27th July 2024

मंत्रियों को हराने में मुरैना को है महारत

कोई भी मंत्री मुरैना लोकसभा में आने वाली विधानसभाओं से कभी मंत्री रहते चुनाव नहीं जीता

मुरैना लोकसभा सीट और उसके अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटों के साथ एक विचित्र प्रकार का संयोग जुड़ा हुआ है। पिछले 30 बरस में यहां पर तीन मंत्री चुनाव हारे हैं। खास बात यह है कि इस बार इस क्षेत्र से केवल एक ही मंत्री मैदान में है, वह हैं नरेंद्र सिंह तोमर। इस हिसाब से मुरैना के संयोग तोमर के लिए ठीक नहीं हैं।

मुरैना लोकसभा सीट में दो जिले आते हैं। एक मुरैना और दूसरा श्योपुर। श्योपुर में दो विधानसभा सीट हैं एक श्योपुर और दूसरी विजयपुर। विजयपुर सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामनिवास रावत पांच बार विधायक रहे हैं। रावत 93 में दूसरी बार विधायक बने थे और दिग्विजय सिंह ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल किया था। 1998 में कांग्रेस ने तो सत्ता में वापसी कर ली लेकिन रावत विजयपुर से विधानसभा हार गए थे। ऐसा नहीं की रावत कोई तुक्के वाले नेता थे क्योंकि 2003 की भाजपा की लहर में वे विजयपुर से जीतने में सफल रहे और उनकी जीत का यह सिलसिला 2013 तक सतत जारी रहा।  लेकिन वह भी मंत्री रहते हुए चुनाव नहीं जीत पाए थे।

इसी प्रकार मुरैना जिले में विधानसभा की 6 सीट हैं। इनमें से जिला मुख्यालय मुरैना की सीट से जीतकर भाजपा के रुस्तम सिंह 2003 में प्रदेश सरकार में मंत्री बनाए गए थे। मंत्री रहते हुए रुस्तम सिंह 2008 में फिर यहीं से चुनाव मैदान में उतरे थे लेकिन बसपा के परसराम मुदगल से चुनाव हार गए। 2013 में रुस्तम सिंह फिर चुनाव जीतने में सफल रहे और फिर से मंत्री बने लेकिन मंत्री रहते हुए 2018 के विधानसभा चुनाव में भी एक बार और कांग्रेस के रघुराज सिंह कंसाना से पराजित हुए। 

इसी तरह 2018 के विधानसभा चुनाव में जिले की दिमनी विधानसभा से कांग्रेस के गिरिराज दंडोतिया चुनाव जीते थे। जब उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा का दामन थामा तो वह भाजपा सरकार में मंत्री बनाए गए। 2020 में दंडोतिया मंत्री रहते हुए उपचुनाव लड़ने गए लेकिन चुनाव मैदान में खेत रहे। वे कांग्रेस के रविंद्र सिंह तोमर से चुनाव हार गए। यही तोमर अभी भाजपा के केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के सामने एक बार फिर देने से मैदान में है।

इस तरह से मुरैना लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटों में यह संयोग बना हुआ है कि जो भी नेता यहां मंत्री रहते हुए चुनाव लड़ने आया है वह कभी भी अपनी सीट नहीं बचा पाया।

तोमर के लिए मुश्किल

यह विचित्र सहयोग निश्चित रूप से नरेंद्र सिंह तोमर की नींद उड़ाने के लिए काफी है। इस बार मुरैना लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली आठ विधानसभाओं में वह इकलौते ऐसे प्रत्याशी हैं जो कि मंत्री पद पर रहते हुए चुनाव लड़ रहे हैं। यह सीट भाजपा के लिए वैसे ही कठिन है क्योंकि यहां पर भाजपा अब तक केवल एक ही बार जीती है। यहां तक की 2020 में हुए उपचुनाव में भाजपा की टिकट पर मैदान में उतरे प्रदेश सरकार में मंत्री गिरिराज दंडोतिया भी कांग्रेस के रविंद्र सिंह तोमर से हार गए थे। और इस बार दो तोमर की लड़ाई में बसपा के बलबीर सिंह दंडोतिया त्रिकोण के तीसरे कोण की तरह मजबूती से जमे हुए हैं। इस बार मुरैना में वह इकलौते ब्राह्मण प्रत्याशी है इसके चलते सीट के ब्राह्मण उनके साथ जाने की तैयारी में है। ब्राह्मणों का आरोप है कि भाजपा ने ब्राह्मणों की अपेक्षा की है। मुरैना से एक भी ब्राह्मण को टिकट नहीं दिया है। इसके चलते ब्राह्मण उस पार्टी को वोट देंगे जिसने ब्राह्मण प्रत्याशी को मौका दिया है। यह घोषणा अक्टूबर के लिए बड़ा झटका मानी जा रही है क्योंकि ब्राह्मण मूल रूप से भाजपा का मतदाता माना जाता है।

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