लेबनान में राजनीतिक दलों के छात्र संगठन चुनाव हारे, पहली बार यूनिवर्सिटी में जीते निर्दलीय छात्र
लेबनान में जगी बदलाव की उम्मीद, छात्र लंबे समय से कर रहे हैं सरकार का विरोध
गूंज रिपोर्टर, बेरुत
20 साल की नग़म अबूजायद लेबनान की लेबनीज अमेरिकन यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी की छात्रा हैं। अभी हाल ही में यूनिवर्सिटी काउंसिल इलेक्शन में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीती हैं। वे और उनकी तरह जीते निर्दलीय प्रत्याशियों की जीत को लेबनान की जनता बड़ी उम्मीदों से देख रही है।
नग़म की जीत इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि लेबनान की यूनिवर्सिटी इतिहास में अब तक केवल प्रमुख राजनीतिक दलों से जुड़े छात्र संगठन ही जीतते आए हैं। ऐसा पहली बार हुआ है कि राजनीतिक दलों से जुड़े छात्र संगठन यूनिवर्सिटी में अपनी काउंसिल नहीं बना पायेंगे। राजनीतिक दलों से जुड़े छात्र संगठनों के दबदबे वाले चुनाव में उतरने से पहले नग़म को अपनी जीत की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। लेकिन उनकी सोच थी कि इस बार फिर भले ही राजनीतिक दलों से जुड़े छात्र संगठन जीत जाए लेकिन यह सब आसानी से नहीं होगा।
लेबनीज अमेरिकन यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट काउंसिल के लिए 2 अक्टूबर को चुनाव हुए थे जिसमें 30 में से 14 स्थानों पर निर्दलीय छात्रों ने जीत दर्ज की है। नगम उनमें से एक हैं। जहां तक वोट प्रतिशत का प्रश्न है तो जीतने वाले निर्दलीय छात्रों को 52% वोट मिले हैं। इसी तरह से लेबनान की रफीक हरीरी यूनिवर्सिटी में 2 नवंबर को हुए चुनाव में निर्दलीयों ने 9 में से 4 सीटों पर जीत दर्ज की है जबकि पिछली बार इस यूनिवर्सिटी में भी एक भी निर्दलीय छात्र चुनाव नहीं जीत पाया था।
इस तरह लेबनान की लगभग हर यूनिवर्सिटी में निर्दलीयों ने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। बेरुत की अमेरिकन यूनिवर्सिटी में तो निर्दलीयों ने तहलका मचाते हुए कुल 101 में से 80 सीटों पर जीत का परचम लहराया है जबकि पिछले साल इस यूनिवर्सिटी में केवल 24 निर्दलीय छात्र चुनाव जीते थे।
इसलिए खास है यह जीत
लेबनान में एक तरह से सैन्य शासन है और इस शासन ने अपनी एक पार्टी बना रखी है। फिलहाल यही पार्टी सत्ता में है। अक्टूबर 2019 में पूरे लेबनान में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी , खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और वर्षों के कुशासन के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुए थे। इन प्रदर्शन में बड़ी संख्या में छात्र भी शामिल हुए थे। इसके चलते इस बार के यूनिवर्सिटी चुनाव परिणामों को विशेष माना जा रहा है। लेबनान के आम नागरिकों का सोचना है कि यह बदलाव की शुरुआत है। इसी को आधार बनाकर नग़म का कहना है कि जिन लोगों ने जिस सोच के साथ मुझे वोट दिया है अगले संसदीय चुनाव में जनता इसी सोच के साथ राजनीतिक दलों के खिलाफ वोट करेगी।
वास्तविकता जानते हैं छात्र
जनता की बदलाव की उम्मीद के बावजूद छात्र वास्तविकता को जानते हैं। उन्हें पता है कि यूनिवर्सिटी के चुनाव और संसदीय चुनाव में फर्क होता है। यूनिवर्सिटी के चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के आधार पर होते हैं। यूनिवर्सिटी चुनाव जीतने वाली बायो मेडिकल की छात्रा 19 वर्षीय मलक लाजा को भी इस बात का अहसास है कि संसदीय चुनाव में जीत हासिल करना अलग बात है। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य इन चुनावों में यह था कि लोग स्थापित विचारधाराओं को चुनौती दें। लेकिन इतना तय है कि लेबनान ने छात्रों की हिम्मत के दम पर बदलाव के लिए एक कदम बढ़ाया है।
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