कब तक हम हबीबियो को कोसेंगे???

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कब तक लव जिहाद पर गुर्रायँगे..??

नितिन मोहन शर्मा

जावेद हबीब की हरकत नाक़ाबिल ऐ बर्दाश्त है। लेकिन प्रश्न सबसे अहम वही है….की ये हमारे कुल खानदान की महिलाओं को जरूरत क्या है हबीब के पास जाने की??
उनके समुदाय की महिलाएं तो कही आती जाती नही इस तरह के तमाशे में….सारी फैशन परस्ती हमारे परिवार की महिलाओं और युवतियों के ही सर चढ़कर क्यो बोल रही है…..???? सारा नंगापन इस तरफ ही क्यो??

क्या सुंदरता की चाह उनके समुदाय में नही??? वहां तो रत्तीभर भी नंगापन नही। किनकी बच्चियां-युवतियां चड्डिया पहनकर घूम रही है..?? उनकी अधेड़ ओर प्रौढ़ महिलाएं लेगिंग पहनती है क्या??? ब्यूटी पार्लर में नजर आती है क्या??? क्या किसी ने उनके इलाके में पार्लर के बोर्ड लगे देखे?? क्या सुंदर दिखने की चाह वहां नही होती होगी??
क्या देर रात पब जैसे शराब खाने उनके घर की बहन बेटियों से आबाद है??? देह के अनुपात से कम वस्त्र या देह दर्शना परिधान उस तरफ नजर आते है??? क्या फैशन की आंधी उस तरफ का रास्ता नही करती??? उनकी आंखों के सामने से भी तो वो सब सीरियल-फिल्म ओर विज्ञापन गुजरते होंगे न…जिसे हम इस सब गड़बड़झाले का दोष देते है?? ये बीमारी उनके घर मे घुसी क्या??

…हंसता नही होगा वो समाज जब हम हबीबियो ओर लव जेहाद पर छाती माथा कूटते है या फिर मुट्ठी भींचते है??? इस तरफ तो सब ढका-छुपा मर्यादा में है। वहां तो आज भी सामुहिक परिवार व्यवस्था कायम है। और हम…??
किस समाज मे आलिंगनबद्ध होकर प्रिवेडिंग शूटिंग हो रही है?? बदन पर टैटू कौन सा समाज बनवा रहा है??? नवरात्रि जैसे पावन पर्व पर गरबे के नाम पर पीठ उघाड़ी बच्चियां किस समुदाय की है?? नाभि दर्शना साड़ियां-परिधान किस समाज की महिलाओं का हिस्सा है??

अपने सतीत्व ओर सौन्दर्य की रक्षा करने के लिए जिस समाज मे अनेक जोहर हुए…पवित्र अग्नि की प्रज्वलित लो में माँ-बहन-बेटियाँ समा गई…उस समाज की नारियां आज किस स्तर पर है??? बाजारों में ही नही…अब तो गली कूंचों ओर मोहल्लों में तेजी से खुलते चाय सुट्टा बार मे उस वर्ग की नवयोवनाये नजर आती है..?
हमारा तर्क रहता है कि नारी को पूजने वाला समाज है हम। बराबरी का दर्जा देने वाला समाज। लेकिन इसमें अंग प्रदर्शन जैसी उन्मुक्तता ओर स्वछंदता कब कैसे ओर क्यो शामिल हो गई??

क्या ये चिंता और चिंतन का विषय नही होना चाहिए??
कब तक हम हबीबियो को कोसेंगे???
कब तक लव जिहाद पर गुराएँगे..??

फेहरिस्त तो बहुत लंबी है….
आक्रोश भी बहुत है…

लेखक नितिन शर्मा वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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