अर्नब के लिए हैशटैग चलाने वाले राष्ट्रवादी पत्रकार माणक चंद वाजपेयी को भूले
मामा माणक चंद वाजपेयी की पुण्यतिथि आज, मोदी तक ने नहीं दी शृद्धांजलि
अच्छा समय उस समय को लाने में अपना सर्वस्व लुटाने वालों को याद करने का सबसे सही समय होता है। 2014 के बाद अचानक से पत्रकारिता का राष्ट्रवाद जागा और सरेआम दलाली करने वाले भी स्वघोषित राष्ट्रवादी हो गए। कुछ तो ऐसे हैं जिन पर आत्महत्या के लिए उकसाने से लेकर बलात्कार तक के आरोप हैं लेकिन ये सत्ता परिवर्तन के साथ ही निष्ठा परिवर्तन का कवच धारण किए हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने किसी भी विचारधारा के लिए कोई योगदान दिए बिना हर किसी की सत्ता में मलाई उड़ाई, पुरस्कार पाए और अब तो हाल ये है कि इन्हें इनके कर्म भी याद नहीं कराए जा सकते क्योंकि ये तुंरत ही आई स्टैंड विथ फलाना का हैशटैग चला देंगे।
इस दौर में सरकार और उसके मुखिया माणक चंद वाजपेयी जैसे पत्रकारिता के शलाका पुरुष को भूल जाएं तो ऐसा होना संभव है। जानकारी के लिए बता दूं कि मामाजी के नाम से लोकप्रिय माणकचंद वाजपेयी का जब निधन हुआ था, उस समय भारतीय जनता पार्टी की बैठक चल रही थी और अटलजी को जब इसकी जानकारी मिली तो वे बैठक छोड़कर मामाजी को शृद्धांजलि देने के लिए ग्वालियर पहुंचे थे। इससे पता चलता है कि भाजपा की विचारधारा में मामाजी जैसे व्यक्तित्व का क्या योगदान है?
हालांकि मामाजी जिस जीवन को जीते थे उसमें इस बात के लिए कोई स्थान नहीं था कि उन्हें उनके काम का कितना श्रेय मिला। वे उन गिने-चुने लोगों में से थे जो कि श्रेयनिष्ठ नहीं बल्कि ध्येय निष्ठ थे। ध्येय ही उनकी दृष्टि में रहता था। ऐसे में वो पत्रकारिता जिसका एकमेव लक्ष्य एक चरसी अभिनेता की आत्महत्या पर टीआरपी सेंकना हो, मामाजी को कैसे याद कर सकती है?
मामाजी का इंदौर से बहुत गहरा नाता रहा। वे इंदौर स्वदेश के संस्थापक संपादक थे। इतना ही नहीं आपातकाल के दौरान वे इन्दौर जेल में ही 20 माह तक बंदी रहे। इस दौरान वे जेल से ही स्वदेश के लिए संपादकीय लिखते रहे। इंदौर के अलावा स्वदेश के अन्य संस्करणों की स्थापना में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
तीन पुस्तकें भी लिखीं
महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा था। इस घटनाक्रम पर उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी। इसका नाम था प्रथम अग्निपरीक्षा था तो वहीं मामाजी ने आपातकाल के अनुभवों पर भी एक पुस्तक लिखी जिसका नाम आपातकाल की संघर्षगाथा है। इसके अलावा उन्होंने स्वतंत्रता के बाद विभिन्न घटनाओं में
मामाजी को सही रूप में अटलजी की वाणी में इस तरह से समझा जा सकता है। अटलजी ने मामाजी के लिए कहा था कि मामा जी ने अपने आचरण से दिखाया है कि विचाराधारा से जुड़ा समाचार पत्र सही मार्गदर्शन भी कर सकता है और स्तर भी बनाए रख सकता है। मामाजी को काम की धुन सवार है। वे कष्ट की चिंता किए बिना निरन्तर लिखते रहे हैं। वास्तव में मामाजी का जीवन राष्ट्रवादी ध्येय के प्रति समर्पित था।
कांग्रेस सरकार ने बंद किया था मामाजी की स्मृति में दिया जाने वाला पुरस्कार
राजनीतिक विद्वेष के कारण 2018 में मध्य प्रदेश में सत्ता में आने वाली कांग्रेस ने ‘माणिकचंद वाजपेयी पत्रकारिता सम्मान’ पुरस्कार को देना बंद कर दिया था। भाजपा के पुन: सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसे फिर से यह पुरस्कार शुरू करने का निर्णय लिया है। इतना ही नहीं शिवराज सिंह ने कहा कि इस साल स्व.माणिकचंद वाजपेयी की जन्मशताब्दी वर्ष मनाएगी सरकार। रविवार को भी उनकी पुण्य तिथि पर भोपाल में मामाजी पर एक डाक टिकट भी जारी किया गया । इस कार्यक्रम में मुख्यमंंत्री भी मौजूूद थे।
भूला सोशल मीडिया
इन सबके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मामाजी की पुण्यतिथि भूल गए। उन्होंने मामाजी के लिए कोई ट्वीट नहींं किया है। इतना नहीं बात-बात पर अर्नब गोस्वामी के समर्थन में हैशटैश चलाने वाली ट्रोलर गैंंग को भी मामाजी को शृद्धांजलि देने के लिए समय नहीं मिला है। जब आप ट्वीटर पर खोजेंगे तो आपको नाम मात्र केे शृद्धाजंलि ट्वीट मिलेंगे। यानी कि मामाजी आज के राष्ट्रवाद में फिट नहीं हैं। वे इस मामले में सुधीर चौधरी और अर्नब गोस्वामी तो ठीक दीपक चौरसिया से भी बहुुत पीछे हैं।