मिलिए 64 साल की उम्र में MBBS में एडमिशन लेने वाले छात्र से
45 साल पुराने सपने को पूरा करने मेडिकल कॉलेज पहुंचा सेवा निवृत्त बैंक कर्मचारी
संबलपुर (उड़ीसा).
यह कोई मुन्ना भाई एमबीबीएस (MBBS) की कहानी नहीं है। यह कहानी है एक सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारी की जो अपने डॉक्टर बनने के सपने को बैंक से सेवानिवृत्त होने के बाद पूरा करने के लिए मेडिकल कॉलेज पहुंचा है। जय किशोर प्रधान नाम के इस सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारी ने हाल ही में वीर सुरेंद्र साई इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल एंड रिसर्च (VIMSAR) में गुरुवार को एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए प्रवेश लिया है।
प्रधान 2016 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से उप प्रबंधक के रूप में सेवानिवृत्त हुए हैं। प्रधान की कहानी न केवल सेवानिवृत्त लोगों के लिए एक प्रेरणा बन सकती है बल्कि उन छात्रों के लिए भी प्रेरणा है जो कि अभी मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसी कई प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। प्रधान ने इसी साल नीट (NEET) की परीक्षा पास की है और उसके बाद मेडिकल में एडमिशन लिया है।
प्रधान फिजिकल हैंडीकैप की श्रेणी में आते हैं क्योंकि 10 साल की उम्र में दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के बाद से उनके दाहिने पैर में समस्या है। प्रधान का जन्म 30 नवंबर 1956 को हुआ था इस तरह से वे 64 वर्ष की आयु पूरी कर चुके हैं।
45 साल तक डॉक्टर बनने के सपने को जिंदा रखा
ऐसा नहीं है कि प्रधान का डॉक्टर बनने का सपना अभी जगा हो। दरअसल वे अपने छात्र जीवन से ही डॉक्टर बनना चाहते थे। इसके चलते उन्होंने 1975 में भी मेडिकल प्रवेश परीक्षा दी थी लेकिन वे उस में सफल नहीं हुए थे। इसके बाद प्रधान ने फिजिक्स में बीएससी की पढ़ाई पूरी की और एक स्कूल में टीचर बन गए।
1983 में उन्होंने इंडियन बैंक में क्लर्क की नौकरी ज्वाइन की। बाद में बैंक का विलय स्टेट बैंक में हो गया जिसके चलते 2016 में प्रधान स्टेट बैंक से उप प्रबंधक के रूप में सेवानिवृत्त हुए हैं। 37 साल की बैंक की नौकरी के बाद भी प्रधान के मन में डॉक्टर बनने की इच्छा बनी रही।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से मिली मदद
प्रधान ने कहा कि उन्होंने डॉक्टर बनने की उम्मीद छोड़ दी थी लेकिन 2018 में सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय ने उनकी मदद की जिसमें उन्होंने मेडिकल में प्रवेश के लिए 25 साल की आयु सीमा का बंधन समाप्त कर दिया था। अब नीट(NEET) में सम्मिलित होने के लिए न्यूनतम आयु 17 वर्ष तय की गई है लेकिन अधिकतम आयु का कोई बंधन नहीं है।
अपनी इस उपलब्धि पर प्रधान बिल्कुल भी खुश नहीं है इसका कारण यह है कि उनकी दो बेटियां हैं जो कि डेंटल कॉलेज में पढ़ाई कर रही थी। उनमें से एक बेटी का इस साल नवंबर में ही निधन हुआ है। इसके चलते वे अपने 45 साल पुराने सपने के पूरे होने की खुशी नहीं मना रहे हैं। लेकिन वे लाखों लोगों की प्रेरणा बन चुके हैं। प्रधान का कहना है कि वे डॉक्टर बनने के बाद मुफ्त में ईलाज करेंगे।