तालिबानी नेताओं से क्यों मिले थे भारतीय अधिकारी?
भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस मुलाकात का खंडन भी नहीं किया
नई दिल्ली
अफगानिस्तान में तालिबान के फिर सत्ता में काबिज हो जाने के बाद सोशल मीडिया पर भारतीय भी अपनी चिंता और गुस्सा जता रहे हैं। इस मामले को कट्टरता से जोड़कर देखा जा रहा है। लेकिन खास बात यह है कि भारतीय अधिकारियों ने इस साल की शुरुआत में ,संभवत: मई-जून में, तालिबानी नेताओं से मुलाकात की थी। उस समय तक दूर-दूर तक तालिबान के अफगानिस्तान पर काबिज होने की संभावनाएं नहीं थीं।
कतर के अधिकारियों ने दावा किया है कि इसी साल भारतीय अधिकारियों के एक दल ने कतर की राजधानी दोहा में तालिबान की राजनीतिक नेतृत्व के साथ में गुपचुप मुलाकात की थी। कतर के आतंकवाद निरोधक तथा मध्यस्थता के विशेष दूत मुल्तान बिन मजिद अल कहतानी ने एक कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए इस बारे में खुलासा किया था।
खास बात यह है कि इस मुलाकात के बाद भारत के विदेश मंत्री जयशंकर दो बार दोहा में रुके थे। इससे भी बड़ी बात यह है कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहतानी के दावे के ऊपर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया था। इसका मतलब यह है कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने ना तो इस मुलाकात की पुष्टि की और ना ही इसका खंडन किया।
क्या भारत को पता था कि तालिबान आने वाला है?
कहतानी के दावे के बारे में भारतीय समाचार पत्र द हिंदू ने उनसे बात की थी। हिंदू के मुताबिक कहतानी ने कहा था कि भारतीय अधिकारियों की तालिबान नेताओं के साथ मुलाकात का कारण यह था कि भविष्य में तालिबान की अफगानिस्तान में महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। कहतानी ने कहा था किसी को भी ऐसा नहीं लगता कि तालिबान अफगानिस्तान पर राज करेगा लेकिन यह लगता है कि वह अफगानिस्तान के भविष्य में एक महत्वपूर्ण कारक रहेगा। कहतानी ने यह बातें एक अमेरिकी संगठन द्वारा दोहा के अरब सेंटर में आयोजित किए गए वेबीनार में कही थीं।
सीधे स्वीकार नहीं किया
इस मुलकात के बारे में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने केवल इतना कहा था कि भारत अफगानिस्तान के विकास एवं पुनर्निर्माण कि अपनी पुरानी प्रतिबद्धताओं के चलते लंबे समय से विभिन्न पक्षों के संपर्क में है। वक्तव्य से कहीं भी गोपनीय मुलाकात की बात का खंडन नहीं होता उल्टा यह लगता है कि घुमा-फिराकर मुलाकात की बात को स्वीकार किया जा रहा है। सबसे खास बात यह है कि भारत हमेशा से ही तालिबान को एक आतंकी समूह मानता रहा है और उसने कभी इन्हें मान्यता नहीं दी है।
विदेश मंत्री जयशंकर के मिलने की भी खबरें उड़ी थीं
इस मुलाकात के बाद भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 9 जून और 15 जून को अपनी कुवैत और कीनिया दौरे के बीच में दोहा में रुक कर कतार के विदेश मंत्री और वहां के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तथा अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया के विशेष अमेरिकी प्रतिनिधि ज़लमाय खालिलजाद से मुलाकात की थी। उस समय इस तरह की खबरें भी उड़ी थी कि जयशंकर ने भी तालिबानी नेताओं से बात की है लेकिन बाद में भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसका खंडन किया था।
बहरहाल अब तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि भारतीय अधिकारियों ने तालिबानी राजनीतिक नेताओं से आखिर किस मुद्दे पर बात की थी। सूत्रों के अनुसार कहा जा रहा है कि तालिबान ने भविष्य में भारत के किसी भी मामले में हस्तक्षेप ना करने का वादा किया था। बताया जा रहा है कि तालिबान ने इस तरह का वादा लगभग सभी देशों से किया है। यही कारण है कि नाटो और पश्चीमी देश अब तक इस मामले में सीधी कार्रवाई से दूर हैं।