भाजपा की दल बदलू पॉलिटिक्स को कटनी का जवाब!
भाजपा प्रत्याशी के चयन से नाराज मतदाताओं ने भाजपा के ही बागी को चुना
नगरीय निकाय चुनाव में कटनी नगर निगम में निर्दलीय महिला ने जीत दर्ज की है। वैसे निर्दलीय का जीतना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन जब आप इसकी गहराई में जाएंगे तो आपको पता चलेगा यह दरअसल यह जीत जनता का एक संदेश है उस पार्टी के नाम जिसे वह पसंद करते हैं जिसके लिए वह वोट करते हैं।
कटनी जिले में कांग्रेस नेता पाठक परिवार की तूती बोलती थी लेकिन 2017 में विजय राघवगढ़ के विधायक संजय पाठक भाजपा में आए और आकर सीधे मंत्री बने जबकि भाजपा को उनकी कोई जरूरत नहीं थी। भाजपा के पास पर्याप्त मात्रा में बहुमत था जबकि पाठक 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी पद्मा शुक्ला के सामने जैसे तैसे जीत सके थे। ऐसा लग रहा था कि 2018 में उनकी नैया डूब जाएगी के चलते हुए कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए और सरकार में राज्य मंत्री भी बने। पाठक ने इसके लिए उप चुनाव लड़ा था।
2018 के विधानसभा चुनाव में पाठक बीजेपी के टिकट पर लड़े तो पिछली बार उन्हें कड़ी टक्कर देने वाली पद्मा शुक्ला कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडीं। जनता की पसंद भाजपा थी सो पाठक जीत गए।
इस बार कटनी नगरपालिका का महापौर पद अनारक्षित महिला के लिए था। पाठक ने पार्टी में अपने संबंधों का उपयोग करते हुए कांग्रेस से उनके साथ भाजपा में शामिल हुई ज्योति दीक्षित को टिकट दिलाया। इस पर पुरानी भाजपाई प्रीति सूरी निर्दलीय खड़ी हो गईं। यहां पर प्रीति सूद ने जीत दर्ज की भाजपा दूसरे स्थान पर रही और कांग्रेस तीसरे। भाजपा के प्रत्याशी चयन से नाराज कटनी के मतदाताओं ने पूर्व भाजपाई को मौका देना बेहतर समझा लेकिन वह कांग्रेस के साथ नहीं गए।
लेकिन बेशर्मी का एक पक्ष और सामने आया प्रदेश सरकार के मंत्री और भाजपा के कई पदाधिकारी जीतने के बाद प्रीति सूरी को अपना कार्यकर्ता बता रहे हैं। उनसे सवाल किया जाना चाहिए कि यदि प्रीति सूरी उनके कार्यकर्ता थी तो उनका टिकट कटने पर इन लोगों ने सवाल क्यों नहीं उठाये?
कुल मिलाकर कटनी के परिणाम स्पष्ट संकेत करते हैं यदि पार्टियां दल बदलू पर लगाम नहीं लगाएंगे तो यह तरीका जनता को भी आता है।