दो विरोधी प्रत्याशियों को मिले नौ लाख वोट फिर ये कांग्रेस प्रत्याशी दस लाख वोट के अंतर से जीता

इस परिणाम के आगे आप इंदौर की जीत भूल जाएंगे

देखिए किस तरह से वोटिंग की है मुस्लिम मतदाताओं ने

इंदौर लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी ने लगभग 11.75 लाख वोटों के अंतर से जीत दर्ज की है। यहां पर कांग्रेस प्रत्याशी के नाम वापस ले लेने के बाद चुनाव केवल औपचारिकता ही बचे थे लेकिन देश में एक लोक सभा सीट और है जहां दस लाख वोटों के अंतर से ज्यादा से फैसला हुआ है। ये सीट है असम की धुबरी और यहां पर चुनाव एक तरफा नहीं था। इस सीट पर जीतने वाले प्रत्याशी के अलावा दो अन्य प्रत्याशियों को भी नौ लाख वोट मिले लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस प्रत्याशी ने दस लाख वोटों से अधिक से जीत दर्ज की। यह सीट मुस्लिमों के विशेष मतदान पैटर्न को भी बताती है।

असम की इस सीट पर बड़ी संख्या बांग्ला भाषी मुस्लिम मतदाताओं की है। इनके लिए असम के इत्र व्यवसायी मौलाना बदरूद्दीन अजमल ने एक पार्टी एआईयूडीएफ यानी आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट बनाई थी।  दो दशकों तक असम विधानसभा में इस पार्टी के विधायकों की संख्या दहाई अंकों में रही।  2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी के तीन सांसद जीते थे। 2011 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 18 विधायक थे। 2016 में उनके विधायकों की संख्या घटकर 13 बची लेकिन फिर भी वे राज्य की राजनीति में बड़ी ताकत बने रहे। हालांकि एक समय उनकी राजनीतिक साझेदार रही कांग्रेस ने उनसे दूरी बना ली। 2019 में अजमल तीसरी बार धुबरी से सांसद चुने गए थे।

2024 में इस सीट पर बड़ा कमाल देखने को मिला है। इस सीट पर कांग्रेस प्रत्यासी रकीबुल हुसैन ने  10,12,476 वोटों के भारी भरकम  अंतर से अजमल को हराया है। रकीबुल को 14,71,855 वोट मिले तो दूसरे स्थान पर रहे अजमल को केवल 4.59 लाख वोट मिले और इस तरह से अजमल दस लाख से ज्यादा वोट से हार गए। कहानी यहीं खत्म नही होती है। इस सीट पर एनडीए का भी प्रत्याशी था। गठबंधन में भाजपा ने ये सीट असम गण परिषद को दी थी। इस सीट पर उसने जाबेद इस्लाम को टिकट दिया था। उन्हें 4.38 लाख वोट मिले हैं। अब सोचिए कि इंदौर के एक-तरफा चुनाव की 11.75 लाख वोटों की जीत इसके आगे क्या है?

मुस्लिम वोटिंग पैटर्न को समझिए

इस जीत के अलावा इसकी खास बात ये है कि अजमल की पार्टी को मुश्लिमों की पार्टी माना जाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार जिले में 74 प्रतिशत जनसंख्या मुस्लिमों की है। इनके समर्थन के चलते अजमल तीन बार लगातार इस सीट से सांसद चुने गए हैं। लेकिन इस बार का परिणाम बताता है कि मुस्लिमो ने अजमल को वोट नहीं दिया है। उनका वोट कांग्रेस को गया है और ज्यादातर गैर मुस्लिम वोट एनडीए प्रत्याशी जाबेद इस्लाम को मिला है। यानी कि ज्यादातर मुस्लिमों ने मुस्लिमों की पार्टी को वोट नहीं किया। सवाल उठता है ऐसा क्यों?

इसका जवाब खोजने के लिए आपको महाराष्ट्र के औरंगाबाद और बिहार के किशनगंज भी जाना पड़ेगा। औरंगाबाद में 2019 में औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम के इम्तियाज जलील चुनाव जीते थे। इस सीट पर भी मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है। यहां पिछलीबार जलील 3.90 लाख वोट पाकर जीते थे। इस बार इस सीट पर एक लाख वोट बढ़ गए इसके बाद भी जलील के वोट घटकर 3.40 लाख बचे और वो चुनाव हार गए।

उधर बिहार के किशनगंज सीट पर भी साठ प्रतिशत मतदाता मुस्लिम हैं। यहां भी औवेसी की पार्टी को बड़ी उम्मीदें थीं। इस लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली सभी विधानसभाओं पर मुस्लिम विधायक हैं। 2019 में यहां पर औवेसी की पार्टी के प्रत्याशी अख्तरुल इमाम को 2.95 लाख वोट मिले थे। इस बार माना जा रहा था कि वे एक मुश्त वोटों से जीत जाएंगे। लेकिन वे 3.09 लाख वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे। यहां पर कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद जावेद ने जीत दर्ज की। बड़ी संख्या में गैर मुस्लिम वोट जनता दल यूनाईटेड के प्रत्याशी मुजाहिद आलम को मिले और वे दूसरे स्थान पर रहे। मुस्लिम बहुल सीट पर मुस्लिमों की पार्टी कही जाने एआईएमआईएम तीसरे स्थान पर रही। ये दो घटनाएं साबित करती हैं कि मुस्लिमों ने इस बार अपनी पार्टी माने जाने वाले दलों से भी परहेज किया है।

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