बेंगलुरु में 2700 किलो कुत्ते का मांस जप्त, पुलिस ने बताया सिरोही बकरे का मांस
चार गोरक्षकों के खिलाफ पुलिस ने दर्ज की एफआईआर
बैंगलोर रेलवे स्टेशन पर उस समय विवाद की स्थिति बन गई जब जयपुर से ट्रेन द्वारा लाए गए 2700 किलो मांस के भरे 90 इंसुलेटेड बॉक्स जप्त किए गए। गौरक्षक कार्यकर्ताओं ने इस मांस के कुत्ते का मांस होने का आरोप लगाया और वह स्टेशन पर एकत्रित हो गए। पुलिस अधिकारियों ने रविवार को स्पष्ट किया कि यह बकरे का मांस है।
इस मामले में पुलिस ने तीन एफआईआर दर्ज की हैं। इनमें से दो इसे कुत्ते का मांस बताकर प्रदर्शन करने वाले गौ रक्षक कार्यकर्ताओं के खिलाफ हैं। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “एक एफआईआर मांस के परिवहन के खिलाफ दर्ज की गई है, जिसमें संदेह था कि इसमें कुत्ते का मांस मिला हुआ हो सकता है, और दूसरी एफआईआर गौरक्षक पुनीत केरेहल्ली के खिलाफ खाद्य गुणवत्ता विभाग के अधिकारियों को उनके कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने यानी शासकीय कार्य में बाधा के लिए दर्ज की गई है।”
पुनीत और उसके चार साथियों के खिलाफ सार्वजनिक स्थान पर गैरकानूनी तरीके से एकत्र होने के लिए एक और एफआईआर दर्ज की गई है। बताया गया है कि यह मांस बेंगलुरु के मांस व्यापारी अब्दुल रजाक ने मंगवाया है।
कर्नाटक में शेवोन मांस की कमी
मानस के पकटन को शेवोन यानी की बकरी का मांस बताए जाने परगोरक्षकों ने सवाल उठाए हैं कि जब कर्नाटक में भेड़ बकरी की इतनी उपलब्धता है तो इतनी भारी मात्रा में यह मानस बाहर से क्यों लाया गया है?
इस बारे में गांधी कृषि विज्ञान केंद्र ( जीकेवीके) के विशेषज्ञों का कहना है कि शहर में शेवोन की भारी कमी है।। जीकेवीके में पशु विज्ञान के एक पूर्व प्रोफेसर ने बताया, “भेड़ों की प्रचलित किस्मों के विपरीत, कर्नाटक में बकरियों की अपनी कोई किस्म नहीं है। इस वजह से यहां शेवोन की 25% से 30% की कमी है। साथ ही, कर्नाटक के अन्य जिलों के साथ-साथ बेंगलुरु मांस का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इस अंतर को पाटने और मांस की अच्छी कीमत को ध्यान में रखते हुए, व्यापारी अन्य राज्यों से शेवोन की सस्ती किस्में मंगवाते हैं, जहाँ बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है।”
अधिकारियों का दावा यह सिरोही बकरा का मांस, कुत्ते जैसी लगता है यह बकरा
इस मामले में पुलिस अधिकारियों ने दावा किया है कि यह मांस कुत्ते का नहीं है, बल्कि सिरोही नामक एक विशेष नस्ल के बकरे का है, जो राजस्थान और गुजरात के कच्छ-भुज क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर पाया जाता है। इनकी पूंछ भी थोड़ी लम्बी होती है और उस पर धब्बे भी होते हैं। इसलिए लोग आसानी से उन्हें कुत्ता समझ सकते थे। नमूनों में कुत्ते के मांस का कोई संकेत नहीं था। मटन और शेवन की कम आपूर्ति के कारण कुछ व्यापारी इसे दूसरे राज्यों से मंगवाते हैं और यहां इसे सस्ती कीमत पर बेचते हैं।”