रामजी कलसांगरा की अयोध्या डायरी भाग-2

6 दिसंबर का लेखा जेखा

मेरे रक्त से मातृशक्ति और कारसेवकों ने बिंदी और तिलक लगाए

राम जी कलसांगरा 6 दिसंबर 1992 की कार सेवा में मौजूद थे और उन्होंने इस घटनाक्रम को 1993 में एक डायरी में लिपिबद्ध किया था। यह डायरी उनकी पुत्र देवव्रत ने संभाल कर रखी है। इसी डायरी के कुछ अंश हम आपके सामने रख रहे हैं ताकि हम जान सके कि 6 दिसंबर को क्या हुआ था और कैसे हुआ। कार सेवक किन परेशानियों से गुजरे। इस डायरी का पहला भाग आप लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

छह दिसंबर को प्रात: उठने के बाद स्नान करने नगर निगम पर पहुंचे। वहीं सभी ने स्नान किया। उसके बाद जगह जगह लगे पांडाल में भोजन , चाय व नास्ता करते हुए विद्यालय पहुंचे। चुंकि मैं कक्ष प्रमुख था अत: मैं सबसे आखरी में साढ़े नौ पर ताला लगाकर अयोध्या अपने साथी महेशजी, मिलिंद, गोपालजी, मिश्राजी, गौतमजी और सुरेश के साथ अयोध्या पहुंचे। आज साकेत में भी इतनी भीड़ थी कि हमारी नजर जिधर जाती-उधर सिर्फ कार सेवक ही दिखाई पढ़ते थे। सभी सड़कें भरी हुई थीं और हम टेम्पो में बैठकर अयोध्या के लिऐ रवाना हुए। परन्तु करीब एक किलोमीटर जाने के बाद टेम्पो रोक दिया गया। आगे रास्ता नहीं था अत: हम वहीं उतर गये। रास्ता तो था परन्तु कार सेवकों से भरा हुआ था , उतरने के बाद भीड़ के साथ ही हम करीब चार किलोमीटर पैदल चलकर अयोध्या पहुंचे और वहां हम जैसे तैसे श्रीराम कथा कुंज के आगे तक चले गये।

मंहत श्री रामचन्द्रदास जी महाराज ने कार सेवा को अनुशासित तरीके से करने को कहा था और कहा था कि अगर कार सेवा को रोका जाय या बल प्रयोग किया जाए तो आप सभी कार सेवकों को पूर्ण छूट है कि आप  फिर, जैसी चाहे वैसी कार सेवा कर सकते हैं। यह बात उन्होने पांच दिसंबर को कही थी। उनकी ‘बात को मैं ध्यान में रखकर हथियार ढ़ूंढ़ने लगा। मुझे साकेत में हथियार नहीं मिला तो मेने साकेत के ही लोहा व्यापारी से एक संडसी खरीद ली और उसे लेकर अयोध्या चल पड़े। रास्ते में एक मातृ शक्ति ने जब उसे देखा तो उसे मेरी पीठ के पीछे उन्होंने स्वंय ही उसे छुपा दिया और विजय होने का आशीर्वाद दिया। मैने भी उन्हें प्रणाम किया ओर कहा कि मैं अनुशासन का पालन करुंगा। यदि कारसेवा रोकी गई तो हम ढ़ांचा तोडने का कार्य प्रारंभ कर देंगे।

11:55 बजे शुरू हुई कार सेवा

उधर हम मंच से आगे जाकर बैठ गये और संत महात्माओं के भाषण सुनने लगे। करीब 11:55 बजने पर हमारे सामने बैठे लोग उठे। हमने देखा कईं कार सेवक गुम्बद की ओर बढ़ रहे हैं तो मैं भी अपने स्थान से उठा और तेज गति से भागकर जन्मभूमि के पास की राम दीवार के पास पहुंचा और मुख्य द्वार से होता हुआ लोहे व कटीले तार की बागड़ को लांघता हुआ श्री राम जन्मभूमि के मुख्य द्वार के दाहिने भाग में पहुंचा। मैं दक्षिण दिशा से बड़ी तेज गति से गुम्बद के ऊपर चढ़़ गया व मेरे पास की संडसी को निकाल कर खोदने का कार्य शुरू कर दिया।

