14 साल की लड़की जिसने हॉकी के लिए असम की सड़कों से भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम का सफर तय किया
उधार की हॉकी स्टिक से लंबा सफर तय किया है मुनमुनी दास ने
भुवनेश्वर
ओलंपिक में भारतीय महिला एवं पुरुष हॉकी टीमों के दमदार प्रदर्शन के बाद ऐसा माना जा रहा है कि हॉकी के स्वर्णिम दिन लौट रहे हैं। और इसके पीछे भी उड़ीसा सरकार के योगदान की प्रशंसा हो रही है। ओलंपिक में दमदार प्रदर्शन करने वाले कई खिलाड़ियों के बारे में हमें पता चला है कि उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि ऐसी नहीं थी कि वे आसानी से खेलो को अपना पाते।
हालांकि अपने दमदार प्रदर्शन के दम पर अब ये लोग और इनके किस्से लोगों की जबान पर है, वहीं भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम में 14 साल की लड़की भी हाथ में स्टिक थामे ओलंपिक में जाने की तैयारी कर रही है। इस लड़की का नाम है मुनमुनी दास और खास बात यह है कि 14 साल की मुनमुनी असम की रहने वाली हैं। हॉकी के प्रति उसका जुनून ही है जो वो असम के तिनसुकिया स्थित अपने गांव से भुवनेश्वर पहुंच गई है।
मुनमुनी ने 10 साल की उम्र में हॉकी के खेल को अपनाया था, जब उन्होंने अपने स्कूल में लड़कों को हॉकी खेलते देखा था। उनके गांव में कोई भी लड़की हॉकी नहीं खेलती थीं मुनमुनी को इसके चलते लड़कों के साथ ही खेलना पड़ा। समस्या हॉकी स्टिक और किट की थी। मुनमुनी के पास दोनों नहीं थे और न ही सड़क पर मछलियां बेचकर गुजारा करने वाले पिता की ऐसी स्थिति थी कि वह बेटी को स्टिक और किट दिला पाते। तो मुनमुनी दो 5 मिनट के लिए उन लड़कों की ही किट से हॉकी खेलती थी, जब वो लड़के आराम करने के लिए रुकते थे।
हॉकी के प्रति उनका जुनून देखकर उनके घर के पास रहने वाले एक भैया ने उन्हें अपनी पुरानी किट दी। लगभग एक साल तक मुनमुनी ने इसी से काम चलाया। पिता चाहते थे कि बेटी खेले। हालांकि उनके पास पैसे नहीं थे तो भी उन्होंने किसी तरह से डेढ़ साल बाद मुनमुनी को हॉकी और किट लाकर दी।
इस बीच मुनमुनी ने अपने खेल से पहचान बनानी शुरू कर दी और उन्हें जूनियर खिलाड़ियों के लिए ट्रायल्स में बुलाया गया। पिता समय पर पैसों का बंदोबस्त नहीं कर पाए इसलिए वो जा नहीं पाई। लेकिन उनके टैलेंट को देखते हुए हॉकी इंडिया ने उन्हें फिर मौका दिया। मुनमुनी ने असम से भुवनेश्वर तक का सफर इस मौके के साथ ही तय किया।
भुवनेश्वर में हॉकी की नवल टाटा हॉकी एकेडमी है। हॉकी इंडिया की पहल पर उन्हें एकेडमी में शामिल किया गया। आज मुनमुनी नवल टाटा हॉकी एकेडमी की टीम की रीड की हड्डी कही जाती हैं। उनके कोच विजय पासवान बताते हैं कि वह बहुत आगे जाएंगी। उन्हें भविष्य की रानी रामपाल माना जा रहा है, वही रानी रामपाल जो मुनमुनी की आदर्श हैं। मुनमुनी के पिता का भी सपना था कि बेटी भारत के लिए खेले। हालांकि पिछले साल पिता का निधन हो गया। लेकिन उनका सपना आज भी मुनमुनी की आंखों में है।
हो सकता है कि अगले ओलंपिक में मुनमुनी हमें भारत के लिए खेलती दिख जाए। तब हम मुनमुनी की इस कहानी को याद करेंगे।
और अंत में ओलंपिक के पदक विजेता खिलाड़ियों को बहुत सी धनराशि ईनाम में मिल रही है। हो सकता है कि मुनमुनी को भी कल इस तरह के ईनाम मिलें लेकिन उसे आर्थिक मदद की जरुरत अभी है। वैसे भी ये लड़की अपनी प्रतिभा तो दिखा चुकी है।