ग्रेजुएशन सेरेमनी के बाद चीनी छात्र क्यों खिंचवा रहे हैं मुर्दों की तरह फोटो
चल रहा है more dead than alive कैंपेन
कन्वोकेशन सेरेमनी या फिर ग्रेजुएशन सेरेमनी का गाउन पहने हुए एक स्टूडेंट जमीन पर गिरी हुई है और उसका सिर बिलकुल झुका हुआ है, इसी तरह से एक और स्टूडेंट कुर्सी पर गिरा हुआ और एक दीवार से सिर सटा कर मातम मना रहा है। ये कुछ फोटो हैं चीनी छात्रों के ग्रेजुएशन सेरेमनी के बाद की जिसे कि उन्होंने more dead than alive यानी कि जिंदा होने की तुलना में ज्यादा मरे हुए के कैप्शन के साथ सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है।
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बताया जा रहा है कि चीन में बढ़ती बेरोजगारी के चलते स्टूडेंट्स ने इस तरह के पोस्ट किए हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद अब उन्हें काम खोजना होगा लेकिन देश में बेरोजगारी की दर बीस प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर है औऱ देश में 1.16 करोड़ नए स्नातक युवा इस बाजार में नौकरी खोजने के लिए उतरें हैं। यह अब तक की रिकॉर्ड संख्या हैं।
अर्थव्यवस्था में सुस्ती छाईं हुई है और सरकार के इसे उबारने के उपाय अब तक बहुत कारगर नहीं रहे हैं। इस मंदी का सर्वाधिक प्रभाव टेक्नालॉजी और एजुकेशन सेक्टर पर पड़ा है और चीन में यही दो क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें कि सबसे अधिक नए स्नातक युवाओं को रोजगार मिलता था। लेकिन अब ये स्थितियां देखकर युवाओं में निराशा है।
चीन में इस समय सबसे ज्यादा ग्रेजुएट्स हैं और इसके चलते वहां पर स्टूडेंट्स की अपेक्षाओं, कौशल और रोजगार के अवसरों के बीच असंतुलन की स्थिति बन गई है। स्टूडेंट्स को लगता है कि उनकी डिग्री का नियोजकों के लिए कोई मूल्य नहीं है। इसके चलते स्टूडेंट्स पोस्ट ग्रेजुएशन करने जाते हैं और आगे की पढ़ाई भी करते हैं। पिछले एक दशक में चीन में साढ़े छह करोड़ युवाओं ने पीजी किया है और वहीं पीएचडी करने वालों की संख्या छह लाख है। इसके बाद भी कोविड के समय सरकार ने नौकरियां न होने के चलते यूनिवर्सिटीज को ज्यादा से ज्यादा स्टूडेंट्स को पीडी पाठ्यक्रमों में प्रवेश देने को कहा था।
ली नियान इन्हीं में से एक स्टूडेंट हैं। उन्होंने हाल ही में अपनी पीएचडी पूरी की है। वे भी more dead than alive अभियान का हिस्सा हैं। वे बताती हैं कि उन्होंने ग्रेजुएशन करने के बाद नौकरी खोजना शुरू किया था लेकिन नौकरी न मिलने के चलते वे आगे की पढ़ाई करती चलीं और अब पीएचडी हो चुकी है लेकिन नौकरी की समस्या फिर सामने है। वे याद करती हैं कि वे जब स्कूल में थीं तो एक जॉब फेयर में गईं थी और वहां उन्होंने रिक्रूटर्स को रिज्यूम की एक फाईल डस्टबिन में डालते देखा था।
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युवा चलाते हैं इकॉनामी
ऐसा नहीं है कि चीन अकेला ही बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है। यूरोप के भी कईं देशों में बेरेजगारी की दर बीस प्रतिशत से अधिक है लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार चीन की डेमोग्राफी के चलते ये समस्या वहां अधिक विकराल दिखाई देती है। वास्तव में युवा अर्थव्यवस्था को चलाने वाले महत्वपूर्ण कारक हैं क्योंकि उन्हें काम मिलता है तो वे किराया, ट्रांसपोर्ट और अन्य सामानों पर अधिक खर्च करते हैं जिससे अर्थव्यवस्था को गति मिलती है। 140 करोड़ की जनसंख्या वाले चीन में वैसे ही युवाओं का अनुपात घट रहा है जो कि चिंताजनक है।
ऐसा नहीं है कि ये भावना केवल युवाओं में है। चीन के ट्वीटर की तरह के प्लेटफॉर्म वीबू पर भी हाल ही में इसी तरह की पोस्ट की गई हैं जिनमें कहा गया है कि लोग बच्चे नहीं चाहते इसका कारण बहुत ही सीधा है। आप अपने एक मिलीयन युआन, पसीना और मेहनत अपने बच्चे को बीस साल तक बड़ा करने में लगाते हैं और अंत में आप एक ग्रेजुएट बेरोजगार पाते हैं।