अमरवाड़ा उपचुनाव का खर्च भाजपा और कमलेश शाह से क्यों ना वसूला जाना चाहिए? 

आपकी राजनीति का खर्चा जनता क्यों चुकाए? 

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले की अमरवाड़ा विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है । यह चुनाव इसलिए नहीं होना है कि विधायक अब इस दुनिया में नहीं रहे हो या अयोग्य घोषित कर दिए गए हों।  यह उपचुनाव केवल इसलिए हो रहा है क्योंकि कमलेश शाह नाम के कांग्रेस विधायक को ऐसा लगता है कि उनकी राजनीति के लिए भारतीय जनता पार्टी एक ज्यादा अच्छी पार्टी है या फिर उनके अंदर कुछ डबल इंजन टाइप का विचार आ गया है या फिर अचानक से अयोध्या में राम जी ने उन्हें पुकार लिया है? ऐसे किसी कारण के चलते उन्होंने कांग्रेस विधायक पद से इस्तीफा दिया है और अब वह भाजपा की ओर से उपचुनाव लड़ रहे हैं। यहां सवाल यह उठता है कि इन परिस्थितियों में क्या इस उपचुनाव का खर्च भाजपा और कमलेश शाह से नहीं वसूला जाना चाहिए ? आखिर जनता की गाढ़ी पसीने की कमाई से कमलेश शाह के दल बदल का पैसा क्यों वसूला जाना चाहिए? 

खास बात तो यह है कि भारत में चुनाव को लेकर इस तरह का कोई नियम नहीं है कि कौन सी और किन परिस्थितियों में चुनाव का पैसा किस से वसूला जाना चाहिए लेकिन क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि जब एक पार्टी से त्यागपत्र देकर वही प्रत्याशी उसी स्थान से दूसरी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ना अब आम होता जा रहा है? तो क्या इसके लिए नियम नहीं बनाए जाने चाहिए कि यदि आपने किसी विधानसभा से इस्तीफा दिया है और आप अगले ही उपचुनाव में फिर वही से चुनाव लड़ते हैं तो आपको या तो चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया जाए या फिर उसे चुनाव का समग्र खर्च आपसे क्यों न वसूला जाए? 

चलिए जब तक नियम नहीं है तो नैतिकता से इस मुद्दे का समाधान निकाला जाना चाहिए। इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी तो उन राजनीतिक दलों की है जो दिन पांच बार खुद को खुद ही नैतिकता का प्रमाण पत्र देते रहते हैं। जनता के हित की बड़ी-बड़ी बात करने वाले नेता और पार्टियां क्या इस बात को लेकर अपनी जिम्मेदारी समझेंगी? फिलहाल तो बस इतनी ही राहत है कि देश में चुनाव को लेकर इतनी नैतिकतावादी सोच अपराध घोषित नहीं किया गया है।

देश में जिस तरह की राजनीति चल रही है उसे देखते हुए यह संभव नहीं लगता कि निकट भविष्य में पार्टियां इस तरह के खेल से खुद को दूर कर लेंगी ऐसे में क्या यह सही नहीं है कि जनता को ही इस तरह के उम्मीदवारों को हिसाब कर देना चाहिए जो पहले किसी और पार्टी से चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे हैं और बाद में दल बदल कर फिर से उपचुनाव लड़ने आ गए हैं?

प्रदेश की जनता को 2020 में इस तरह का मौका मिला था । जब बड़े पैमाने पर कांग्रेस के विधायकों ने इस्तीफा देकर बाद में भाजपा के टिकट पर उन्हीं विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था। यदि मध्य प्रदेश की जनता ने उस समय इन्हें सबक सिखा दिया होता तो कोई कमलेश शाह फिर से इस्तीफा देकर उपचुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं करता। खैर मध्य प्रदेश के पास अब ये मौका नहीं है लेकिन अमरवाड़ा के पास तो अभी यह मौका है कि वह इस बात का स्पष्ट संदेश दे कि उसे अपनी राजनीतिक दुकान के लिए दल-बदल करने वाले नहीं चलेंगे!  

एक उपचुनाव के लिए 35 स्टार प्रचारक

खास बात तो यह है कि एक विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने 35 स्टार प्रचारकों की भारी भरकम सूची जारी की है। इस सूची में महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, पूर्व केंद्रीय मंत्री और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व शर्मा, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय सम्मिलित हैं। इनमें से तीन लोग ऐसे हैं जो मुख्यमंत्री तथा उपमुख्यमंत्री जैसे दायित्व पर हैं। वे जब अमरवाड़ा प्रचार करने आएंगे तो क्या उनके राज्य का एक दिन का काम प्रभावित नहीं होगा और दूसरी बात यह जानना भी जरूरी है कि ये लोग अपनी अपनी राज्य सरकारों से खर्च पर अमरवाड़ा चुनाव प्रचार करने आएंगे या फिर यह व्यक्तिगत खर्च करके यहां पर पहुंचेंगे? यानी यह भी देखना होगा कि इन तीन राज्यों की जनता को भी इस उपचुनाव का खर्च भुगतना पड़ता है या नहीं? 

दो से ढाई करोड़ खर्च होंगे जनता के 

चुनाव पर रिसर्च करने वाली एजेंसियों के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने चुनाव कराने के लिए प्रति मतदाता 72 रुपए खर्च किए थे जो कि 2024 में यह राशि बढ़कर 96 प्रति मतदाता हो गई है। इसमें चुनाव के प्रशिक्षण से लेकर ईवीएम, मतदान की व्यवस्था, मतगणना सहित चुनाव के सारे प्रशासनिक खर्च सम्मिलित हैं। इस आधार पर यदि अमरवाड़ा के ढाई लाख मतदाताओं पर किए जाने वाले चुनावी खर्च का अनुमान लगाए तो यह दो से ढाई करोड रुपए के बीच बैठता है। यानी कि पार्टी कमलेश शाह को बदलना थी तो उसके लिए जनता ढाई करोड रुपए की चपत खाए?  इसमें वो नुकसान तो शामिल ही नहीं है जो कि मतदान के लिए एक दिन छुट्‌टी रखने से होगा और प्रशासनिक अमले के चुनाव में लग जाने के चलते आम जनता को परेशानी होगी वो तो जोड़ी ही नहीं गई है। अब निगाहें अमरवाड़ा की जानता की ओर हैं यदि वे चाहेंगे तो दल बदलुओं के ईलाज का संदेश दे देंगे!

और आखिर में …

भाजपा अमरवाड़ा सीट अब तक केवल दो बार जीत सकी है। पहलीबार 1990 में भाजपा प्रत्याशी मेहमन शाह उईके चुनाव जीते थे। उसके बाद 2008 में भाजपा के प्रेम नारायण ठाकुर चुनाव जीते थे लेकिन वे भी कमलेश शाह की तरह कांग्रेस से आयातित प्रत्याशी थे। 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मोनिक बट्‌टी को टिकट दिया था, उन्हें पार्टी ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से आयात किया था।

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