रामजी कलसांगरा की कार सेवा डायरी भाग:3
6 दिसंबर के बाद घर वापसी का संघर्ष
कर्फ्यू के चलते बड़े स्टेशनों पर भोजन पानी का संकट हुआ तो ट्रैक्टर की रोशनी में बैल गाड़ियों से भोजन पानी लेकर पहुंचे ग्रामीण
ड्राइवर से ट्रेन रुकवा कर कर सेवकों को कराया भोजन
6 दिसंबर 1992 को कार सेवा करने गए रामजी कलसांगरा की डायरी का अंतिम भाग है। इस भाग में कार सेवकों का कार सेवा के बाद वापस घर लौटने का संघर्ष है। 6 दिसंबर के बाद बड़े शहरों में कर्फ्यू लग गया था, ऐसे में स्टेशन पर भोजन और नास्ता भी नहीं था। ऐसे समय में छोटे-छोटे स्टेशनों के आस-पास के ग्रामीण बिना बिना बिजली के कार सेवकों के लिए भोजन पानी की व्यवस्था कर रहे थे। ये वो संघर्ष है जिसे हम केवल सोच ही सकते हैं और ये ग्रामीणों की वो सेवा थी जिसे भूल नहीं सकते। प्रस्तुत है रामजी कलसांगरा की कार सेवा डायरी का अंतिम भाग:
पूरे अयोध्या परिसर में आनंद का माहौल बना हुआ था। कोई नाच रहा था, तो कोई गीत गा रहा था, कोई घंटी बजा रहा था तो कोई थाली बजा रहा था। सभी नाच गान में मंत्रमुग्ध हो रहे थे। पूरी अयोध्या में गगनभेदी नारे लग रहे थे। पूरी अयोध्या में इतना हर्ष था कि शब्दों में प्रकट करना मेरे लिए संभव नहीं हैं। मुझे रामकथा कुंज के अस्थाई चिकित्सालय में लाया गया। वहां डॉक्टर ने मेरा चेकअप किया। मुझे एंबुलेंस में बैठाकर अयोध्या अस्पताल भेज दिया गया। वहां के डॉक्टर ने सेवा भाव से मेरा प्राथमिक उपचार किया। मेरे पैर की हड्डी फ्रेक्चर थी और ऐडी पर भी घाव हो गया था। दो जगह सिर में डॉक्टर ने पांच-छह टांके लगाए तथा पटिए की सहायता से पैर बांध दिया।
ऐसे “हरि” कहां मिलेंगे?
वहां से हरिराम मुझे एक्स-रे विभाग में ले गया। पैर के एक्स-रे में हड्डी टूटी हुई नजर आ रही थी। उस समय एक कार सेवक ने कहा आपको भारी चोट आई है। आपका पैर शायद ही बचेगा औऱ वो रोने लग गया। मैने उसे समझाया और कहा कि धैर्य रखो रखो भाई सब ठीक हो जावेगा और फिर मुझे वहां से उठाकर बाहर लाया गया और थोड़ी देर के बाद में एम्बूलेंस में निद्रा कर साकेत चिकित्सालय मे लाया गया। साकेत में मुझे डॉक्टर ने चेक किया और फिर एक ग्लूकोज की बॉटल चढ़ा दी। मैं वही सायं तक लेटा रहा।
अयोध्या से साकेत एंबुलेंस से आ रहे थै उसी समय एंबुलेंस में डॉ. बारोड़ जी, जो कि शिवाजी नगर इंदौर से कारेसवा करने गए थे, मिल गए। मैने उन्हें नमस्कार किया। उन्होंने मुझे देखा और फिर कहा , कहां चोट आई है। सब पूछने के बाद कहा कि मैं तुम्हारे साथ रहूंगा अत: चिंता मत करना। मैने उनसे वाहिनी में सूचना करने को कहा। साकेत में उन्होंने वाहिनी के कार सेवकों को बताया। सबसे पहले पारस जी जैन मुझसे मिलने आए। उसके बाद अनिल जी, मिलिंद जी सहित कईं कार सेवक वहां आ गए। तब मुझे मलबे से निकालने वाले कार सेवक हरिराम ने पूछा कि क्या मैं अब जाऊं। मैने भरे नेत्रों से उनको विदाई दी। हरिराम जी मुझे छोड़कर वहां से कारसेवक घायल थे उनकी सेवा में लग गए। धन्य हैं हरिराम।
आपने इतिहास बनाया है
करीब सात बजे मुझे पलंग पर शिफ्ट किया गया उसके बाद मेरे पास रात भर दो कार सेवक बारी-बारी से खड़े रहे। रात्रि को माननीय सुदर्शन जी मिलने आ। उन्होंने मुझसे बात और कहां लगी पूछा।। मैने पैर और सिर पर चोट की बात बताई तो उन्होंने कहा कि आपने इतिहास बनाया है, थोड़ी देर परेशानी तो उठानी पड़ेगी। ये जीवन राष्ट्र के कार्य के लिए समर्पित है। बाद में माननीय हो. वि शेषाद्री जी आए। उन्होंने भी मुझसे बात की, उन्होंने कहा कि मुझे पहचाना ? मैं शेषाद्री। फिर उन्होंने मुझे लेटा दिया और मेरे स्वास्थ्य की जानकारी मेरे पास खड़े अन्य स्वयंसेवकों से ली फिर मुझे नमस्कार किया और आगे बढ़े। उसके बाद मुरली मनोहर जोशी जी, लालकृष्ण आड़वाणी, राजमाता और अन्य नेता मुझसे मिलने आए। अत: 6 दिसंबर की रात्रि इस तरह से प्रसन्नता से दर्द छिपाती हुई बीती।सात दिसंबर को उठने के बाद करीब सात बजे मुझे एक्स-रे विभाग ले जाया गया।
राम भक्तों की सेवा..
