हमें विभाजन का आभारी होना चाहिए ?

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अगस्त के महीने में 14 और 15 अगस्त राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत दिवस होते हैं। 14 तारीख को बड़े पैमाने पर अखंड भारत की बात होती है और 15 तारीख को हम खंडित भारत का जन्मदिन मनाते हैं। हालांकि एक पाकिस्तानी पत्रकार के माध्यम से पता चला है कि मोहम्मद अली जिन्ना चाहते थे कि पाकिस्तान भी अपना स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
हमें विभाजन का आभारी होना चाहिए यह सुनने में अजीब लग सकता है और इसे राष्ट्रद्रोह की संज्ञा भी दी जा सकती है। लेकिन यहां यह बातें भारतीय राजनीति के संदर्भ में हो रहीे हैं। हमारी वोट बैंक आधारित राजनीति जिसके कारनामें हम समय-समय पर देखते रहते हैं।


लेकिन आप सोचिए कि पाकिस्तान की जनसंख्या 21 करोड़ के आसपास है यदि भारत का विभाजन नहीं होता तो यह 21 करोड़ लोग आज भारत में होते। 21 करोड़ में से 20 करोड लोग एक ही धर्म को मानने वाले हैं। उसी धर्म को जिसके आधार पर पाकिस्तान बनाया गया था।
यदि 20 करोड लोग भारत में होते तो राजनीतिक क्षेत्र में यह क्या असर दिखाते, यह सोचे जाने की आवश्यकता है।

जिस तरह का वोट बैंक चरित्र भारत में धर्मनिरपेक्षता की आड़ में पनपा है । उसी के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आज देश में संभवतः मुस्लिम प्रधानमंत्री होता। संभवत: आधे से अधिक राज्यों के मुख्यमंत्री भी लगभग पिछले दो-तीन दशकों से उसी समुदाय से होते। यह भी संभव था कि अनुसूचित जाति जनजाति और पिछड़ा वर्ग आरक्षण के सबसे बड़े लाभार्थी भी यही होते हैं क्योंकि वोट बैंक की राजनीति क्या होती है हाल ही में हमने ओबीसी रिजर्वेशन बिल पर देखा है।

सारे तर्क सारी विफलताएंं और सही गलत की समझ वोट बैंक पर कुर्बान की जा सकती है।
एक बिल के लिए पेगासस, किसान, राष्ट्रीय सुरक्षा, महंगाई ,सरकार की तानाशाही सब को एक तरफ रख दिया गया। विपक्ष और पक्ष साथ आया और बिना किसी रोक-टोक एक विधेयक कानून बन गया।उसके बाद अगले दिन राज्यसभा में क्या हुआ वो न चाहते हुए भी सभी ने देखा है।


फिलहाल हम इस मुद्दे पर बात नहीं कर रहे हैं। हमारी बातचीत का विषय विभाजन है। संभव था कि उस स्थिति में केवल कश्मीरी पंडित ही विस्थापित नहीं होते बल्कि हमारे पास विस्थापितों की लंबी सूची होती। लेकिन शर्तिया उनकी सुनवाई कहीं नहीं होती। आप देख सकते हैं कि 10% से भी कम संख्या के साथ एक समुदाय ने अपने लिए अपना पर्सनल लॉ तक हासिल कर लिया हो, वह 40% के लगभग होते तो जनतांत्रिक सरकारों के दौर में एक मजबूत वोट बैंक के रूप में अपने लिए क्या-क्या ले सकते थे, कभी सोचा है?

हाल ही में पाकिस्तान में आठ साल के हिन्दू लड़के को ईश निंदा के आरोप में जेल भेजा गया था। लड़के की गलती केवल इतनी थी कि वो भटक कर मदरसे में चला गया और वहां मौलवी ने उसे पकड़ लिया। एक आठ साल का बच्चा भी पाकिस्तान में हिन्दू होने का मतलब जानता है। डर के मारे बच्चे की पेशाब छूट गई। मौलवी के लिए ईशनिंदा की पटकथा इसी से तैयार हो गई। लड़के को जेल भेजा गया और उसे जमानत मिलने की खबर से नाराज भीड़ गणेश मंदिर में घुस गई और मूर्तियों के साथ तोड़फोड़ की गई।

मंदिर से याद आया कि पांच सौ साल से भी ज्यादा लंबे संघर्ष से श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर पर बनाने का अधिकार हिन्दू समाज को मिला है। सोचिएगा यदि विभाजन नहीं होता तो हो सकता था कि आपको और भी इंतजार करना पड़ता या शायद मामला कभी नहीं सुलझता? क्या आप कभी तीन तलाक को खत्म कर पाते या फिर क्या आप कभी कॉमन सिविल कोड की बात कर पाते? संभव था कि हम भी डीएनए को स्वीकार कर लेते या फिर हम मे से कुछ लोगो एक युद्ध लड़ रहे होते, जिसमें निश्चत रूप से सत्ता उनके साथ नहीं होती।

जिस दिन आप इन विषयों पर विस्तार से सोचेंगे उस दिन आप अखंड भारत की अवधारणा से अपने आप को दूर पाएंगे। वैसे भी हमें यह स्वीकार करने में हिचक नहीं होनी चाहिए कि हम इजराइली नहीं है जो वर्षों तक जेरूसलम की तरफ मुंह करके यह संकल्प लेते रहें कि हम इजराइल को पाएंगे। हालांकि ऐसा नहीं है कि हम इसराइली लोगों की तरह कभी भी संकल्पवान न हो पाएं। हम उससे भी बड़ा संकल्प कर अखंड भारत को पा सकते हैं, लेकिन वास्तिवकताओं को कभी नहीं भूलता चाहिए।

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