50000 करोड़ के हीरों के लिए सवा लाख करोड़ का नुकसान
बक्सवाहा में हीरा खनन के विरोध में हो रही जनता लामबंद
बक्सवाहा. (छत्तरपुर)
बक्सवाहा के जंगलों का मामला इस बात का एक और उदाहरण है कि कोरोना के कहर से हमने कुछ नहीं सीखा। कुछ हजार लोगों को ऑक्सीजन उपलब्ध कराने में असफल रहने वाले तंत्र ने प्रतिदिन बिना किसी लागत के 230 लीटर ऑक्सीजन देने वाले 215000 पेड़ों का जीवन दाव पर लगा दिया है। यानी कि सरकार के इस निर्णय से प्राकृतिक रूप से प्रतिदिन पैदा हो रही पांच करोड़ लीटर ऑक्सीजन का नुकसान होगा। लेकिन परवाह किसे हैं। निवेश ही सब कुछ है प्रकृति कुछ नहीं।
मध्यप्रदेश के बक्सवाहा के जंगलों को हीरा खनन के लिए दिए जाने का मामला तूल पकड़ रहा है। इस मामले में स्थानीय स्तर से शुरू हुआ विरोध अब राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गया। इस योजना के बारे में खास बात ये है कि जिस कंपनी को यहां हीरा उत्खनन का ठेका दिया गया है, वो यहां पर 2250 करोड़ रुपया निवेश करेगी। कंपनी के अनुसार बक्सवाहा में 50000 करोड़ रुपए के हीरे के भंडार हैं। लेकिन इंडियन कौंसिल ऑफ फारेस्ट ट्री रिसर्च एंड एजूकेशन के आंकड़ों के तो इस 50000 करोड़ रुपए के हीरों के लिए देश को दो लाख करोड़ रुपए का नुकसान होगा।
ऐसे होगा दो लाख करोड़ का नुकसान
इंडियन कौंसिल ऑफ फारेस्ट ट्री रिसर्च एंड एजूकेशन ने एक पेड़ के जीवनकाल को 50 साल का मानते हुए इससे मिलने वाले लाभों के कुल मूल्य का आंकलन किया है। इसके अनुसार इन 50 साल में एक पेड़ 11 लाख 97 हजार 500 रुपए की ऑक्सीजन छोड़ता है। जो लोगों के लिए प्राण वायु का काम करती है। इसके अलावा सीधे तौर पर एक पेड़ इन 50 सालों में 23 हजार 68 हजार 400 रुपए वायु प्रदूषण नियंत्रण में हमारे लिए मददगार बनता है।
एक पेड़ 19 लाख 97 हजार 500 रुपए मूल्य की भू-क्षरण नियंत्रण व उर्वरता बढाने में सहयोग प्रदान करता है। पेड़ बारिश के पानी को रोकने, कटाव रोकने और जल की रीसाइकिल करने में 4 लाख 37 हजार रुपए की मदद देता। इस तरह एक पेड़ 50 साल में हमको 52 लाख 400 रुपए से अधिक का फायदा पहुंचता है। बताया जा रहा है कि इस क्षेत्र में दो लाख 15 हजार 750 पेड़ हैं। इस हिसाब से ये नुकसान 1.13 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का होता है। सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल में रेलवे ट्रेक के लिए तीन सौ पेड़ काटे जाने पर इनका मूल्य 20000 करोड़ रुपए लगाया था। इस गणना में पेड़ की आयु सौ वर्ष मानी गई थी।
मप्र सरकार ने लगाया था एक करोड़ का जुर्माना
ऐसा नहीं है कि पेड़ इस महत्व से मध्य प्रदेश की सरकार अनजान है। मार्च के महीनें प्रदेश के वन विभाग ने इसी आधार पर सागौन के दो पेड़ काटने वाले एक व्यक्ति आरोपी छोटे लाल पर सागौन के दो पेड़ काटने के कारण 1 करोड 21 लाख 7 हजार 700 रुपए जुर्माना लगाकर 26 अप्रैल को कोर्ट में चालान पेश किया गया है। जानकारी के अनुसार इस मामले में जुर्माने की राशि सुनकर ही आरोपी फरार हो गया।
लेकिन इस आधार पर यदि बक्सवाहा के जंगलों की कीमत लगाएं तो वहां से निकलने वाला हीरा इसके सामने कुछ भी नहीं है। हालांकि सरकार इन जंगलों के बदले पौधारोपण करनेे की बात कर रही है। लेकिन अब तक इस तरह की योजना कारगर नहीं रही है। वैसे भी सवाल ये है कि जब जंगल पहले से ही मौजूद है और उसे काटने से मिलने वाले लाभों की राशि इससे बहुत कम है तो फिर इन्हें काटने की अनुमति देने का क्या मतलब है? सरकार के जुर्माने को आधार बनाया जाए तो प्रति पेड़ साठ लाख रुपए से अधिक का जुर्माना लगाया गया है। इस आधार पर 2.125 लाख पेड़ काटने पर कुल नुकसान 1.30 लाख करोड़ रुपए का होता है।
2017 में जानवर थे 2020 में गायब हो गए ?
