एडीएम शिकायतकर्ता बन जाए, जज भी बन जाए और प्रॉपर्टी भी अटैच करने लगे यह नहीं हो सकता

Screenshot_20220212-081220_Gallery

सीएए विरोध प्रदर्शनों में संपत्ति के नुकसान पर यूपी सरकार द्वारा जारी किए गए नोटिस पर सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति

नई दिल्ली

उत्तर प्रदेश में चल रहे विधानसभा चुनावों के बीच योगी आदित्यनाथ की सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने जोर का झटका दिया है। नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी CAA के विरोध में उत्तर प्रदेश में हुए प्रदर्शनों में हिंसा हुई थी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान भी पहुंचाया गया था। इस मामले में सरकार ने आनन-फानन में एक अधिनियम बना दिया था जिसके अधीन पूरे प्रदेश में सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की वसूली को लेकर सैकड़ों नोटिस जारी किए गए थे। 

शुक्रवार को मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और सूर्यकांत की बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार की खिंचाई की और कहा कि जब कोर्ट ने आदेश दिया था कि मामले की सुनवाई न्यायिक अधिकारी करें तो फिर अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी यानी कि एडीएम इन मामलों की सुनवाई कैसे कर रहे हैं? 

कोर्ट ने एडीएम द्वारा मामलों की सुनवाई किए जाने को लेकर कहा कि आप ही शिकायतकर्ता, आप ही जज और आप ही लोगों की प्रॉपर्टी अटैच कर रहे हैं। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की एडिशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद को कहा कि जब हम ने आदेश दिया है कि मामले की सुनवाई न्यायिक अधिकारी करेंगे तो फिर इसकी सुनवाई एडीएम क्यों कर रहे हैं? कोर्ट ने अपने 2009 के आदेश का हवाला दिया जिसमें कि कहा गया था कि क्षतिपूर्ति के दावे का आकलन तथा इसका इन्वेस्टिगेशन जज करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में पुनः इसी तरह का एक आदेश दिया था। 

एक्ट लागू होने से पहले नोटिस जारी किये

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की वकील से यह भी कहा कि बताइए कि अधिनियम को लागू होने के पहले ही एडीएम ने नोटिस कैसे जारी कर दिए? क्या यह सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन नहीं है? कोर्ट ने कहा कि हम इन नोटिस को खारिज कर देंगे और इसके बाद आपको स्वतंत्रता है कि आप नए अधिनियम के अधीन इस मामले की सुनवाई कर सकें। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सही प्रक्रिया के पालन करने के निर्देश दिए और कहा कि 18 फरवरी को वे इस मामले को फिर सुनेंगे। 

error: Content is protected !!