जिस स्वयंसेवक के दोनों पैर काटे दिए गए थे वो भी मजबूती से खड़ा है चुनाव मैदान में

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केरल में वामपंथी हिंसा के जिंदा प्रतीक हैं सदानंद मास्टर

तिरुअनंतपुरम.

केरल में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं। इन चुनाव की हमारे यहां थोड़ी कम चर्चा है। लेकिन चुनाव उतने ही महत्वपूर्ण है। भाजपा वहां सत्ता की दौड में नहीं दिखा रही है लेकिन इन चुनाव पर अपना असर जरुर छोड़ेगी। 2016 से लेकर 2021 तक में भाजपा के लिए कुछ नहीं बदला तो वे सदानंद मास्टर हैं।

मोदी 2016 की रैलियों में भी उन्हें याद करते थे और इस बार भी कर रहे हैं। सदानंद मास्टर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उन कार्यकर्ताओं में से हैं जो कि केरल में वामपंथी हिंसा के शिकार हुए हैं। चुनाव की शुरुआत में भी एक संघ कार्यकर्ता नन्दू की हत्या एसडीपीआई की रैली के दौरान हुई थी।

केरल एक ऐसा राज्य है जहां पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने जान हथेली पर लेकर काम किया है। यह ऐसा राज्य है जहां अब भी संघ कार्यकर्ताओं पर हमले होते हैं लेकिन इसके बाद भी वे पूरे समर्पण के साथ काम में लगे हैं। वैसे तो केरल में इस तरह की घटनाएं बहुत सी हैं लेकिन सीपीएम कार्यकर्ताओं की हिंसा के शिकार सदानंद मास्टर की कहानी थोड़ी अलग है।

वे अभी केरल में हो रहे विधानसभा चुनाव में सीपीएम प्रत्याशी के खिलाफ कोथुपराम्बू सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। वे पिछली बार भी इसी सीट से मैदान में थे। हालांकि उन्हें जीत नहीं मिली लेकिन फिर भी पूरे देश के संघ कार्यकर्ताओं की निगाहे इस सीट पर थीं। हर कोई चाहता था कि सदानंद मास्टर जीतें। हालांकि ऐसा नहीं हो सका। लेकिन इस बार फिर सभी को उम्मीद है कि सदानंद मास्टर विधानसभा पहुंचेंगे।

1994 का समय था, जब सदानंद मास्टर अचानक चर्चा में आए थे। उस समय सीपीएम कार्यकर्ताओं ने एक हमले में उनके दोनों पैर काट दिए थे। उसके बाद सदानंद मास्टर कभी संघ का गणवेष नहीं पहन सके। लेकिन वे संघ कार्य में लगे रहे। हालांकि सदानंद मास्टर जयपुर फुट का उपयोग कर चल लेते हैं और जब संघ ने अपने गणवेश में नेकर की जगह फुल पैंट शामिल किया तो सदानंद मास्टर ने 22 साल बाग गणवेश धारण किया था।

छह फुट का है, चार फुट का कर दो

सदानंद मास्टर 25 जनवरी 1994 का दिन कभी नहीं भूल पाएंगे। उस दिन वे कुन्नूर के पेरिचेरी के बस स्टैंड से घर लौट रहे थे। उस समय उन पर हमला किया गया था। हमले का कारण क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में भाग लेना था। सदानंद मास्टर उस समय तीस साल के थे और उनकी ऊंचाई छह फीट थी। वे एक शासकीय सहायता से चलने वाले प्राथमिक स्कूल में शिक्षक थे। साथ ही कम्युनिस्टों के प्रभाव वाले क्षेत्र में संघ का काम कर रहे थे।

कईं बार उन्हें धमकाने और समझाने की कोशिश हुई लेकिन सदानंद मास्टर नहीं माने और अपने काम में लगे रहे। इसके बाद 25 जनवरी 1994 के दिन सदानंद मास्टर पर हमला बोल दिया गया। कहां जाता है कि हमलावरों ने कहा कि ये छह फीट का है इसे चार फुट का कर दो। हमला इसी उद्देश्य से किया गया था।

दोनों पैर काटकर कीचड़ में फेंके

सदानंद मास्टर हमले का यादकर बताते हैं कि वे बस स्टैंड से घर जा रहे थे। घर दो किमी दूर था तभी पीछे से कुछ बदमाश आए और उन्होंने मुझे पकड़ लिया। सबसे पहले उन्होंने वहां देशी बम फैंके ताकि दहशत के मारे वहां पर मौजूद लोग भाग जाएं।

पहले उन्होंने मेंरी पिटाई की और मुझे जमीन पर पटक दिया। बाद में उन्होंने कुल्हाडी और तलवार के वार से मेरे दोनों पैर काट दिए। इतना ही नहीं उन्होंने मेरे दोनों कटे पैर कीचड़ में फैंक दिए और मेरे पैर पर भी कीचड़ डाल दिया। यह सब कुछ पांच से दस मिनट में हो गया। इसके बाद भी मैं वहीं पड़ा रहा। किसी की हिम्मत नहीं हुई कि वो मेरी सहायता करते। 15 मिनट बाद पुलिस मौके पर पहुंची और वो मुझे अस्पताल ले गए।

