सोमनाथ मंदिर का खर्च उठाने के लिए सरकार ने दी थी 350 एकड़ वन भूमि
इससे मिलने वाले ₹60000 से होता था मंदिर का संचालन
1951 में जब सोमनाथ मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह आयोजित किया गया था। उस समय प्राण प्रतिष्ठा के बाद मंदिर के नियमित खर्चों को पूरा करने के लिए तत्कालीन सौराष्ट्र सरकार ने मंदिर ट्रस्ट को साढे तीन सौ एकड़ के वन प्रदान किए थे। इन वनों से प्रतिवर्ष 60000 रुपए की आय का अनुमान लगाया गया था, जिससे सोमनाथ मंदिर के नियमित रखरखाव का खर्च उठाया जा सके। इस मंदिर के निर्माण के लिए जो न्यास बना था उसने सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में 30 लाख रुपए की राशि इसके निर्माण के लिए एकत्रित की थी।
10 में 1951 को तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की उपस्थिति में सोमनाथ के मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह आयोजित किया गया था। इस समारोह के दौरान तत्कालीन सौराष्ट्र सरकार (उसे समय गुजरात नाम का कोई राज्य देश में नहीं था, द्वारका का क्षेत्र उस समय सौराष्ट्र कहलाता था, ने मंदिर ट्रस्ट को अपने दैनिक खर्च की व्यवस्था करने के लिए 350 एकड़ के वन प्रदान किए थे। मंदिर निर्माण के लिए जो ट्रस्ट बनाया गया था उसे ट्रस्ट में भी सौराष्ट्र सरकार के दो प्रतिनिधि थे। ट्रस्ट में भारत सरकार का कोई भी प्रतिनिधि नहीं था और इसके अध्यक्ष की जिम्मेदारी सरदार वल्लभभाई पटेल के पास थी। वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमनाथ ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं।
देशभर के मंदिरों में हुई थी प्रार्थना
सोमनाथ के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह 10 मई सुबह 9:37 पर हुआ था। सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट ने देशभर से आह्वान किया था कि वह अपने-अपने निकट के मंदिरों में एकत्रित हो और वहां पर सुबह 9:35 से 2 मिनट के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें। इस तरह से देश भर के श्रद्धालु मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में अपने-अपने घर के पास के मंदिरों से ही सम्मिलित हुए थे। सोमनाथ मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में सौराष्ट्र की राज्य सरकार सम्मिलित थी लेकिन केंद्र सरकार की इसमें कोई भूमिका नहीं थी। जो 30 लाख रुपए की राशि मंदिर निर्माण के लिए एकत्रित की गई थी 10 में 1951 तक उसमें से केवल 10 लाख रुपए ही खर्च हुए थे।