मैं जब खोद रहा था तब हर गुम्बद पर 10-10 कार सेवक उपर चढ़कर ध्वज फहरा रहे थे और नाच रहे थे , नारे लगा रहे थे। मैने देखा कि किसी –किसी के पास ही हथियार हैं और बाकी कार सेवक खाली हाथ हैं। बाद में धीरे-धीरे गेती, फावड़े, हथौड़़ा, सब्बल आदि भी गुम्बद पर आ गये और  मेरे हाथ में भी गेती आ गई। अत: मै गेती से गुम्बदों के बीच वाली गुम्बद को तोडने लगा। करीब एक घंटे तक के बीच की गुम्बद को तोड़ता रहा और उसके बाद भारी मात्रा मे ‘कार सेवक उपर चढ़ आए थे।  मुझे थका हुआ देखकर एक कार सेवक ने मुझसे गेती ले ली व मैं नीचे उतर आया।  कुछ देर आराम करने के बाद दक्षिण वाली गुम्बद में एक कार सेवक होल कर रहा था तो  मैं भी उसका सहयोगी बन गया व बारी-बारी से हम होल करते रहे।  एक छोटा सा होल हमने कर दिया व उसके बाद हमने थक गये थे। पूरा शरीर पसीने से तर-बतर हो गया था।

हर खतरा उठाने को तैयार थे कारसेवक

आगे मैं वहा से नीचे उतरने को विचार करके उतरने के लिये बढ़ा ‘तो मुझे एक कार सेवक जो कि अपनी सुधबुध खोकर प्रभु श्रीराम के कार्य में ऐसा लगा था कि उसे यह ध्यान ही नहीं या कि वह कहा खड़ा है? वह राम भक्त बहुत ही छोटी सी दीवार पर खड़ा होकर “कार सेवा” कर रहा था, अत: मैं उसके पास जाकर बोला कि भाई आप ठीक से खड़े होकर “कारसेवा’ करो परन्तु उस कार सेवक ने मुझे जवाब देते हुए कहा कि आप कैसे कारसेवक हैं, मुझे “कार सेवा” से रोक रहे हो ?  इस समय एक सेकन्ड भी रुकने से प्रभु श्री रामचंद्रजी के कार्य को अपने जीवन से खोना और उसने बिना कार सेवा रोके मुझसे कहा कि यदि मैं यहां से नीचे गिर गया तो क्या हुआ प्रभु श्री राम के चरणों में प्राण त्याग ‘कर धन्य हो जाऊगा।

उस कार सेवक के विचार सुनकर मैं आश्चर्यचकित हो गया परन्तु उसे उस खतरे से बचाने के लिये मैने गले में लटक रहे पट्‌टे  से उसकी कमर बांधी व उस पट्‌टे को पकड़कर खडा हो गया ताकि वह गिर न सके। उसके बाद वह उस जगह को तोडकर सुरक्षित स्थान पर पहुंच गया।  फिर उसी समय एक कारसेवक का गुम्बद की ढ़लान, जहां से गुम्बद बनना चालू हुई, उस पर खड़ा होकर कार सेवा कर रहा था परन्तु उसकी कार सेवा बड़ी विचित्र थी। उसके पास हाथ मे हथियार (औजार) नहीं थे उसके हाथ में सिर्फ एक ईंट थी, जिसको वह गुम्बद पर बार-बार मार रहा था।  भला यह आश्चर्य की बात है कि ईंट से भी कोई गुम्बद टूट रही है? मैने स्वयं गुम्बद को सब्बल और हथौडे से तोडा था।

इसे आप और मैं चमत्कार ही कहेगे कि उस 22 वर्षीय कार सेवक जो कि ईंट से कार सेवा कर रहा था, उसकी ईंट से गुम्बद के ऊपर का भाग फर-फर टूट रहा था और वह उस इस को जोर-जोर से उस गुम्बद पर मार रहा था और आश्चर्य तो यह भी है कि उसकी ईंट टूट भी नहीं रही थी।  एक कारसेवक जो कि गुम्बद के उपर ही उसके पास खड़ा थी। एक हथौड़ा हाथ में लेकर गुम्बद पर जोर-जोर से मार रहा था।  उस कार सेवक का दृश्य भी देखने कर मैं धन्य हो गया। वो पूरा पसीने में तरबतर हो चुका था और ऊपर चोटी पर जो कारसेवक कार- सेवा’ कर रहे थे, ऊपर से ही मिट्टी व ईंट के टुकडे उस कार सेवक के उपर गिर रहे थे। एक ईंट का टुकडा आकर उसकी पैर के पंजे पर गिरा और उसे चोट लग गई। पैर में से रक्त बहने लगा और उस के सिर पर भी एक पत्थर गिरा, जिससे उसके सिर में से भी खून बहने लगा।  परन्तु आश्चर्य तो यह कि वह कार सेवक अपने शरीर पर की चोट की चिंता किया बिना ही वह “कार सेवा” करता रहा।