वहां से मुझे थलासेरी अस्पताल रैफर किया गया । वहां से भी मुझे कोझीकोड मेडिकल कॉलेज रैफर कर दिया गया। जहां पर मेरा ईलाज हुआ।

कम्युनिस्टों को छोड़ा इसलिए हमला हुआ

सदानंद मास्टर पहले स्वयं कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े थे। वे 1984 से वामपंथी छात्र संगठन एसएफ आई से जुड़े थे। हमले के पीछे की कहानी बताते हुए उन्होंने कहा कि मेरे पिता भी कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएम से जुड़े थे और बहुत सक्रिय थे। मैने छात्र जीवन में बहुत सी विचारधाराओं के बारे में पढ़ना शुरू किया। उसके बाद मुझे लगा कि देश की सामाजिक समस्याओं का हल साम्यवाद के पास नहीं हैं। इसके बाद मैं क्षेत्र में संघ का काम करने वाले गोकुल दास के संपर्क में आया और वो मुझे संघ की शाखा ले गए।

साधारण स्वयंसेवक से शुरू हुई ये यात्रा गठनायक होते हुए शाखा के मुख्य शिक्षक और फिर तहलीस कार्यवाह तक पहुंची। हमले के समय मैं जिला सहकार्यवाह था और मेरा कार्यक्षेत्र पूरा कून्नुर जिला था। संघ के कार्य विस्तार से सीपीएम वालों को समस्या थी। 1993 में मेरे पिता के निधन बाद उनका गुस्सा बहुत बढ़ गया।

सबसे पहले सितंबर 1993 में पहली बार हमला हुआ। सीपीएम ने किसी मुद्दे पर हड़ताल की थी। उस दिन उन्होंने स्थानीय बस स्टैंड पर संघ के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गए प्रतीक्षालय और वहां लगी सीमेंट की बैंच को तोड़ दिया। स्वंयसेवकोंं ने इसका विरोध किया। इसकी सूचना मुझे मिली तो मैं भी वहां पहुंचा। मैने बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने हम लोगों की पिटाई कर दी। हमे चोट आई। उस समय में केरल में कांग्रेस की सरकार थी और करुनाकरन मुख्यमंत्री थे।

इस मामले में सीपीएम कार्यकर्ताओं पर टाडा (Terrorist and Disruptive Activities (Prevention) Act इसी में संजय दत्त की गिरफ्तारी हुई थी। ) में केस दर्ज किया गया। सदानंद मास्टर के अनुसार ये केरल का पहला टाडा केस था।

1996 में सत्ता परिवर्तन हुआ और सीपीएम के ई. के. नयनार मुख्यमंत्री बने और उन्होंने इस मामले में आरोपियों पर टाडा में दर्ज केस वापस ले लिए।

आठ सीपीएम कार्यकर्ताओं को हुई सजा लेकिन सभी जमानत पर बाहर

2003 में जिला कोर्ट ने सदानंद मास्टर पर हमले के मामले में निर्णय सुनाया। कुल 13 अभियुक्तों में से आठ को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सजा पाने वालों मेें पीएम राजन ( सीपीएम के स्थानीय कमेटी सदस्य) कृष्णन ( सीपीएम के शाखा सचिव) चन्द्रन (सीपीएम के कमेटी सदस्य) मोहनन (सीपीएम कार्यकर्ता) , बाबू , कृष्णन टीचर, रविन्द्रन और बालन (सभी सीपीएम कार्यकर्ता) को आजीवन कारावास दिया गया। इन सभी ने निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती दी है और ये सभी जमानत पर बाहर हैं।

हैवीवेट मंत्री से है मुकाबला

इस हमले के एक साल बाद वनिता रानी ने सदानंद मास्टर से विवाह किया। उनकी एक बेटी भी है। वे इस बार फिऱ अपनी पुरानी सीट से ही भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। यहां पर उनका मुकाबला सीपीएम की बड़ी नेता और पिनराई विजयन सरकार में मंत्री के के सैलजा से है।

पिछली बार सदानंद मास्टर इस सीट पर तीसरे स्थान पर रहे थे। उन्हें 20787 वोट मिले थे। सैलजा को 67 हजार वोट मिले थे औऱ दूसरे स्थान पर जेडी यू के मोहनन थे। उन्हें लगभग 55 हजार वोट मिले थे। लेकिन इस बार परिस्थितियां अलग हैं और सदानंद मास्टर कमाल कर सकते है और सैलजा के खिलाफ सत्ताविरोधी वोटों का लाभ उन्हें होगा।

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