मोदी सरकार के कार्यकाल में कट चुके हैं 3 करोड़ से ज्यादा पेड़!

 

वास्तविक कटाई इससे भी अधिक होने का अनुमान 

सबसे ज्यादा कटाई मध्य प्रदेश में 

सनातन में प्रकृति को भगवान माना गया है और इसके अलग-अलग हिस्से को अलग-अलग रूप में पूजा भी जाता है। इसके बावजूद भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां पर अंधाधुंध जंगल काटे जा रहे हैं और यह सब कुछ विकास के नाम पर हो रहा है। इसके लिए न केवल भरमाने वाले आंकड़े दिए जा रहे हैं बल्कि विकास के नाम पर बन रहे ज्यादातर एक्सप्रेस वे की उपयोगिता भी सवालों के घेरे में है। हाल यह है कि 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से अब तक देश में विकास परियोजनाओं के नाम पर 3 करोड़ से ज्यादा पेड़ काटे जाने का अनुमान है। यह आंकड़ा भीउन पेड़ों का है जिनकी कटाई की आधिकारिक अनुमति दी गई थी। बिना अनुमति काटे गए पेड़ इसमें शामिल नहीं है जिनकी संख्या भी 8 अंकों में हो सकती है।

पेड़ों की कटाई के लिए ये आंकड़े आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए अलग-अलग स्रोतों से एकत्रित किए गए हैं। इनमें सबसे चौंकाने वाली जानकारी मध्यप्रदेश की है कि 2020-21 के दौरान अकेले मध्य प्रदेश में 1640000 पेड़ काटे गए जो कि देश में सर्वाधिक थे। अब ऐसे में मध्य प्रदेश वासियों को बढ़ते हुए तापमान की शिकायत नहीं करनी चाहिए क्योंकि उन्होंने तो विकास के नाम पर वोट किया है और आजकल विकास का मतलब गैर जरूरी जगह पर सीमेंट कंक्रीट लगाने से ज्यादा कुछ बचा नहीं है? 2014 से अब तक (अप्रैल 2025 तक) भारत में विकास परियोजनाओं के लिए कितने पेड़ों की कटाई हुई, इसकी सटीक संख्या का अनुमान लगाना मुश्किल है क्योंकि नवीनतम और व्यापक डेटा सीमित है। हालाँकि अलग अलग स्रोत से उपलब्ध जानकारी और आंकड़ों के आधार पर, इसका जवाब खोज जा सकता है। 

ये है डेटा

2014-2019 (पहले 5 वर्ष): 

पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, 2014 से 2019 के बीच विकास परियोजनाओं के लिए लगभग 1,09,75,844 (1.1 करोड़) पेड़ों की कटाई की अनुमति दी गई थी। यह डेटा लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था, और यह विभिन्न राज्यों और परियोजनाओं (सड़कें, रेलवे, बांध, आदि) के लिए था। इसमें से सबसे अधिक कटाई 2018-19 में हुई, जब 26.91 लाख पेड़ काटे गए।

– 2019-2021 (अगले 2 वर्ष): 

2020-21 में, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने लोकसभा में बताया कि सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए 30,97,721 (लगभग 31 लाख) पेड़ काटे गए। इस दौरान मध्य प्रदेश में सबसे अधिक (16,40,532), उसके बाद उत्तर प्रदेश (3,11,998) और ओडिशा (2,23,375) में पेड़ काटे गए। दिलचस्प बात यह है कि 2020-21 में दिल्ली में एक भी पेड़ विकास परियोजनाओं के लिए नहीं काटा गया।

2021 के बाद (2023 तक)

हाल के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में बड़े बुनियादी ढांचा परियोजनाओं (जैसे राजमार्ग और रेल परियोजनाएं) के लिए लगभग 23 लाख पेड़ों की कटाई प्रस्तावित थी। इसमें से कुछ परियोजनाएं संरक्षित क्षेत्रों से होकर गुजरती हैं।

 कटाई का कुल अनुमान

यदि हम 2014-2019 के 1.1 करोड़ पेड़ों और 2020-21 के 31 लाख पेड़ों को जोड़ें, तो यह लगभग 1,40,75,844 (1.4 करोड़) पेड़ बनता है।

2021 से 2025 (अप्रैल 2025 तक) के लिए सटीक डेटा उपलब्ध नहीं है, लेकिन यदि हम हर साल औसतन 30-35 लाख पेड़ों की कटाई मानें (जैसा कि 2020-21 में देखा गया), तो अतिरिक्त 4-5 वर्षों में लगभग 1.2 से 1.75 करोड़ और पेड़ काटे गए हो सकते हैं।

इस तरह, 2014 से अप्रैल 2025 तक कुल अनुमानित संख्या 2.6 से 3.15 करोड़ पेड़ों के बीच हो सकती है। यह केवल एक अनुमान है, क्योंकि वास्तविक संख्या परियोजनाओं की संख्या, सरकारी नीतियों, और पर्यावरण नियमों पर निर्भर करती है।

