जिंदा लड़की की हत्या में पुलिस ने तीन छात्रों को भेजा जेल

Imprisonment

और अब सात साल बाद मिलेगा एक-एक लाख रुपए का मुआवजा,

पुलिस ने जले शव का डीएनए टेस्ट भी नहीं कराया

रांची

पुलिस जो करे वो कम है। प्रेमी के साथ फरार हुई युवती की हत्या हो गई ये मान कर पुलिस ने अज्ञात शव के आधार पर हत्या का केस दर्ज कर तीन युवकों को जेल भेज दिया। बाद में युवती के प्रेमी के साथ लौटने पर मामले का खुलासा हुआ तो पुलिस पानी-पानी हो गई। मामला झारखंड़ की राजधानी रांची के चुटिया थाने का है। यहां की पुलिस ने जिस प्रीति नामक लड़की के फर्जी अपहरण व हत्या के बाद जला देने की झूठी कहानी गढ़कर तीन निर्दोष छात्रों को जेल भेजा था, उन्हें अब सात साल के बाद एक-एक लाख रुपये का मुआवजा मिलेगा।

राज्य मानवाधिकार आयोग के आदेश के बाद अब इन छात्रों को मुआवजा देने के लिए महालेखाकार को पत्राचार किया गया है। बता दें कि 15 फरवरी 2014 को रांची के चुटिया की रहने वाली प्रीति नामक एक युवती लापता हो गई थी।

बिना डीएनए टेस्ट कराए मान लिया शव प्रीति का

ठीक दूसरे ही दिन बुंडू थाना क्षेत्र स्थित मांझी टोली पक्की रोड के समीप एक युवती का शव जले हुए हालत में मिला था। पोस्टमार्टम में यह खुलासा हुआ था कि उस युवती की हत्या के बाद अपराधियों ने उसे जला दिया था। शव अज्ञात था, पुलिस ने प्रीति के परिजनों को पहचान करने को कहा। कद-काठी लगभग एक जैसी होने के कारण प्रीति के परिजनों ने आशंका जताई कि हो सकता है, यह उसकी बेटी का शव हो। पुलिस ने डीएनए मैच कराए बिना मान लिया कि शव प्रीति का है।

इस केस में पुलिस ने प्रीति के अपहरण के बाद हत्या कर जलाने का मामला दर्ज किया और धुर्वा के तीन युवकों अजित कुमार, अमरजीत कुमार व अभिमन्यु उर्फ मोनू को जेल भेज दिया। 15 मई 2014 को रांची पुलिस ने तीनों के विरुद्ध अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म व हत्या कर जलाने के मामले में आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया था। युवक इन्कार करते रहे कि उनका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं, लेकिन पुलिस ने एक नहीं सुनी। उसे तो जैसे बस फाइल बंद करनी थी

प्रेमी के साथ भाग गई थी प्रीति

अपने प्रेमी के साथ फरार हुई प्रीति करीब चार महीने बाद 14 जून 2014 को जिंदा वापस लौटी, तो सबके होश उड़ गए। मामले ने तूल पकड़ा और इस पूरे प्रकरण की जांच की जिम्मेदारी अपराध अनुसंधान विभाग (सीआइडी) को दे दी गई। सीआइडी की जांच के बाद तथ्य की भूल बताते हुए कोर्ट में रिपोर्ट प्रस्तुत किया गया। इसके बाद तीनों ही निर्दोष छात्र बरी हुए थे।

सीआइडी की जांच के बाद इस केस के अनुसंधानकर्ता सुरेंद्र कुमार, तत्कालीन चुटिया थाना प्रभारी कृष्ण मुरारी और तत्कालीन बुंडू थाना प्रभारी संजय कुमार निलंबित किए गए थे। साबित हुआ था कि इन तीनों ने बिना उचित अनुसंधान के ही तीनों छात्रों को गिरफ्तार किया और उन्हें जेल भिजवा दिया। जेल से बाहर आने के बाद पीड़‍ित युवकों के परिजनों ने राज्य मानवाधिकार आयोग की शरण ली थी। पिछले साल ही आयोग ने यह आदेश जारी किया था, लेकिन राशि की स्वीकृति संबंधित पत्राचार करने में एक साल लग गए।

अब सवाल कि वो शव किसका था ?

चुटिया की प्रीति के जिंदा लौटने के बाद एक सवाल आज तक अनसुलझा है कि 16 फरवरी 2014 को बुंडू के मांझी टोली पक्की रोड के समीप स्थित जंगल से बरामद एक युवती का जला हुआ शव किसका था। उस शव का अंतिम संस्कार प्रीति के परिजन ने ही कर दिया था। इसमें रांची पुलिस की लापरवाही यह रही कि पुलिस ने उस शव के डीएनए से प्रीति के परिजन के डीएनए को मैच नहीं कराया था। अगर डीएनए मैच कराया होता, तो फर्जी प्रीति हत्याकांड में तीन निर्दोष छात्र जेल नहीं जाते।

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