21st November 2024

मेघालय हाई कोर्ट ने कहा वैक्सीन अनिवार्य नहीं कर सकते

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कहा मौलिक अधिकार के विरुद्ध हैं वैक्सीन अनिवार्य करने के आदेश

आईजोल

मेघालय के उच्च न्यायालय ने कोरोना वैक्सीन को अनिवार्य किए जाने के मेघालय सरकार के आदेश को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि वैक्सीन के अनिवार्य करने का आदेश नागिरकों के मौलिक अधिकारों का हनन है।

मेघालय के कईं जिलों में जिला प्रशासन ने आदेश दिया था कि दुकानदार , टैक्सी ड्राइवर और अन्य लोग तभी काम कर सकेंगे जब कि वे वैक्सीन लगवा लेंगे। इन आदेशों को मेघालय के उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।

ये कहा कोर्ट ने

इस मामले में कोर्ट ने कहा है कि “भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में स्वास्थ्य के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया गया है। इसी तरह से स्वास्थ्य देखभाल का अधिकार, जिसमें टीकाकरण शामिल है, एक मौलिक अधिकार है। हालांकि ज़बरदस्ती टीकाकरण के तरीकों को अपनाकर अनिवार्य बनाया जा रहा है, यह इससे जुड़े कल्याण के मूल उद्देश्य को नष्ट कर देता है। यह मौलिक अधिकार (अधिकारों) को प्रभावित करता है, खासकर जब यह आजीविका के साधनों के अधिकार को प्रभावित करता है जिससे व्यक्ति के लिए जीना संभव होता है।”

मौलिक अधिकार है आजीविका चलाना

हाई कोर्ट ने कहा कि, “राज्य की एक अधिसूचना / आदेश निश्चित रूप से कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा, आजीविका के अधिकार को छीनकर किसी व्यक्ति के जीवन के मौलिक अधिकार को प्रतिबंधित नहीं कर सकती है। यहां तक कि उस प्रक्रिया की भी उचित, न्यायसंगत और निष्पक्ष होना आवश्यकता है (ओल्गा टेलिस, सुप्रीम कोर्ट)। अब तक सामान्य रूप से ज़बरदस्ती या अनिवार्य टीकाकरण और विशेष रूप से Covid19 टीकाकरण अभियान के संबंध में कोई कानूनी जनादेश नहीं रहा है जो उनकी नागरिक की आजीविका को प्रतिबंधित या छीन सकता है।”

कोर्ट ने आगे कहा कि, “सूचित करके विकल्प देना और सूचित सहमति के आधार पर किसी के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार में बाधा डाले बिना टीका का प्रशासन अनिवार्य रूप से एक बात है। हालांकि यदि कोई अनिवार्य टीकाकरण अभियान अपनी प्रकृति और भावना से जबरदस्ती है तो यह एक अलग अनुपात और चरित्र ग्रहण करता है।”

हाई कोर्ट ने वैक्सीन को आवश्यक बताया है लेकिन इसके लिए जबरदस्ती किए जाने को गलत बताया है।

पुख्ता जानकारी नहीं

संविधान के जानकार और वरिष्ठ अधिवक्ता संग्राम सिंह ने बीबीसी ने कहा कि कि राज्य सरकारें महामारी रोग क़ानून के तहत नियम बनाने के लिए अधिकृत ज़रूर हैं मगर टीके को अनिवार्य करना तब तक ग़लत ही माना जाएगा जब तक ये ठोस रूप से प्रमाणित नहीं हो जाता कि वैक्सीन लगवाने के बाद कभी फिर से लोग कोरोना से संक्रमित नहीं होंगे।

संग्राम सिंह ने कहा कि अभी तक ये भी पता नहीं चल पाया है कि जो टीके कोविड की रोकथाम के लिए दिए जा रहे हैं वो कितने दिनों तक प्रभावी रहेंगे।

उनका कहना हैं, “अभी तक ये भी पता नहीं कि एक साल में टीके की दो ख़ुराक लेने के बाद क्या हर साल ये टीका लेना पड़ेगा। जब यही नहीं पता तो फिर टीकाकरण को अनिवार्य कैसे किया जा सकता है। “

हालांकि संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में भारतीय कानून में स्पष्टता का अभाव है।

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