कर्नाटक भाजपा में बगावत के आसार, पूर्व उपमुख्यमंत्री मोदी के मंच पर नहीं आए

कर्नाटक में पूर्व मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा और पूर्व उप मुख्यमंत्री ईश्वरप्पा भाजपा की मुश्किलें बढ़ाई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मिशन दक्षिण पर निकले हुए हैं। कर्नाटक के शिव मोगा में उनकी रैली थी और रैली में उनके साथ पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व उपमुख्यमंत्री ईश्वरप्पा को भी शामिल होना था लेकिन ईश्वरप्पा मंच पर नहीं आए । इसके उलट उन्होंने कहा कि उनके ऊपर समर्थकों का बड़ा दबाव है कि वह शिवमोगा से यह येदियूरप्पा के बेटे बीएस राघवेंद्र के खिलाफ चुनाव लड़ें। राघवेंद्र फिलहाल कर्नाटक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं।

जहां तक ईश्वरप्पा की बात है तो वह प्रदेश में राजनीतिक रूप से दूसरे महत्वपूर्ण वोक्कालिंग समुदाय से आते हैं। येदियूरप्पा के साथ ही उन्हें भी प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को स्थापित करने वाला नेता माना जाता है। इसके चलते उनकी बगावत के भाजपा के लिए क्या मायने हैं इसे आसानी से समझा जा सकता है । दूसरी बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा में मंच पर आने से इनकार कर देने का साहस बीजेपी में कम ही नेता कर सकते हैं लेकिन यदि ईश्वरप्पा ने ऐसा किया है तो इसका मतलब है कि वह अपने नए रास्ते तलाश चुके हैं । हालांकि ईश्वरप्पा ने अब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना आदर्श बताया है लेकिन उनके बयान यह बता रहे हैं की अंदरूनी हालात ठीक नहीं है । कहा जा रहा है कि जिस तरह से भाजपा ने येदियूरप्पा के बेटे को टिकट और संगठन में पद दिया है उसी तरह से वे भी अपने कार्तेश के लिए लोकसभा का टिकट चाह रहे थे।

पूर्व मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा भी नाराज

बगावत की कहानी यहां खत्म नहीं होती। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और मोदी सरकार के पूर्व रेल मंत्री सदानंद गौड़ा भी पार्टी से नाराज है । वे बेंगलुरु ग्रामीण से सांसद हैं और इस बार पार्टी ने उनका टिकट काटकर यह येदियूरप्पा की करीबी और केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे को यहां से उम्मीदवार बनाया है। इसके बाद सदानंद गौड़ा ने कहा कि मैंनेतो चुनावी राजनीति छोड़ दी थी पार्टी ने खुद ही मुझे टिकट दिया और अब पार्टी ने मेरा टिकट काट दिया है । अब मुझे अपनेआगे के रास्ते के बारे में सोचना है। सदानंद गौड़ा की यह बयान भारतीय जनता पार्टी का सिर दर्द बढ़ने के लिए काफी है।

दक्षिण में भाजपा की उम्मीदें केवल कर्नाटक पर ही चिकी हैं और वहां भी पार्टी सत्ता से बाहर है। ऐसे में पार्टी की स्थिति पिछले लोकसभा चुनाव की तरह मजबूत नहीं है । इसे देखते हुए पार्टी ने एचडी देवेगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्युलर से तालमेल किया है लेकिन पार्टी के भीतर के विवाद उसे इस तालमेल से होने वाले फायदे से दूर कर सकते हैं। पार्टीा को वैसे भी दक्षिण में तमिलनाडू, कैरल और आंध्र प्रदेश में उम्मीद नहीं है। वहीं तेलंगाना में पार्टी कुछ बेहतर कर सकती है लेकिन वहां भी इस बार कांग्रेस को सत्ता की संजीवनी मिली हुई है।

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