था। भाजपा इस सीट को दो बार 1998 और 1999 में जयललिता की पार्टी के गठबंधन साझीदार के रूप में जीत चुकी है। इसके चलते ये उन तीन सीटों पर शामिल है जहां भाजपा का अपना कुछ आधार है। इसके चलते भाजपा के नोटा दबाने की मुहिम के कारण इस सीट पर नोटा तीसरे नंबर पर रहा था। 46559 मतदाताओं ने नोटा का उपयोग किया था। इस चुनाव में ए राजा लगभग एक लाख पांच हजार वोट से हारे थे। बताया जाता है कि किसी लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक नोटा का उपयोग किए जाने का रिकॉर्ड है, हो सकता है इस बार इंदौर इस रिकॉर्ड को तोड़ दे।

 जब दूसरे नंबर पर रहा नोटा

2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दो विधानसभा सीटों पर नोटा दूसरे स्थान पर रहा था। लातूर ग्रामीण विधानसभा पर पूर्व मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख के बेटे धीरज चुनाव लड़ रहे थे। उन्होंने 1.35 लाख वोट पाकर जीत दर्ज की थी और दूसरे स्थान पर 27500 वोट के साथ नोटा रहा था। तीसरे स्थान पर 13500 वोट के साथ भाजपा-शिवसेना गठबंधन के प्रत्याशी थे। इसी चुनाव में एक और सीट पालुस कड़ेगांव सीट पर कांग्रेस के प्रतापराव कदम ने 1.71 लाख वोट पाकर जीत दर्ज की थी। दूसरे स्थान पर नोटा था। 20631 मतदाताओं ने इसका उपयोग किया था। भाजपा शिवसेना के प्रत्याशी को दस हजार वोट भी नहीं मिले थे और वो तीसरे स्थान पर था।

कुछ राज्यों में नोटा के नियम बदले

नोटा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका लंबित है जिसमें मांग की गई है कि यदि किसी सीट पर नोटा सबसे ज्यादा दबाया गया हो तो वहां चुनाव रद्द हो जाने चाहिए और इस तरह से रिजेक्ट किए गए प्रत्याशियों को फिर से चुनाव लड़ने की अनुमित नहीं मिलना चाहिए। हालांकि अब तक इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ है। लेकिन कईं राज्यों ने स्थानीय चुनाव में नोटा को लेकर कुछ नियम बनाए हैं। इसमें महाराष्ट्र और राज्य का निर्वाचन आयोग प्रमुख है। महाराष्ट्र में पचायत चुनाव में ऐसे मामले सामने आए थे जहां पर सरंपच का चुनाव जीतने वाले प्रत्याशी को नोटा से कम वोट मिले। अब महाराष्ट्र ऐसी स्थिति में पंचायत चुनाव रद्द हो जाएंगे। वहीं दिल्ली के चुनाव आयोग ने इस तरह की स्थिति के लिए प्रावधान किया है कि यदि कहीं पर नोटा सर्वाधिक दबाया जाता है तो चुनाव अधिकारी परिणाम की घोषणा नहीं करेगा बल्कि इस तरह के मामले को अभिमत के लिए राज्य के चुनाव आयोग को भेजेगा। वहीं इसके परिणाम के बारे में निर्णय लेगा।

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