ज्यादा हो सकता है वास्तविक आंकड़ा

कई रिपोर्टों में कहा गया है कि आधिकारिक आंकड़े वास्तविक कटाई से कम हो सकते हैं, क्योंकि अवैध कटाई और अनियंत्रित विकास परियोजनाओं को अक्सर शामिल नहीं किया जाता।

कुछ क्षेत्रों, जैसे हिमालयी क्षेत्र और नदी घाटियों में, पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई ने चिंता बढ़ाई है।

सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट्स में दावा किया गया है कि बीजेपी सरकार (2015-2020) के दौरान पेड़ों की कटाई की दर बढ़ी, लेकिन ये दावे असत्यापित हैं।

फिर भी एक अनुमान के तौर पर कहा जा सकता है कि 2014 से अप्रैल 2025 तक भारत में विकास परियोजनाओं के लिए अनुमानित रूप से 2.6 से 3.15 करोड़ पेड़ काटे गए हो सकते हैं।

गैर उपयोगी प्रोजेक्ट में कट रहे पेड़

खास बात यह है कि विकास के नाम पर जंगलों का यह विनाश विकास की उपयोगिता के बिना हो रहा है। इसका उदाहरण मध्य प्रदेश का प्रस्तावित नया इंदौर भोपाल एक्सप्रेस वे है। इसके लिए प्रदेश सरकार ने केंद्र से 158 हेक्टेयर जंगल में 21000 से ज्यादा पेड़ काटने की अनुमति मांगी है। वर्तमान में इंदौर भोपाल मार्ग अपने आप में बहुत सम है और स्वयं के वहां से 3 घंटे में और बस से चार घंटे से भी कम समय में भोपाल पहुंचा जा सकता है, ऐसे में नए एक्सप्रेस वे की जरूरत क्या है? कुछ पैसा खर्च करके इसे ही और बेहतर किया जा सकता है।

यहां पर सरकार के विकास के दावों पर भी सवाल उठते हैं कि क्या विकास केवल ठेकेदारों के लिए किया जाता है या फिर जनता के पैसों को ठिकाने लगाने के लिए? यह बात जनता को सोचनी चाहिए क्योंकि यह उसकी गाढ़े पैसों की कमाई है। इस तरह से देश में बिना उपयोगिता के बहुत सारे प्रोजेक्ट घोषित किए गए हैं जिनका फायदा बड़ी ठेकेदार कंपनी उठा रही हैं। इन ठेकेदार कंपनियों के नाम इलेक्शन बॉन्ड के मामले में भी सामने आए थे। 

इस तरह के ठेकों में भ्रष्टाचार को लेकर कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है लेकिन अलग-अलग स्रोतों से यह अनुमान लगाया जाता है कि देश में सड़क निर्माण परियोजना 20 से लेकर 50% तक की कमीशन खोरी होती है। इसे आंकड़ों में समझे तो 1 लाख करोड रुपए की विकास परियोजनाओं में 20000 से 50000 करोड रुपए तक का काला धन पैदा होता है और यह पैसा आपका है और किसकी जेब में जाता है यह आपको पता है! 

बिना वजह के विकास का एक उदाहरण जगह-जगह पर एयरपोर्ट बनना भी है। डायरेक्टर जनरल ऑफ़ सिविल एविएशन यानी डीजीसीए का नियम है कि दो एयरपोर्ट के बीच में कम से कम 200 किलोमीटर का अंतर होना चाहिए लेकिन इसके बावजूद सरकार इंदौर और उज्जैन दोनों में एयरपोर्ट बनने पर आमादा है। जबकि दुनिया में वायु परिवहन से होने वाले प्रदूषण के चलते नॉर्वे में इंटरसिटी फ्लाइट्स को कम से कम कर दिया गया है और जो शहर बिजली वाली रेलवे लाइन से जुड़े हुए हैं उनके बीच फ्लाइट नहीं चलती है। जबकि नॉर्वे का क्लाइमेट हमारे क्लाइमेट की तुलना में बहुत अच्छा है, लेकिन हमारे यहां राजनीतिक फायदे और ठेकेदारी में कमीशन के नाम पर जगह-जगह पर एयरपोर्ट बनाने का धंधा चल रहा है! 

अभी जंगल काटने में कमा रहे फिर लगाने में कमाएंगे? 

जब भी जनता का कोई समूह पेड़ों की कटाई पर सवाल उठाता है तो नेता प्लांटेशन स्कीम का ढकोसला लेकर बैठ जाते हैं। असम से लेकर मध्य प्रदेश तक सरकारों ने प्लांटेशन के विश्व रिकार्ड बनाने के दावे किए हैं। इन इवेंट्स में पेड़ों की खरीद में भ्रष्टाचार के आप भी लगे हैं और इतना ही नहीं गिनीज बुक को विश्व रिकॉर्ड दर्ज करने के लिए भारी भरकम राशि भी दी गई है। कुल मिलाकर जंगल का विनाश करने वालों की पांचो उंगलियां घी में और सर कढ़ाई में है। आज जंगल काट कर माल बना रहे हैं कल जंगल लगाने के नाम पर पैसा बना लेंगे और जनता इस विकास ही समझती रहेगी! 

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