8th October 2024

एक लोक सभा जहां पिछले 33 साल में भाजपा को केवल एक बार ही मिले कांग्रेस बसपा से ज्यादा वोट

लोक सभा चुनाव में मध्य प्रदेश लंबे समय से भाजपा का गढ़ रहा है। यहां तक कि जब 1993 से 2003 के बीच प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, उस दौरान भी लोकसभा चुनाव में भाजपा ही मैदान मारती रही थी। प्रदेश में अब भी कुछ लोक सभा सीटें ऐसी हैं जहां मुकाबला एक तरफा नहीं होता है। इन सीटों पर पिछले 1991 से अब तक कभी न कभी कांग्रेस ने भाजपा पटखनी दी है। इसी तरह की एक लोक सभा सीट है मुरैना, यहां पर नरेन्द्र मोदी के जादू के बाद भी भाजपा को अब भी कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के संयुक्त वोट से कम वोट मिल रहे हैं।

1991 के बाद से अब तक केवल एक बार ही इस सीट पर भाजपा को कांग्रेस और बसपा के वोटों से अधिक वोट मिले हैं। यानी कि इस सीट पर यदि कांग्रेस औऱ बसपा का गठबंधन हो जाए तो भाजपा को मुश्लिक हो सकती है हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने एकला चालो रे की नीति अपनाई हुई है। इसके चलते कांग्रेस और बसपा का साथ आना संभव नहीं दिख रहा है। लेकिन राजनीति में कभी भी कुछ ही हो सकता है। हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में मुरैना जिले की दिमनी विधानसभा सीट पर भी भाजपा प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह तोमर को बसपा के बलबीर दंड़ौतिया ने ही टक्कर दी थी।

यहां तक कि इस लोकसभा में आने वाली आठ विधानसभा सीटों का आंकलन करें तो यहां बसपा को वोट को जोड़े बिना भी कांग्रेस को भाजपा की तुलना में 51 हजार वोट ज्यादा मिले थे। ऐसे में बसपा कांग्रेस इस सीट पर साथ आ जाएं तो फिर भाजपा को बहुत मुश्किल हो सकती है।

2019 में इस सीट भाजपा के हैवीवेट प्रत्याशी और केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर मैदान में उतरे थे। उन्हें 5.41 लाख वोट मिले थे और वे 1.13 लाख वोटों से जीतने में सफल रहे थे। वहीं इस सीट पर दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास रावत को 4.28 लाख वोट मिले थे और तीसरे स्थान पर रहे बसपा के प्रत्याशी करतार सिंह भड़ाना को 1.29 लाख वोट मिले थे। कांग्रेस और बसपा के वोटों का जोड़ तोमर को मिले वोटों से 16 हजार ज्यादा था।

इसी तरह से 2014 में यहां से भाजपा ने अनुप मिश्रा को टिकट दिया था। उन्हें 3.75 लाख वोट मिले थे और वे 1.33 लाख वोटों से जीते थे। उनके सामने दूसरे स्थान पर रहे बसपा प्रत्याशी बृंदावन सिंह सिकरवार को 2.42 लाख तथा तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के गोविंद सिंह को 1.84 वोट मिले थे। यदि इस समय कांग्रेस और बसपा मिलकर लड़े होते तो भाजपा इस सीट पर 51 हजार वोटों से हार सकती थी।

2009 में एक  बार फिऱ नरेन्द्र सिंह तोमर भाजपा की ओर से मैदान में थे। उन्हें तीन लाख वोट मिले थे और वे एक लाख वोट से चुनाव जीते थे। इस चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास रावत को दो लाख तथा तीसरे स्थान पर रहे बसपा प्रत्याशी बलबीर दंड़ौतिया को 1.42 लाख वोट मिले थे। यदि इस चुनाव में कांग्रेस बसपा साथ होते तो तोमर 42 हजार वोट से हार सकते थे।

अब 2004 की करें तो यही एकमात्र चुनाव था जिसमें भाजपा को कांग्रेस बसपा के संयुक्त वोट से ज्यादा वोट मिले थे। इस समय मुरैना सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी। भाजपा ने अशोल अर्गल को टिकट दिया था। उन्हें 2.61 लाख वोट मिले थे और वे 1.47 लाख वोट से जीते थे। दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी बारेलाल जाटव को 1.14 लाख तो तीसरे स्थान पर रहे बसपा प्रत्याशी प्रीतम प्रसाद चौधरी को 86 हजार वोट से संतोष करना पड़ा था। यहां पर यदि कांग्रेस बसपा साथ होते तो भी भाजपा प्रत्याशी 61 हजार वोट से जीतते।

1999 में भाजपा प्रत्याशी अशोक अर्गल 2.10 लाख वोट पाकर 62 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे। इन चुनाव में दूसरे स्थान में रहे कांग्रेस के गोपाल दास को 1.48 लाख वोट मिले तो तीसरे स्थान पर रहे बसपा के प्रीतम प्रसाद चौधरी को 1.03 लाख वोट मिले थे। यदि यहां पर कांग्रेस बसपा साथ होते तो भाजपा के अर्गल 41 हजार वोट से हार जाते।

1998 के चुनाव में भाजपा के अशोक अर्गल को 2.77 लाख वोट मिले थे और वो 68 हजार वोटों से जीते थे। इस चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे बसपा के प्रीतम प्रसाद चौधरी को 2.09 लाख वोट मिले थे तो तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के रमेश बाबू 1.38 लाख वोट मिले थे। यदि इस चुनाव में बसपा-कांग्रेस साथ होते तो भाजपा यह चुनाव पचास हजार से हार सकती थी।

1996 में भाजपा प्रत्याशी अशोक अर्गल को 1.72 लाख वोट मिले थे और वे 38 हजार वोटों से जीते थे। दूसरे स्थान पर रहे बसपा के प्रीतम प्रसाद चौधरी को 1.34 लाख वोट मिले थे तो तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी बाबूलाल सोलंकी 59 हजार वोट मिले थे। यदि इन दोनों के वोट जोड़ दिए जाएं तो भाजपा 21 हजार वोट से हार सकती थी।

1991 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के बारेलाल जाटव को 1.16 लाख वोट मिले थे और कांग्रेस ने यह चुनाव 17 हजार वोट से जीते थे। इन चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे भाजपा के छविराम अर्गल को 99 हजार वोट मिले थे। तीसरे स्थान पर रही बसपा के प्रीतम प्रसाद चौधरी को 67 हजार वोट मिले थे।

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