“छत्रपति शिवाजी महाराज का अनसुना पन्ना”
आशुतोष ग्वाले
छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम सुनते ही रक्त में उत्साह, हृदय गति में वृद्धि और भारत के विजय इतिहास पर गर्व का अनुभव होता है।
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इतिहास के पन्ने मानो अपने आप आंखों के सामने पलटे जा रहे हैं। छापामार युद्ध, आदिलशाही, निजामशाही और औरंगजेब जैसे अनेक प्रकार के शिवाजी महाराज के संघर्ष का स्मरण होता है। परंतु इतिहास के एक पन्ने पर आज भी धूल पड़ी हुई है, जिससे हमारी अधिकांश युवा पीढ़ी वंचित है।
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छत्रपति शिवाजी महाराज ने ना सिर्फ भूमि पर दुर्ग और हिंदू साम्राज्य की स्थापना की बल्कि समुद्र पर भी अपना आधिपत्य स्थापित किया। जब छत्रपति शिवाजी महाराज का शासन काल प्रारंभ हुआ, उस समय समुद्र तट पर पोर्तुगीज, डच, ब्रिटिश, और सिद्दी का दबदबा था।
छत्रपति शिवाजी महाराज यह बात भली भांति जानते थे की, हिंदू स्वराज्य की सुरक्षा और व्यापारिक दृष्टि से भी कोकण प्रदेश और गोवा के समुद्र तट कितने महत्वपूर्ण है।
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सन 1657 से 1659 की अवधि के दौरान शिवाजी राजे ने अपने सेनापति आबाजी सोनदेव से “आरमार” (मराठी में नेवी को आरमार बोलते हैं) और नौसेना दल तैयार करने को कहा।
उस समय हमारे पास जहाज बनाने वाली सामग्री और कुशल कारीगर तो थे, परंतु किसी भी कारीगर के पास जहाज बनाने का अनुभव नहीं था। छत्रपति शिवाजी महाराज ने पुर्तगाल से रोई लेइतेइ व्हेगस और उनकी टीम को मुंह मांगी रकम पर जहाज निर्माण कार्य के लिए नियुक्त किया।
साथ ही राजे ने अपने सेनापति आबाजी सोनदेव से कहा की, हमारे जितने भी कारीगर है, वह सब कुशल कारीगर के साथ-साथ बुद्धिमान एवं चतुर भी हों।
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जहाज निर्माण कार्य शीघ्र शुरू भी हो गया, परंतु कुछ समय बाद पुर्तगाली काम को मझधार में छोड़ भाग गए। शिवाजी महाराज की दूरदर्शिता के कारण और बुद्धिमान कुशल कारीगरों की बदौलत जहाज निर्माण कार्य बिना पुर्तगालियों के संपन्न हुआ। इन्हीं जहाजों की बदौलत जल्द ही कोकण प्रदेश के समुद्री तट पर कई दुर्ग स्थापित हुए।
जहां पहले पुर्तगाल, डच, सिद्दी और ब्रिटिश का ध्वज लहराता था, वहां अब केसरिया भगवा, हिंद स्वराज्य का ध्वज लहराने लगा।
8 फरवरी 1665 को शिवाजी महाराज 60 जहाजों के साथ बसरूर (वर्तमान में कर्नाटक जो कि एक बहुत बड़ा बंदरगाह था) को पुर्तगालियों के कब्जे से स्वतंत्र कराने के लिए प्रस्थान किया
13 फरवरी 1665 को हिंदू स्वराज का ध्वज बुसरूर पर लहराने लग गया।
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शिवाजी के सचिव रहे मल्हारराव चिटनीस के अनुसार जहाजों की संख्या अनुमानित 400 से 500 थी। अंग्रेजों से युद्ध कर शिवाजी महाराज ने मुंबई से 20 मील दूर खांदेरीवर पर भी अपना दुर्ग स्थापित किया।
1674 तक मराठा नेवी के पास अनुमानित 5000 नों-सैनिक और 57 वारशिप्स थी। राजे की नौसेना में कई मुसलमान सैनिक भी थे।
शिवाजी ने सिद्धि अब्राहिम को बहुत महत्वपूर्ण भूमिका दी हुई थी। वह आर्टलरी के प्रमुख थे।
1680 में शिवाजी की मृत्यु और संभाजी के अल्प शासनकाल के बाद संभाजी जी के छोटे भाई राजाराम ने हिंदू स्वराज्य और मराठा सैनिकों का नेतृत्व किया। इसी शासन अवधि में कान्होजी आंग्रे को नौसेना दल में “सरखेल”(Admiral)के पद पर नियुक्त किया।
सन 1715 से 1729, तक कान्होजी ने नौसेना को और मजबूती से स्थापित किया।
कान्होजी ने पुर्तगाल के “कारताज” कानून को बंद कर “दस्तक” कानून को पारित किया।
शिवाजी महाराज का यह योगदान इतिहास के पन्नों में कहीं धूल खा रहा है।
वर्तमान में आज भी अधिकांश भारतीय इस गौरव गाथा से वंचित है
लेखक आशुतोष ग्वाले, पत्रकारिता के छात्र हैं।