इंदौर के आईटी हब के लिए वरदान बनेगा बैंगलोर का जलसंकट?
फिर इंदौर के जलसंकट का क्या होगा? नीति आयोग ने संभावित जल सकंट वाले शहरों में इंदौर को बैंगलोर के ठीक नीचे रखा है
भारत के आईटी हब बैंगलौर में भीषण जलसंकट के हालात बन गए हैं और इसके बाद वहां की आईटी कंपनियों के कर्मचारियों ने इसे देखते हुए वर्क फ्रॉम होम का कोविड मॉडल लागू करने की मांग की है। इतना ही नहीं कुछ कर्मचारियों ने आईटी कंपनियों से बैंगलोर छोड़कर इंदौर जैसे शहरों का रुख करने को कहा है। कहा यह भी जा रहा है कि इंफोसिस और टीसीएस जैसी कंपनियां जिनके पास इंदौर में अपने सेंटर हैं वे अपना कुछ स्टाफ यहां शिफ्ट भी कर चुकी हैं। हालांकि इस बात कि पुष्टि नहीं हुई कि यह बैंगलोर के जलसंकट के कारण हुआ है कि या फिर कंपनी की व्यवसायिक नीति के चलते यहां स्टाफ भेजा गया है। नीति आयोग ने 2018 में ही बैंगलौर में संभावित जल संकट की भविष्यवाणी की थी। इस रिपोर्ट में इंदौर को बैंगलोर से ठीक नीचे रखा गया है।
बैंगलोर की आईटी कंपनियों के निवासियों ने मांग की है कि जलसंकट को देखते हुए आईटी कंपनियों में 90 दिन के लिए वर्क फ्रॉम होम की छूट देना चाहिए। इससे जो लोग बैंगलोर के बाहर से यहां काम करने आए हैं वे अपने मूल स्थानों पर लौट कर काम कर सकेंगे और इस तरह से बैंगलोर के जलसंकट से कुछ राहत मिलेगी। इस मामले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारम्मैया के पास अधिकारिक रूप से यह सुझाव भेजा गया है कि वे आईटी कंपनियों के लिए वर्क फ्रॉम होम अनिवार्य करने का आदेश दें। बताया गया है कि यह मांग करने वाले बैंगलोर के स्थनीय निवासी भी हैं। उनका मानना है कि इससे यहां पानी की मांग कम होगी।
वहीं आईटी सेक्टर से जुड़े लोगों का कहना है कि तीस से चालीस प्रतिशत तक का स्टाफ स्थाई रूप से इंदौर जैसी जगहों पर भेजा जाना चाहिए। इस शहर में पहले से ही बड़ी आईटी कंपनियों की फेसिलिटी है। हालांकि सुझाव में इंदौर के अलावा दूसरे नाम भी सुझाए गए हैं। लेकिन इंदौर का विकल्प देने वाले लोग ज्यादा है। बैंगलोर में पानी कृष्णाराजा डेम से आता है और इस बार कम बारिश के चलते इसमें पर्याप्त पानी नहीं है। हाल ये है कि पानी की कीमत दो से तीन गुना हो गई है और पहले जिन टैंकर से दूध सप्लाय होता था उनका उपयोग जल वितरण में किया जा रहा है।
कुछ लोगों की मांग है कि आईटी कंपनियों को अब स्थाई रूप से अपना स्टाफ बैंगलोर के बाहर दूसरे शहरों में भेज देना चाहिए इन शहरों के जो नाम सुझाए गए हैं उनमें इंदौर पहले स्थान पर है। इससे खुश होने की बजाय हमें नीति आयोग की रिपोर्ट को पढ़ना चाहिए और तैयारी करना चाहिए कि हमारे यहां के हाल बैंगलोर जैसे न हो।
इंदौर भी है जल संकट की सभावना वाले शहरों में
नीति आयोग ने 2018 में एक रिपोर्ट जारी कर देश के उन बीस शहरों की सूची जारी की थी, जहां 2030 तक जलसंकट की स्थिति बन जाएगी। इस सूची में यह भी बताया गया था कि 2030 के पहले किन शहरों में जलसंकट के हालात बन जाएंगे। इस सूची में बैंगलोर पांचवे स्थान पर था और इंदौर छठे स्थान पर। दोनों ही शहरों के बारे में बताया गया था कि यहां 2023 से जलसंकट अपना असर दिखाना शुरू कर देगा। बैंगलोर के लिए यह सही साबित हुआ है लेकिन इंदौर के हालात अभी नियंत्रण में हैं। हालांकि नीति आयोग ने हमें संभावित जल संकट के बारे में चेता दिया है फिर भी इसका कोई असर हमारी तैयारियों में दिखाई नहीं देता है। नीति आयोग द्वारा जारी की गई सूची में इंदौर से ठीक नीचे सातवें स्थान पर संभावित जल संकट वाले शहरों की सूची में रतलाम का भी नाम है।
बैंगलोर से लें सबक और काम में लगें
सफाई में लगातार पहले स्थान पर आने के बाद अब इंदौर शहर की ग्लोबल ब्रांडिग हो रही है। इसके चलते यहां पर बड़े व्यवसायिक प्रोजेक्ट आ सकते हैं। ऐसे में नीति आयोग की रिपोर्ट में इंदौर में जलसंकट की संभावना को ध्यान में रखना जरूरी है। कहीं ऐसा न हो कि जब इंदौर बैंगलोर जैसा हब बनने के निकट हो उस समय बैंगलोर की तरह का जलसंकट सामने खड़ा हो। इंदौर में अब भी नए मकानों के निर्माण के लिए अंधाधुन बोरिंग हो रहे हैं। पहले ही रिपोर्ट में सामने आ चुका है कि इंदौर में जितना भूजल रिचार्ज हो रहा है, उससे ज्यादा भूजल का दोहन हो रहा है। क्या इसके लिए इंदौर को विशेष तैयारी नहीं करना चाहिए।