मजदूरों के लिए ट्रेन के मामले में पीयूष गोयल की भाजपा समर्थकों ने ही लगाई क्लास
रेलमंत्री बोले प.बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ, व झारखंड की सरकारों द्वारा इन ट्रेनों को अनुमति नही दी जा रही है, ट्वीट पर सारे रिप्लाए रेलमंत्री के खिलाफ
नई दिल्ली
कोनोना की महामारी और लॉकडाउन के चलते पैदल पलायन करते मजदूर राजनीतिक मुद्दा बन गए हैं। भाजपा इस मामले में कांग्रेस की सराकारों को कोस रही है तो कांग्रेस इस मामले में भाजपा को कटघरे में खड़ा कर रही है। लॉकडाउन के लगभग 50 दिन बाद भी इन श्रमिकों को घर पंहुचाने की कोई कारगर व्यवस्था नहीं हो पाई है। शनिवार को इस मामले में रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि रेलवे रोजाना 300 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को चलाकर कामगारों को उनके घर पहुंचाने के लिये तैयार है, लेकिन मुझे दुख है कि कुछ राज्यों जैसे प.बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ, व झारखंड की सरकारों द्वारा इन ट्रेनों को अनुमति नही दी जा रही है, जिससे श्रमिकों को घर से दूर कष्ट सहना पड़ रहा है।
उन्होंने इस संबंध समाचार एएनआई को दिए अपनी बाइट भी ट्वीटर पर पोस्ट की। जिसमें वे गैर भाजपा शासित राज्यों पर आरोप लगा रहे हैं कि उनके चलते रेलवे श्रमिक स्पेशल ट्रेन नहींं चला पा रहा है।
उनका यह ट्वीट लगभग 5600 बार रिट्वीट किया गया और इस पर सैकंड़ों प्रतिक्रिया भी मिलीं लेकिन निश्चित रूप से ये प्रतिक्रियाएं रेल मंत्री को पसंद नहीं आएंगी। सबसे खास बात ये है कि इस मामले में उन्हें राजनीति न करने की सलाह दी गई और ये सलाह देने वाले कईं हैंडल भाजपा समर्थकों के हैं।
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सुखदेव मौर्य नामक ट्वीटर हैंडल ने इस मामले में पीयूष गोयल को झूठ न बोलने की सलाह दी । सुखदेव मौर्य के ट्वीट और रिट्वीट देखकर लगता है कि वे हिन्दूत्ववादी हैं।
इसी तरह से एक और हिन्दूवादी रवि पनिहार, जो कि ऑप इंडिया की पोस्ट ट्वीट करते हैं और इसी तरह की ट्वीट उनके हैंडल पर दिखती हैं,उन्होंने भी इस मामले में रेेलमंत्री से पूछा कि आपको नींद कैसे आती है? इसके साथ ही झूठ न बोलने की सलाह देते हुए कहा है कि यदि सरकार चाहती तो अब तक श्रमिक घर पंहुच चुके होते।
इसी तरह से अरुण सेन नाम के ट्वीटर हैंडल ने भी ऐसा ही कुछ कहा है जिसे पीयूष गोयल पसंद नहीं करेंगे। इस हैंडल पर आरएसएस और हिन्दूवादी ट्वीट्स देखे जा सकते हैं। अरुण बैंगलौर में हैं और मध्य प्रदेश जाना चाहते हैं। उन्होंने ट्वीट में मप्र के मुख्यमंत्री को भी टैग किया है।
इस तरह से श्रमिकों के मुद्दे सुलझने की बजाय राजनीति में उलझते जा रहे हैं, सरकार ने जो तेजी वंदे भारत मिशन में दिखाई वो तेजी श्रमिकों के मामले में गायब है।