यहां पर वन्य जीवों की मौजूदगी को लेकर भी सरकार की ओर से परस्पर विरोधी बातें सामने आई हैं। बकस्वाहा का सघन वन से घिरा यह क्षेत्र जैव विविधता से भी परिपूर्ण है। एमपी जियोलॉजी एंड माइनिंग और रियो टिंटो कंपनी की रिपोर्ट (2017) में इस क्षेत्र में तेंदुआ, भालू, बारहसिंगा, हिरण, मोर सहित कई वन्य प्राणियों के मौजूद होने की बात कही गई थी। इतना ही नहीं इस क्षेत्र में लुप्त हो रहे गिद्ध के भी होने की बात कही गई थी। इसे लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।
मगर दिसंबर, 2020 में छतरपुर वन विभाग अधिकारियों ने जो रिपोर्ट दी, उसमें यह सारे जाने कहां गायब हो गए। मतलब यह कि जब हीरे नहीं थे, तो जंगल में सारे पशु-पक्षी थे, लेकिन हीरा भंडार सामने आते ही जीव-जंतु खुद-ब-खुद यहां से हट गए कि हीरा खनन के नियमों में वे रुकावट न बनें।
पहले बक्सवाहा में जब्त किए थे ट्रेक्टर
बकस्वाहा में सबसे बड़ा हीरा भंडार मिलने की खबर जरूर हाल की है, मगर हीरा भंडार की खोज के प्रयास वहां दो दशक से चल रहे हैं। इस स्थान का सर्वे सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया की कंपनी रियो टिंटो ने किया था। यह वही कंपनी है, जिसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की वजह से इसके अपने देश में ब्लैक लिस्टेड किया जा चुका था। सर्वेक्षण के दौरान नाले के किनारे किंबरलाइट पत्थर की चट्टान मिलने से हीरा भंडार होने की संभावनाओं का जन्म हुआ।
एक दशक बाद मई, 2013 में कंपनी सर्वे के लिए यहां आई और बिना किसी से पूछे ही 800 से हरे पेड़ काट डाले। इस घटना पर वन विभाग ने उसके तीन ट्रैक्टर जब्त किए थे। मई, 2017 में संशोधित प्रस्ताव पर पर्यावरण मंत्रालय के अंतिम फैसले से पहले ही कंपनी ने यहां काम करने से इनकार कर दिया था।
इतना हीरा हैै बक्सवाहा में
बकस्वाहा के जंगलों में 3.42 करोड़ कैरेट हीरा होने का अनुमान लगाया जा रहा है। अब तक मध्य प्रदेश के पन्ना की खदानों को देश का सबसे बड़ा हीरा भंडार होने का गौरव प्राप्त था। पन्ना में तकरीबन 22 लाख कैरेट हीरे हैं, जिनमें से 13 लाख कैरेट निकाले जा चुके है। पन्ना की तुलना में बकस्वाहा में 15 गुना ज्यादा हीरा निकलने का अनुमान लगाया गया है।
रियो टिंटो के इनकार के बाद राज्य की सरकार ने एक बार फिर यहां नई नीलामी करते हुए सबसे अधिक बोली लगाने वाली एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड को यह जमीन 50 साल की लीज पर दी है। अब सरकार 62.64 हेक्टेयर जंगल को चिह्नित कर खदान बनाने के लिए देना चाहती है, जबकि कंपनी की डिमांड जंगल के 382.131 हेक्टेयर की है, ताकि बाकी 205 हेक्टेयर जमीन पर वह खदानों से निकले मलबे को डंप कर सके।
लेकिन इन सबके बीच ऑक्सीजन के मामले में मुंह की खाने वाली सरकार ये नहीं सोच पा रही है कि हीरे के बिना दुनिया चल सकती है लेकिन हवा के बिना नहीं चलेगी।
Kya ho ra ha hi ab bhi na jagi to kab jagi gi