कम सीटों के बाद भी नीतीश को मुख्यमंत्री बनाना भाजपा का त्याग नहीं मजबूरी
बिहार ने अपना निर्णय सुना दिया है। सबके खेल सामने आ गए हैं। ये भी सामने आ गया है कि सीटों के भारी नुकसान के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहेंगे। हालांकि भाजपा के पास उनसे ज्यादा सीटें हैं लेकिन इसके बावजूद उसने नीतीश को ही मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की है।
पहली नजर में देखने पर यह आपको भाजपा का त्याग लग सकता है लेकिन गौर से देखेंगे तो पता चलेगा कि भाजपा के पास दो विकल्प हैं या तो नीतीश को मुख्यमंत्री बनाए या फिर विपक्ष में बैठे। क्योंकि विधानसभा का गणित ऐसा है कि भाजपा के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है।
क्योंकि रामविलास के चिराग खुद बुझ गए हैं हालांकि बुझने के पहले उन्होंने जनता दल (यूनाइटेेड) के दर्जनभर चिराग बुझा दिए जिसके चलते नीतिश राजनीतिक रूप से कमजोर हुए हैं लेकिन फिर भी सत्ता के गणित के सूत्र उन्हीं के पास हैं।
ऐसा नहीं है कि चिराग किसके मोहरा थे ये नीतीश को नहीं पता है। हर कोई जानता है कि जो भाजपा सिंधिया के साथ 25 विधायक तोड़कर मध्य प्रदेश में सरकार बना सकती है, क्या वो अपने मंत्रिमंडल के सहयोगी एलजेपी को एनडीए में शामिल होने के लिए नहीं मना सकती थी?
अमित शाह राजनीति के इतने कच्चे खिलाड़ी को नहीं है कि एलजेपी को इस तरह से गठबंधन से बाहर जाने देते। यदि वे चाहते तो मुकेश सहनी की वीआईपी की तरह एलजेपी को भी अपने कोटे से सीट देकर मना सकते थे। इतना ही नहीं चिराग ने अपवादस्वरूप दो-तीन स्थानों को छोड़कर भाजपा के प्रत्याशियों के सामने प्रत्याशी नहीं उतारे हैं। इसका मतलब नीतीश नहीं जानते होंगे ऐसा भी नहीं है।
नीतीश राजनीति के कच्चे खिलाड़ी नहीं है। यदि भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाती है तो वे तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनवा देंगे। यह बात भाजपा भी जानती है इसके चलते खुलेआम यह कहा गया कि सीटें भाजपा को ज्यादा मिले तो भी मुख्यमंत्री नीतीश ही होंगे।
बिहारी तासीर को समझने वाले जानते हैं कि नीतीश आहत हैं और वे निश्चित रूप से पलटवार करेंगे। वे इसी तरह से एक बार लालू यादव से आहत हुए थे। उसके बाद लालू अब जेल में हैं। नीतीशअगले लोकसभा चुनाव का इंतजार करेंगे और फिर प्रतिक्रिया देंगे। उनके गुस्से का पहला शिकार चिराग ही होंगे और अब चिराग पासवान को लोकसभा पहुंचने के लिए तेजस्ली की शरण में ही जाना होगा क्योंकि इतना तय है कि नीतिश उन्हें लोकसभा चुनाव में भी एनडीए में नहीं रहने देंगे। भले ही इसके लिए उन्हें तेजस्वी को गले क्यों न लगाना पड़े।
इतना तय है कि ये खेल भाजपा ने शुरू किया है लेकिन खत्म नीतिश करेंगे। चिराग के सामने लोकसभा में भी बुझ जाने का खतरा है। जेडी यू के बारे में एक बड़ा सवाल खड़ा है कि नीतिश के बाद कौन? दरअसल भाजपा इसी स्थिति का लाभ उठाना चाहती थी। उसे लगा था कि नीतिश के कमजोर होने के बाद जेडी यू के नेता अपने लिए भाजपा में ठिकाना तलाशेंगे। इस तरह से वो बिहार में अपना मुख्यमंत्री बनाने का सपना पूरा कर सकेगी।
हालांकि नीतिश को समय मिल गया है कि वे जेडी यू में अपना विकल्प तैयार कर सकें, नहीं तो उनकी पार्टी को खत्म होने से कोई नहीं बचा सकेगा। हालांकि ये राजनीति है और इसमें कुछ भी अंतिम नहीं है सब कुछ अंतरिम ही होता है।