संघ के स्वयंसेवक क्या सोचते हैं पूर्व प्रचारकों की पार्टी के बारे में ?
कितना प्रभाव डालेगी जनहित पार्टी ?
इंदौर.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से निकले तीन पूर्व प्रचारकों तथा कई अन्य पूर्व पदाधिकारियों ने मिलकर जनहित पार्टी का गठन किया है। इस पार्टी को अपने विधिवत गठन के पहले ही राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार मिल चुका है क्योंकि राष्ट्रीय मीडिया ने भी इस घटनाक्रम को प्रमुखता से कवर किया है। पार्टी का गठन करने वाले तीनों पूर्व प्रचारकों का कार्य क्षेत्र मालवा रहा है। ऐसे में इस पार्टी के बारे में यहां के स्वयंसेवकों की राय ज्यादा महत्वपूर्ण है।
जनहित पार्टी के पहले यह पूर्व प्रचारक हितरक्षा अभियान के तहत जो कोम कर रहे थे, उसका केंद्र इंदौर ही था। उस समय भी इनके कई अभियानों में संघ के स्वयंसेवक भाग लेते थे लेकिन ओंकारेश्वर में बन रही शंकराचार्य की मूर्ति के विरोध के बाद इन लोगों ने सार्वजनिक रूप से हितरक्षा अभियान के साथ दिखाना बंद कर दिया था।

वैसे तो संघ के स्वयंसेवक अनुशासन से बंधे हुए होते हैं। इसके चलते वे विवादित मुद्दों पर या तो संगठन की लाइन पर बोलते हैं या फिर चुप रहते हैं लेकिन इसके बाद भी हमने यह जानने की कोशिश की कि उनका इस नए राजनीतिक दल के बारे में क्या सोचना है?
शासकीय सेवा से निवृत हुए एक स्वयंसेवक ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि हम वही करेंगे जो संगठन कहेगा। पहले तो उन्होंने पार्टी के गठन को पूरे तरीके से गलत बताया और कहा कि इससे हिंदुओं का वोट बटेगा लेकिन बाद में कहा कि यदि भाजपा में सुधार नहीं होगा तो इस तरह की घटनाएं बढ़ती रहेंगी। उन्होंने स्वीकार किया कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के अंदर सत्ता का अहंकार आ गया है और अब वह किसी को कुछ नहीं समझते।
इसी तरह से वकालत कर रहे एक अन्य स्वयंसेवक ने पहले तो कुछ भी बात करने से मना किया। फिर कहने लगे कि अभय जैन 16 साल पहले प्रचारक थे, आज के युवा स्वयंसेवक उनको और उनके कामों को नहीं जानते। बाद में बातचीत में उन्होंने स्वीकार किया कि अब संगठन के भीतर भी कुछ समस्याएं हैं और यह सत्ता जनित बीमारियां हैं। भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया है और समाजजन अब इस विषय पर संघ की भूमिका को लेकर प्रश्न पूछते हैं। जब सभी स्तरों पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार है तो ऐसे में अब भ्रष्टाचार की जिम्मेदारी किसकी है?
इंदौर के पुराने इलाके राजवाड़ा क्षेत्र के एक स्वयंसेवक, जो कि व्यवसायी हैं, उन्होंने कहा कि हम भारतीय जनता पार्टी के साथ हैं। वर्तमान समय में नरेंद्र मोदी को मजबूत किए जाने की आवश्यकता है। हालांकि वे राज्य सरकार से बहुत प्रसन्न नहीं है। प्रदेश में अधिकारियों को लूट की खुली छूट मिली हुई है। वे लाडली बहना योजना के भी खिलाफ बोले और उन्होंने कहा कि मेहनतकश लोगों को उनके अधिकार का भी नहीं मिल रहा है ऐसे में सरकार वोट के लिए खैरात बांट रही है। अब हम किस मुंह से केजरीवाल को गाली देंगे? वे फिलहाल इस पार्टी के लिए कोई संभावना नहीं देखते।
संघ के एक वर्तमान पदाधिकारी, जो एक स्वयंसेवक के रूप में अभय जैन के साथ काम कर चुके हैं, उन्होंने कहा कि पार्टी बनाना सभी का अधिकार है, इस बारे में कुछ नहीं कह सकते। एक प्रचारक के रूप में अभय जैन को याद करते हुए उन्होंने कहा कि वह नेताओं से सतत दूरी बनाकर रखते थे और इसके चलते उनके बारे में हमने कभी नहीं सोचा था कि वह कभी राजनीतिक दल भी बनाएंगे। इस स्वयंसेवक ने स्वीकार किया कि उनके साथ जो लोग जुड़े हुए हैं, वे भले ही संसाधन संपन्न नहीं है लेकिन वे लोग कर्मठ हैं। वे लोग शॉर्टकट पर भरोसा नहीं करते हैं। ऐसे में पार्टी को लाइमलाइट में आने में अभी समय लगेगा।
यह पूछे जाने पर कि क्या स्वयंसेवक इस पार्टी के लिए वोट करेंगे तो इस पर एक युवा स्वयंसेवक ने कहा कि हो सकता है कि कुछ लोग गुपचुप तरीके से वोट भी दें और दूसरी तरीके की मदद भी करें। हालांकि पार्टी बहुत देरी से बनी है इसके चलते इस चुनाव में बहुत कुछ कर पाएंगे ऐसा नहीं लगता। उन्होंने यह स्वीकार किया कि जो मुद्दे इस नए राजनीतिक दल ने उठाए हैं वह बहुत हद तक सही हैं। सभी सरकारी कार्यालय दुकानों में बदल गए हैं और वहां बिना लिए दिए कुछ नहीं होता। इस पर ध्यान दिया जाना जरूरी है।
कुछ स्वयंसेवक नए राजनीतिक दल को भाजपा के असंतुष्टों का ठिकाना बता कर खारिज भी करते हैं। उन्हें ऐसी जानकारी है कि एक पूर्व विधायक ने भी टिकट न मिलने की सूरत में जनहित पार्टी से चुनाव मैदान में उतरने के लिए संपर्क किया है। जैसे-जैसे टिकट बंटवारे की नाराजगी बढ़ती जाएगी वैसे-वैसे भाजपा के कुछ लोग इस पार्टी के साथ जुड़ सकते हैं। इसका असर कुछ सीटों पर तो भाजपा को भुगतना पड़ सकता है।
लंबे समय से राजनीतिक पत्रकारिता कर रहे नितिन मोहन शर्मा ने इस विषय पर कहा कि चुनाव संसाधनों से लड़े जाते हैं, ऐसे में राजनीतिक दल बनाना आसान है लेकिन उसे चलाने के लिए संसाधन जुटाना कठिन है। देश को निश्चित रूप से एक हिंदूवादी विकल्प की आवश्यकता है ताकि भारतीय जनता पार्टी की मोनोपोली पर अंकुश लग सके लेकिन जनहित पार्टी वह कर पाएगी यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। उन्होंने बताया कि समाज जीवन में संबे समय तक जमीनी स्तर पर काम करने वाले संघ के ये लोग अगर चुनावी राजनीति के मैदान में अगर दो-दो हाथ करने उतरते हैं तो नि:संदेह इससे भाजपा को नुकसान होगा। वर्तमान में भले ही भाजपा इसे कम आंके लेकिन कालांतर में संघ के पूर्व प्रचारकों का यह एकाकी प्रयास रंग जरुर लाएगा क्योंकि भाजपा पर अब यह आरोप गहराई से चस्पा होता जा रहा कि वह अपनी जड़ों की भूल रही है।