“जजों के हाल तो देखो….मैं जाकर मोहन यादव को बोलता हूं “

जबलपुर हाईकोर्ट में जज के सामने बोले वकील, जज ने स्थगित की सुनवाई और चीफ जस्टिस को भेजा मामला

 जजों का हाल तो देखो मैं भी जाकर मोहन यादव को बोलता हूं, यह किसी सरकारी विभाग के बहस नहीं है बल्कि यह जबलपुर उच्च न्यायालय में एक वकील साहब जज साहब से रूबरू हो रहे हैं। और जज साहब भी एक महिला हैं। एक क्रिमिनल अपील की सुनवाई के दौरान यह वाक्य हुआ और वकील के यह शब्द सुनने के बाद जज ने कैसे न केवल एडजर्न किया बल्कि इस मामले को चीफ जस्टिस के पास भेज दिया है। संभवत ज्यूडिशरी के इतिहास में मध्य प्रदेश में यह पहला मौका होगा जब जज के सामने मुख्यमंत्री का नाम लकर प्रभाव डालने की कोशिश की गई हो । 

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22 मार्च को जबलपुर उच्च न्यायालय की जस्टिस अनुराधा शुक्ला की सिंगल बेंच में सीआरए नंबर 14383 की सुनवाई के दौरान यह वाकया पेश आया जबकि याचिकाकर्ता के वकील पीसी पालीवाल ने कहना शुरू किया कि “कोर्ट में 4 घंटे से तमाशा चल रहा है, मैं बैठा देख रहा हूँ। हाईकोर्ट जज दूसरी जगह जाकर कहते है कि नये जज का अपॉइंटमेंट करो लेकिन जजेस का हाल तो देखो, जो दिल्ली में हुआ वह भी देखा जाए। यहाँ पेंडेंसी बढ़ रही है और हमें harass किया जा रहा है। मैं आज शाम को जाकर मोहन यादव को बोलता हूँ। ये कैस 20 बार लग चुका है, बड़ी मुश्किल से आज नम्बर आया। मैं अपने केस की बहस यहाँ नहीं करना चाहता मेरे केस दूसरे बैंच में भेज दीजिए………..”

इसके बाद जस्टिस अनुराधा शुक्ला ने जो आर्डर किया उसमें वकील साहब की इन बातों ठीक इसी तरह शामिल करते हुए न केवल केस की सुनवाई स्थगित कर दी बल्कि यह भी लिखा कि “अपीलकर्ता के वकील द्वारा दिए गए बयान के आलोक में यह स्पष्ट है कि वह इस न्यायालय के खिलाफ अपमानजनक और अवमाननापूर्ण टिप्पणी कर रहे हैं, इसलिए यह उचित होगा कि इस आदेश की प्रमाणित प्रति माननीय मुख्य न्यायाधीश के समक्ष उनके अवलोकनार्थ और आवश्यक कार्रवाई के लिए रखी जाए।” यह घटनाक्रम न्यायिक क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। 

क्या है मामला? 

यह क्रिमिनल अपील राजहंस बागडे और विजय निकसे की ओर से दायर की गई है। उनके वकील पी सी पालीवाल हैं। 2024 में ही इस मामले में जल्दी सुनवाई के लिए एक आईए भी लगाई गई थी। यह मामला आईपीसी की धारा 415 (2) और 326(34) का है।

जहां 415 2 किसी को धोखा देकर कोई काम करवाने से संबंधित है तो वहीं  भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 326/34 का अर्थ है खतरनाक हथियारों या साधनों से गंभीर चोट पहुँचाना, और धारा 34 के तहत, यदि यह अपराध कई लोगों द्वारा एक सामान्य उद्देश्य से किया जाता है, तो सभी को समान रूप से जिम्मेदार ठहराया जाता है 

धारा 326:

यह धारा खतरनाक हथियारों या साधनों (जैसे, गोली, छुरा, आग, विष, विस्फोटक आदि) से जानबूझकर गंभीर चोट पहुँचाने से संबंधित है । 

. धारा 326/34:

यदि धारा 326 के तहत अपराध कई लोगों द्वारा एक साथ, एक सामान्य उद्देश्य से किया जाता है, तो उस अपराध को करने में शामिल सभी लोगों को धारा 34 के तहत भी दोषी ठहराया जा सकता है । 

1978 से वकालत कर रहे हैं पालीवाल

पीसी पालीवाल यानी कि फूलचंद पालीवाल बहुत वरिष्ठ वकील है। वे 1978 से वकालत कर रहे हैं। इस तरह से उन्हें इस पेज में लगभग 47 वर्ष हो चुके हैं। यानी कि वे नए वकील नहीं है अनुभवी हैं ।

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