#BankStrike निजी बैंकों ने कम नुकसान नहीं पहुंचाया है
एक्सिस बैंक से लेकर लक्ष्मीविलास बैंक तक की लंबी सूची है निजी बैंकों की गड़बड़ियों की
सरकार बैंकों का निजीकरण करना चाहती है और सरकारी बैंकों के कर्मचारी इसका विरोध कर रहे हैं। इसके चलते देश केे सरकारी बैंकों में दो दिन की हड़ताल (Bank Strike) है। ये एक सामान्य जानकारी है लेकिन इसके उन पहलुओं के बारे में जान लीजिए जो आपको प्रभावित करेंगे।
नरेन्द्र मोदी के बारे में कहा जाता है कि वे देश के दूसरे शक्तिशाली प्रधानमंत्री हैं जो कि अपनी सरकार खुद चलाते हैं। इस तरह की पहली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को माना जाता है। बैंकों के निजीकरण के मामले में भी दोनों को समानांतर रख कर तुलना की जा सकती है।
राष्ट्रीयकरण के उलट है ये
ऐसा नहीं है कि देश में निजी बैंक 1990 के बाद आए हैं, आजादी के बाद भी देश में निजी बैंक थे लेकिन देश के असमान विकास का हवाला देते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इनका राष्ट्रीयकरण किया था। उनका कहना था कि निजी बैंक अपने मालिकों के मुनाफे के लिए काम करते हैं, वे देश के विकास के लिए काम नहीं करते हैं। उस समय इस तर्क को पूरे देश ने माना था। बैंकों राष्ट्रीयकरण देश के राजनीतिक इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण निर्णय माना जाता है।
बैंकों के निजीकरण को लेकर पहला सवाल ही यह उठता है कि क्या अब देश विकसित हो गया है, जो अब देश को राष्ट्रीयकृत बैंकों के स्थान पर निजी बैंकों से देश का काम चल जाएगा?
यहां तक कि सरकारी योजनाएं भी सरकारी बैंक ही चला रहे हैं इसमें निजी बैंकों का योगदान न के बराबर हैै। इसे इस ट्वीट में समझ सकते हैं
हमारे लिए इसके क्या मतलब है?
- आपकी खून पसीने की कमाई किसी ऐसे निजी संस्थान में रखना जिसका उद्देश्य ही मुनाफा कमाना हो, ऐसे में आपका धन कितना सुरक्षित होगा ये आपको सोचना होगा। याद कीजिए पिछले कुछ समय में हमें कईं बैंकों के बारे में यह सुनने को मिला है कि फलां बैंक के खातेदारों को बैंक से पैसे निकालने से रोक लगाई गई है । पिछले महीने ही इंडिपेंडेंट को-ऑपरेटिव बैंक के खातेदारों पर छह माह तक बैंक से पैसे निकालने पर रोक लगाई गई है।
- यह कहा जाता है कि निजी बैंकों में अच्छा काम होता है, जमीन पर सच नहीं लगता है। क्योंकि देश में अब तक जो बैंक संकट में आए वो निजी बैंक ही हैं। पिछले कुछ सालों में जिस तरह आईसीआईसीआई बैंक, येस बैंक, एक्सिस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक की गड़बड़ियां सामने आईं उससे यह तर्क भी कमज़ोर पड़ता है कि निजी बैंकों में बेहतर काम होता है।
- सरकार बैंकों में सुस्ती भी निजीकरण के पक्ष में एक कारण बनता है। यह माना जाता है कि सरकारी बैंकों के कर्मचारियों की नौकरी सुरक्षित होती है इसके चलते वे काम धीमी गति से करते हैं जबकि निजी बैंकों में अस्थाई कर्मचारी तेजी से काम करते हैंं। लोगों की शिकायत है कि सरकारी बैंकों में पैसा जमा करने में निजी बैंकों से ज्यादा समय लगता है।
- निजीकरण के बाद खातेदारों के सामने एक और समस्या खड़ी हो जाएगी। दरअसल निजी बैैंकों में मिनीमम बैलेंस पांच से दस हजार रुपए का होता है जबकि सरकार बैंकों में यह कम होता है। यानी निजीकरण के बाद आपको अपने खाते में ज्यादा बैलेंस रखना होगा।
- इतना ही नहीं आमजन निजी बैंक में लोन लेने जब जाते हैं तब उन्हें सरकारी बैंक लोन नहीं देते, इसके पीछे कारण यह है कि निजी बैंकों की ब्याज दर सरकारी की तुलना में थोड़ी ज्यादा होती है। आमतौर पर होम और कार लोन के लिए सरकारी बैंकों को पहली पसंद माना जाता है।