क्या आरएसएस का आतंकवाद देश को निगल जाएगा लेख छापने वाले अखबार ने संघ से मांगी माफी

सुप्रीम कोर्ट में हारने के बाद 9 अक्टूबर मातृभूमि अखबार ने प्रकाशित किया माफी नामा

नई दिल्ली

केरल का मलयालम भाषा में प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक समाचार पत्र मातृभूमि को राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से माफी मांगनी पड़ी है। अखबार ने माफीनामा प्रकाशित किया है। इस मामले में अखबार सर्वोच्च न्यायालय में केस हार गया था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में केरल हाईकोर्ट के निर्णय को सही ठहराया है। अखबार ने यह लेख 2013 में प्रकाशित किया था। इसके लेखक बद्री रैना थे और इसका शीर्षक था क्या आरएसएस का आतंकवाद देश को निगल जाएगा (Will RSS terrorism swallow India)। इसे लेकर केरल के तत्कालीन प्रांत कार्यवाह पी गोपालन कुट्‌टी मास्टर ने एसीजेएम एर्नाकुलम की कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई थी।

इस मामले  में गोपालन कुट्टी मास्टर ने एर्नाकुलम के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत में मातृभूमि के मुद्रक और प्रकाशक एम एन रवि वर्मा, प्रबंध संपादक पी वी चंद्रन, तत्कालीन संपादक के के श्रीधरन नायर, तत्कालीन संपादक एमपी गोपीनाथ, उप संपादक कमलराम संजीव सहायक संपादक, लेखक बद्री रैना और अनुवादक के पी धन्या के खिलाफ मामला दायर किया था। 

गोपालन कुट्‌टी ने शिकायत में कहा कि इस लेख में झूठे आरोप लगाए गए हैं जो कि संघ की प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचाने वाले तथा जनता की नजरों में संघ के लिए मानहानिकारक थे। गोपालन कुट्‌टी ने इस लेख को विभिन्न समुदायों तथा धर्मों के बीच वैमनस्यता बढ़ाने वाला तथा सांप्रदायिक सद्भाव विगाड़ने वाला बताया था। इस मामले में उन्होंने आईपीसी की धारा 120-बी, 153-ए, 500 (धारा 34 के साथ पठित) के तहत अखबार सहित नौ लोगों के खि्लाफ केस दर्ज कराया था। मामले में जांच और सुनवाई चल रही थी उसी समय अखबार ने इस सुनवाई केरल उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

अखबार का कहना था कि संघ को निश्चित निकाय (a definite and determinable body) नहीं हैं। इसके चलते इस मामले में मानहानि  नहीं हो सकती है। अखबार ने कहा कि ये लेख जाने माने पत्रकार बद्री रैना के शोध, ‌विश्लेषण और सही जानकारी पर आधारिता है। इससे किसी की भावनाएं आहत नहीं होती हैं। एक पब्लिकेशन होने के नाते इन बातों से जनता को अवगत कराना अखबार का दायित्व है। अखबार ने हाई कोर्ट में यह भी कहा था कि एर्नाकुलम की कोर्ट को मामले की सुनवाई करने और समन जारी करने का कोई अधिकार नहीं है।

असीमानंद के कोर्ट में दिए बयान पर आधारित था लेख

 हालांकि बताया जाता है कि इसके लेखक बद्री रैना ने मालेगांव ब्लास्ट मामले में अभियुक्त स्वामी असीमानंद के पंचकुला कोर्ट में दिए गए बयान के आधार पर लिखा था।उच्च न्यायालय में पी गोपाल कुट्‌टी मास्टर की ओर से कोई भी पेश नहीं हुआ था लेकिन फिर भी कोर्ट इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक निर्णय का हवाला देते हुए एर्नाकुलम कोर्ट में सुनवाई जारी पर रोक लगाने से इंकार कर दिया और 2013 से मामला लंबित होने के कारण छह माह में इसकी सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया थाइसके बाद अखबार और अन्य पक्षकार इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय ले गए थे। सर्वोच्च न्यायालय ने भी केरल हाईकोर्ट के निर्णय को सही ठहराया और एर्नाकुलम कोर्ट में चल रही सुनवाई को सही बताया। इसके बाद 9 अक्टूबर को अखबार ने इस मामले में माफी नामा भी प्रकाशित किया है जबकि मामला एर्नाकुलम कोर्ट में लंबित था।

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