रामलला की मूर्ति निकालने की कोशिश

और भी कई कार सेवक अपने प्राणों की चिंता किये बगैर ही कार सेवा कर रहे थे। आगे तभी मेरा ध्यान मुख्य द्वार पर गया, जो कि तीनों गुम्बद के आगे मध्य की गुम्बद के सामने बना हुआ था, देखा तो कुछ कार सेवक उसका एक कोना तोड़ रहे थे और उसके नीचे द्वार से कुछ कार सेवक मंदिर में जा रहे थे। अतः मैने उन्हें सचेत करते हुए कहा कि आप यहां से हटिये। मुख्य द्वार की दीवार गिरने वाली है, तभी नीचे खड़े कार सेवक ने आवाज लगाई कि हम मूर्ति निकाल रहे हैं। अत: मैने उपर जो कारसेवक मुख्य द्वार को तोड़ रहे थे उनसे कहा की नीचे मूर्ति निकाल रहे हैं, अतः आप इस अभी मत खोदिए तो उन कारसेवकों ने कहा कि मूर्ति तो निकाल ली है।

अतः मैं संकट में फंस गया कि अब क्या किया जाए?  तभी विचार किया कि अब नीचे खड़े कार सेवकों को ही हटाना पड़ेगा। अत: मैने फिर संकेत नीचे खड़े कार सेवकों को देते हुए कहा कि ऊपर से मलबा गिरने वाला है परन्तु पीछे हटने के लिये उनके पास भी जगह नहीं थी क्योंकि प्रथम मुख्य द्वार से कार सेवक अंदर आ रहे थे। फिर मैने उन पर बारीक मिट्‌टी फैंकना चालू किया और फिर छोटे छोटे ईंट के टुकड़े उन पर फैंकने लगा।  उससे हमें कुछ सफलता तो मिली और इसी समय मुख्य हार की दीवार में एक छेद हो गया और उसमें से भी ईंट नीचे गिरने लगी गई। कई कार सेवक ऊपर से उस मुख्य द्वार को तोड रहे थे और मैं ईंट के टुकड़े कार सेवकों के ऊपर फैंक रहा था ।

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तभी अचानक दीवार का एक बड़ा हिस्सा नीचे की ओर गिरने की बजाय जिस तरफ से कार सेवक तोड़ रहे थे, उसी तरफ गिर गया। जैसे ही वह मलबा गिरा तो उसका आखरी छोर का मलबा मेरे ऊपर गिरा। जिससे मैं उसमें करीब कमर से ऊपर तक दब गया और तभी दो ईंट भी मेरे सिर पर गिर गईं व सिर में चोट आ गई , रक्त” बहने लगा और क्षणिक देर के लिये मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया, मुझे चक्कर आ गया।

तुरंत मैं फिर पूर्णत: संभल गया परन्तु मेरा पैर मलबे में दबा था। तभी कईं कार सेवक वहां से मलबा हटाने लग गए और तुरंत मेरे दोनों पैर मलबे से निकाल लिए और मुझे वहां से उठाकर नीचे उतारने लगे। तीनों गुम्बद खचाखच कारसेवकों से भरे हुए थे। जैसे-तैसे वे वहां से मुझे चढ़ाव तक ले आए। चढ़ाव से भारी मात्रा में कारसेवक ऊपर चढ़ रहे थे। मुझे उठाने वाले भी निराले कार सेवक थे। पहले कार सेवक का नाम हरिराम था और वो कोटा के पास के गांव का निवासी था। दूसरा पंजाब का था ,तीसरा महाराष्ट्र का और चौथा गुजरात का था। मैने इन सभी के नाम और पते पूछे थे लेकिन मुझे इनके प्रांत के नाम ही याद रहे।

रक्त से तिलक

पंजाब के कार सेवक ने मुझे की सर्तकता से चढ़ाव से नीचे उल्टा करके उतरा और फिर मुझे वहां से मंदिर के पीछे के भाग की ओर लेकर चले। कटीले तार व सुरक्षा के लिए लगे पाईप को भी बड़ी सतर्कता से पार कर वे मुझे उठाते हुए राम कथा कुंज की ओर लेकर चले। बीच-बीच में माताएं मुझे हिम्मत बंधा रहीं थीं और जय श्री राम के नारे लगा रही थीं। मैं भी जय श्रीराम के नारे लगा रहा था।  

कईं माताएं मेरे शरीर से निकल रहे रक्त को झेल कर उससे बिंदी लगा रहीं थीं तो कईं कार सेवक मेरे रक्त से अपने मस्तक पर तिलक निकाल रहे थे और प्रसन्नचित हो रहे थे। मुझे भी आनंद आ रहा था। मंच से आचार्य धर्मेन्द्र देव जी जय श्रीराम की उद्धोष करवा रहे थे करता रहे थे। मैं सुन रहा था ‘बाबर बोले जय श्री राम, अकबर बोले जय श्री रामा, बुखारी बोले जय श्री राम जय श्री राम जय श्रीराम के नारे लग रहे थे।  

आगे की कार सेव अगले अंक में ….

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