6 दिसंबर की रात से सात दिसबंर तक कि सुबह आठ बजे तक साकेत रामभक्त मेरे सामने कईं घायल कार सेवकों की सेवा करते दिखे। हर घंटे चाय पानी, शौच व लघुशंका कराना, भोजन करवाना, दवाई लगाना, दवाई देना। वो घर-घर से कपड़े लाए और जिनके पास कम कपड़े थे या जिनके कपड़े फट गए थे, उन्हें कपड़े पहना रहे थे। पूरी आत्मा से माताएं, राम भक्त भाई और 15-20 वर्ष के नौजवान रातभर कार सेवकों की सेवा करते रहे। जिन कार सेवकों के पास उनके मिलने वाले नहीं पहुंचे उनकी सेवा स्थानीय राम भक्त व हरिराम जैसे कार सेवक कर रहे थे। एक्स-रे होने के बाद डॉक्टर साहब ने बड़ा फ्रेक्चर बताया। बड़ा फ्रैक्चर होने से वाहिनी प्रमुख अनिल जी दामले ने इंदौर आने का निर्णय लिया।
साकेत के डॉक्टर साहब ने मुझे पट्टा चढ़ा दिया और मुझे छुट्टी दे दी गई। स्ट्रेचर की मदद से मुझे एंबुलेंस में बैठाया और साकेत स्टेशन पर लाया गया। पट्टा चढ़ाते समय मुझे बेहोश किया गया था। अत: अस्पताल से स्टेशन के बीच मुझे धीरे-धीरे होश आने लगा। उसके बाद साबरमती गाड़ी से इंदौर के लिए चल पड़े। प्रथम कक्षा के डिब्बे में मुझे और इंदौर के दो कार सेवक, जोकि कार सेवा में घायल हुए थे, वो भी बैठे थे। विहिप के इंदर जी पांचाल भी बैठे थे। हमारी गाड़ी पर इलाहाबाद में बम फैंके गए परंतु प्रभु इच्छा से वो बम फेल हो गए। माननीय लालकृष्ण आडवानी जिस ट्रेन से अयोध्या आ रहे थे, उस ट्रेन में टाइम बम रखा गया थो जो कि राम जी कृपा से बीस मिनट पूर्व ही मिला जिसे निष्क्रिय कर दिया गया था। इस प्रकास कईं ट्रेन पर बम से हमले हुए लेकिन एक भी बम नहीं फटा, ये भगवान का चमत्कार था।
अंधेरे स्टेशन पर ग्रामीणों ने कराया भोजन
जब हम इंदौर लौट रहे थे तो कर्फ्यू लगा होने से बड़े-बड़े स्टेशनों पर भोजन व नास्ता भी उपलब्ध नहीं था। जब हमारी गाड़ी एक छोटे स्टेशन पर रूकी तो वहां लाईट तक नहीं थी। समीप के ग्राम के ग्रामीण ने अपने ट्रेक्टर से लाइट की और वे बैलगाड़ियों पानी के ड्रम भरतक स्टेशन पर लाए, टंकी में चाय लाए, गांव के प्रत्येक घर से भोजन के पैकेट बनाकर स्टेशन पर लाए थे। जैसे गाड़ी रूकी, ग्रामीण नवयुवकों ने ड्राईवर को नीचे उतार और कहा जब तक कार सेवकों को भोजन का वितरण नहीं होगा, गाड़ी आगे नहीं बढ़ेगी। पूरी गाड़ी में भोजन, पानी और चाय का वितरण होने के बाद गाड़ी आगे बढ़ी।
इस तरह से छोटे-छोटे स्टेशनों पर ग्रामीण कारसेवकों को भोजन उपलब्ध करा रहे थे। ये पूजनीय डॉक्टर साबह के संगठन की देन है। आश्चर्य की बात ये है कि ये भोजना व्यवस्था बिना किसी सूचना के ग्रामीण राम भक्त कर रहे थे। इस तरह से हम नौ दिसंबर को दोपहर तक इंदौर आ गए। इंदौर में मुझे पुलिस वाहन द्वारा निजी नर्सिंग होम में भर्ती करा दिया।