क्या मिट जायेगी हस्ती!
विवेक अष्ठाना
विश्व इन दिनों सभ्यताओं के संघर्ष का साक्षी बना हुआ है। कई और बड़े संघर्षों का उत्पत्ति क्रम वर्तमान में हो रहे छोटे संघर्ष को कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अफगानिस्तान में चल रहा घटनाक्रम केवल जमीन पर कब्जे का संघर्ष नहीं बचा, अब यह धीमे-धीमे संप्रदायों का संघर्ष बनने की ओर अग्रसर हो रहा है। उससे भी बड़े रूप में आने वाले समय में यह सभ्यताओं के संघर्ष रूप में परिणित होगा। ऐसे में अगर हिंदू यह माने की वह सदा सुरक्षित रहने वाला है तो इसके लिए उसे अपनी संस्कृति सुरक्षित करनी होगी।
यह प्रयास हर स्तर पर संजीदगी से किया जाए यह आवश्यक होगा। भारत के लिए यह समय सर्वश्रेष्ठ है सीखने के लिए भी और विश्व को सिखाने के लिए भी। सीखना और सिखाना भारतीयों की प्राचीन परंपरा रही है। कुछ समय के लिए इसमें ठहराव आया यह अलग बात है, लेकिन फिर से भारतीय यह समझे की क्यों आज तक उनकी हस्ती मिटी नहीं और अन्यों की बची नहीं। एक पक्ष इसमें भारत को इस्लामी आताताईयों द्वारा पराभूत करने की बात अक्सर करते हैं।
लेकिन भारतीयों का अस्तित्व तोप, तलवार या बंदूकों के दम पर कभी नहीं रहा, यह हिन्दुओं को जितनी जल्दी समझ आ जाए उतना ही ठीक रहेगा। जब बात सीखने, सिखाने की हो रही है तो भारत की वर्तमान पीढ़ी यह सीखें की मानवता के शत्रु (तालिबानी) भी एक विचारधारा को लेकर आगे बढ़े हैं इस कारण ही वह विश्व शक्ति को भी पराभूत कर सके। तो फिर हिंदू धर्म तो पूरा का पूरा ही एक जीवन पद्धति या शैली है, आनंद और मानवीयता को प्राप्त करने की, तो इसका पराभव कैसे संभव होगा।
हां, अगर हम अपनी सोच या जिसे हम संस्कृति कहते हैं उसे हमारे मस्तिष्क में जीवित नहीं रख पाए तो हिंदुओं के पराभव को कोई रोक नहीं सकता, यह भी अकाट्य सत्य है। मानव सभ्यताएं हथियारों से नहीं विचारों से जीवित रहती हैं, पनपती और फलती फूलती हैं, यह हमें समझना बहुत जरूरी है। अमेरिका जिसके पास हथियारों का सबसे मजबूत जखीरा है या आईएसआईएस फिलिस्तीन इनके पास शक्ति की नहीं, मनोबल और विचार शक्ति की जरूर कमी है।
सीरिया पाकिस्तान बांग्लादेश आज अपने आपसी विवादों से परेशान हैं। एक ही संप्रदाय इस प्रकार लड़ रहा है कि खून का बहना आम बात है। कहीं ना कहीं ये संघर्ष चीख-चीख कर कह रहा है कि इन्हें जो समझाया जा रहा है वह मानवता के लिए पर्याप्त नहीं। पश्चिम का खोखला बलाबल आज दुनिया से छुपा नहीं है।
हिंदुओं ने प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक जितने भी संघर्ष किए हैं उसमें वह विचारों के लिए ही लड़ा है, ना कि छुद्र भौतिक वस्तु के लिए। यही विजय का कारण भी रहा है। आत्मबल सत्य पथ पर चलने से ही मिलता है। गीता में जब श्री कृष्ण अपने सगे संबंधियों को मारने के लिए अर्जुन को आदेश देते हैं, तो उनकी वाणी में कोई दुविधा नहीं थी, लेकिन इस्लाम या ईसाइयत हमेशा इस दुविधा में रहते हैं कि हमला किस पर किया जाए और क्यों किया जाए?
इतना ही नहीं कामिनी और कंचन का झूठ लोग देकर जिस लड़ाई को लड़ा जाए वह कितनी लंबी चलेगी ? तार्किक दृष्टि से सोचिए उत्तर अपने आप मिलने लगेंगे। हिंदू सिर्फ अपनी संस्कृति को मजबूत करने में पूरी ताकत लगा दें तो इतिहास से लेकर वर्तमान तक ऐसे कई उदाहरण है जो यह सिद्ध कर देंगे कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी…।
लेखक पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।