क्यों नहीं हो रही 10 लाख युवाओं की सुनवाई
मामला पटवारी प्रवेश परीक्षा का, विधानसभा चुनाव जीत जाने के बाद भाजरा बेफिक्र
मध्य प्रदेश में एक बार फिर पटवारी भर्ती परीक्षा का मामला गरमाया हुआ है। युवा सड़कों पर हैं। रैली, घरना और प्रदर्शन हो रहे हैं लेकिन सरकार ने अब तक इन पर कोई ध्यान नहीं दिया है। वो बेफिक्री के साथ लोक सभा चुनाव की तैयारियों में लगी हुई है। खास बात यह है कि इस परीक्षा से प्रभावित युवाओं की संख्या 10.4 लाख के आस पास है लेकिन इसके बाद भी सरकार कहीं से भी इनके दबाव में नहीं दिख रही है।
सोमवार रात को भी एक बार फिर पटवारी भर्ती परीक्षा के खिलाफ इंदौर में रैली निकाली गई। बताया जा रहा है कि 28 फरवरी को भोपाल में घरना दिए जाने की तैयारी है। अब तक की जानकारी के अनुसार सरकार इन प्रदर्शनकारी युवाओं के साथ वार्तालाप शुरू करने की इच्छुक नहीं हैं। हां यदि लोकसभा चुनाव के पहले कुछ परिस्थितियां बदलीं तो जरूर इनके साथ वार्तालाप और आश्वासन दिया जाएगा। इस बारे में हमने आंदोलन में शामिल कुछ छात्रों से बात की कि उन्हें इस बारे में क्या लगता है
रैली में शामिल एक युवा ने अपना नाम संजय बताया, उसेने कहा कि भर्ती घोटाले के बाद भी भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ विधानसभा चुनाव जीत चुकी है, इसके चलते वे इन आंदोलन को कोई महत्व नहीं दे रहे हैं। युवा का कहना था कि प्रदेश में कभी भर्तियों और परीक्षाओं में भ्रष्टाचार का मुद्दा चुनाव में सरकार के सामने संकट बनकर नहीं खड़ा हुआ इसके चलते वे इस तरह के आंदोलनों से बेफिक्र हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या वो वही बात बोल रहे हैं जो हाल ही में राहुल गांधी ने यूपी में अपनी न्याय यात्रा के दौरान कही थी। वहां पर उन्होंने भी यूपी के युवाओं को कहा था कि तुम में दम नहीं है इसलिए सरकार तुम्हारी सुनती नहीं। इस पर युवा बोला कि मुझे नहीं पता राहुल गांधी ने क्या कहा था लेकिन जो आपने बताया यदि उन्होंने यह कहा था तो वो सच कह रह थे।
न्याय नहीं तो वोट नहीं होना चाहिए
एक अन्य युवा ने अपना नाम दिनेश बताया और कहा कि यदि 10.4 लाख युवाओं और उनके तीन परिजन और समझे तो इस तरह से लगभग 42 लाख वोट होते हैं। विधानसभा चुनाव में इनमें से अधिकांश लोगों ने भाजपा को ही वोट दिया नहीं तो भाजपा इतने बहुमत से नहीं जीतती। उस समय यदि न्याय नहीं तो वोट नहीं का नारा दे दिया गया होता तो शायद निर्णय हो जाता। सरकार ने जांच का झुनझुना पकड़ा दिया और बाद में जांच भी मन माफिक हो गई।
यह कहने पर कि अब लोक सभा चुनाव आ रहे हैं। अब न्याय नहीं तो वोट नहीं का नारा दे दो? तो उसने कहा कि भाजपा विधानसभा चुनाव में फंसी हुई थी लोकसभा चुनाव में तो उसे लग रहा है कि वो मोदी के नाम से ही जीत जाएगी। लोग अपने लिए वोट नहीं कर रहे हैं वो मोदी के लिए वोट कर रहे हैं।
हालांकि दिनेश अब भी मानते हैं कि इसका हल यही है कि न्याय नहीं तो वोट नहीं का नारा दिया जाना चाहिए क्योंकि इस नारे से शायद सोए हुए विपक्ष में कुछ जान आए और दूसरा सरकारों को भी लगने लगे कि लोग इस बार खुद के लिए वोट करेंगे। 10 लाख युवा और उनके जुड़े परिवार यदि ठान लें तो ही इस मुद्दे का हमारे पक्ष में निपटारा संभव है।
ये सुझाव आपने अपने साथी युवाओं के बीच रखा या नहीं इस पर दिनेश ने कहा कि रखा था लेकिन यह कहा गया कि आंदोलन को राजनीति से दूर रखना है। हमारी समझ में ये नहीं आता कि जब पटवारी परीक्षा के बारे में निर्णय करने वाले लोग राजनीतिक हैं तो बिना राजनीतिक हुए हम इसका समाधान कैसे करेंगे?